13 साल का बच्चा हज़ारो बच्चो का मसीहा भी और मिसाल भी

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कहते है की बच्चे भगवान् का रूप होते है उनके मन में किसी तरह का मेल नही होता , कभी कभी तो वो हम बड़ो को भी सिख दे देते है. जहा आज हर माँ बाप का सपना है कि उनका बच्चा इस दुनिया में अपना नाम कमाये , चाहे वो आमिर हो या गरीब, अमीरों के सपने तो आसानी से पुरे हो जाते है लेकिन गरीब पैसो के चलते पीछे रह जाते है. आज हम आपको एक ऐसे बच्चे से मिलवाने जा रहे है जो उन गरीब बच्चों की भावनाओं को समझता है.

जी हाँ एक बच्चा जो अभी 13 वर्ष का है और 9 वी कक्षा में पड़ता है और इसका नाम है आनंद पढाई में हमेशा से ही प्रथम आता है , और 2013 में हुए लखनऊ महोत्सव में शहजादे अवध का किरदार निभाने में भी खिताब हासिल कर चुके है , साथ ही स्पोर्ट्स में भी उनकी रूचि है.आनंद अपनी पढाई करते हुए उन बच्चो को भी मुफ्त में शिक्षा दे रहे है जो बच्चे या तो स्कूल नही जा सकते या वो गरीब है.आनंद गाँव गाँव जाकर चोपाल लगाकर बच्चो को पदाता है आनंद का कहना है की हर बच्चा आत्मनिर्भर रहे , वो बालमजदूरी से दूर रहे आनंद अपनी तरफ से हर वो संभव कोशिश करते है जिससे की कोई भी बच्चा किसी होटल या दूसरी जगह मजदूरी नही करे.

13 साल का बच्चा हज़ारो बच्चो का मसीहा भी और मिसाल भी

कहते है की बच्चे भगवान् का रूप होते है उनके मन में किसी तरह का मेल नही होता , कभी कभी तो वो हम बड़ो को भी सिख दे देते है जहा आज हर माँ बाप का सपना है कि उनका बच्चा इस दुनिया में अपना नाम कमाये , चाहे वो आमिर हो या गरीब अमीरों के सपने तो आसानी से पुरे हो जाते है लेकिन गरीब पैसो के चलते पीछे रह जाते है आज हम आपको एक ऐसे बच्चे से मिलवाने जा रहे है जो उन गरीब बच्चों की भावनाओं को समझता है. जी हाँ एक बच्चा जो अभी 13 वर्ष का है और 9 वी कक्षा में पड़ता है , और इसका नाम है आनंद.

आनंद पढाई में हमेशा से ही प्रथम आता है , और 2013 में हुए लखनऊ महोत्सव में शहजादे अवध का किरदार निभाने में भी खिताब हासिल कर चुके है , साथ ही स्पोर्ट्स में भी उनकी रूचि है आनंद अपनी पढाई करते हुए उन बच्चो को भी मुफ्त में शिक्षा दे रहे है जो बच्चे या तो स्कूल नही जा सकते या वो गरीब है. आनंद गाँव गाँव जाकर चोपाल लगाकर बच्चो को पदाता है आनंद का कहना है की हर बच्चा आत्मनिर्भर रहे , वो बालमजदूरी से दूर रहे आनंद अपनी तरफ से हर वो संभव कोशिश करते है जिससे की कोई भी बच्चा किसी होटल या दूसरी जगह मजदूरी नही करे.

9 वर्ष की उम्र से दे रहे शिक्षा

आनंद 9 साल के थे तभी से गरीब बच्चो को शिक्षा दे रहे है भले ही उनकी उम्र छोटी है लेकिन उनका काम बड़े लोगो को शिक्षा दे रहा है और उन टीचर्स को भी जो किसी पीड़ी को आगे बढाने जैसा नेक काम भी अपनी आलसी के चलते नही करते  मनुष्य का प्राक्रतिक स्वाभाव है की ज्यादातर वो इंसान के रंग-रूप को देखकर ही बात करता है लेकिन आनंद के मन में किसी के लिए कोई भेदभाव नही उम्र, रंग, देश, भाषा जैसी तमाम बातो से उन्हें कोई फर्क नही पड़ता उनका सिर्फ एक लक्ष्य है बच्चो को शिक्षा देना.

लडकियों के लिए खास

आनंद उन लडकियों की भी शिक्षा देते है जो गाँव से बहार स्कूल होने के कारण स्कूल नही जा पाती या उनके माँ-बाप उन्हें स्कूल नही भेजते अक्सर घर वाले लड़कियों को दूर दराज के स्कूल में नहीं भेजते इसलिए आनंद उनके लिए एक स्कूल खोलना चाहता है, इसके लिए वह राज्यपाल को चिट्ठी भी लिख चुके हैं. बच्चो को पढाने के लिए वो दूर-दूर भी जाने को तैयार हो जाते है और पेड़ के नीचे चोपाल लगाकर बच्चो को पढाते है. आनंद का सपना बड़े होकर भी आईएस अफसर बनना ही है.

ऐसे शुरुआत हुई बाल चोपाल 

आनंद ने कुछ वर्ष पहले एक बच्चे को देखा जो अपनी पढाई मोमबत्ती की रोशनी में कर रहा था और हैरत की बात की वो संस्कृत और मराठी दोनों ही जानता था. आपमें से कितने लोग जानते है संस्कृत और मराठी दोनों के बारे में ? उसे देखने के बाद आनंद के मन में विचार आया कि ऐसे कितने की प्रतिभावान बच्चे होंगे जिनके पास अवसर और जरुरुतो का अभाव होगा फिर आनंद ने अपने पिता से सलाह की और उनकी मदद से गाँव-गाँव में चौपाल लगानी शुरु कर दी  ‘हम होंगे कामयाब’ गीत के साथ शुरु होने वाले इस चौपाल में योग भी होता है.

इस तरह शिक्षा के लिए करते है प्रेरित

आनंद बच्चों को पढाई के साथ-साथ साइबर वर्ल्ड की भी जानकारी देता है, जिसमें वह इंटरनेट का पढाई में किस तरह से उपयोग  किया जाता है ये बताता है. जब पहली बार आनंद दूर इलाके में बच्चो को पडाने की शुरुआत लखनऊ से 12 किलोमीटर दूर काकोरी के भवानी खेड़ा गांव से की थी | इसके अलावा भी कई ऐसे गाँव है जहा आनंद ने चौपाल लगाकर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया. आज के सभी बच्चो के लिए मिसाल आनंद सिर्फ 5 घंटे ही सोता है और उसका ज्यादा समय पढ़ने और पढ़ाने में ही जाता है.

आज हमें इस बच्चे की कहानी सुनकर इतनी हैरानी हो रही है की जिस उम्र के बच्चे अपनी ही पढाई को सीरियसली नही लेते वही आज आनंद खुद के साथ दुसरे बच्चो को भी आगे बढाने के सपने देखता है. आनद के इस नेक काम के चलते कई बच्चे उनके मान लीजिये फैन हो गए है. आनदं जिस तरह की सोच रखकर बच्चो को पड़ा रहे है उन्हें प्रेरित कर रहे है वो वास्तव में एक मिसाल है वो कहते है न –

“हवा अपने आप में कुछ नही होती लेकिन ,

पहिये में ढाल दो तो पत्थर बन जाती है”

 

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