13 दिसंबर 2001 यह वही तारीख है जब आतंक ने संसद की दहलीज में कदम रखा था. वैसे तो संसद में सफेद अंबेसडर कार कई आती जाती थी. लेकिन उस दिन इस कार ने देश में दशहत फैला दी थी. लोकतंत्र के मंदिर को नष्ट करने के इरादे से जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादीयो ने अचानक संसद पर हमला कर दिया.
रोज की तरह उस दिन भी संसद में हर कोई अपने काम से संसद भवन में प्रवेश कर चूका था. सुबह के 11 बजकर 28 मिनट संसद भवन के शीतकालीन सत्र की गर्मी चरम सीमा पर थी.
विपक्षी दल के हंगामें के बाद सदनों की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया. संसद की कारवाही स्थगित होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी एवं विपक्ष नेता सोनिया गांधी वहा से निकलकर अपने सरकारी आवास में चले गए थे.
दूसरे दिनों की अपेक्षा उस दिन भी सब कुछ आम चल रहा था. हर बार की तरह उस दिन भी लोकसभा में मिडिया का जमावड़ा था. गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी अपने मंत्रियों और सांसदों के साथ उस समय लोकसभा में मौजूद थे. सदनकी कारवाही स्थगित होने के कारण कुछ सांसद संसद से बाहर निकलकर धूप का आनंद ले रहे थे.
11 बजकर 29 मिनट
उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के काफिले के सुरक्षाकर्मी सदन से उनके बाहर आने का इंजार ही कर रहे थे की अचानक सफेद अंबेसडर कारकृष्णकांत के काफिले की तरफ बन्दुक की गोली की तरह तेजी से आती हुई दिखाई दी. संसद में अन्य करो की स्पीड की अपेक्षा उस कार की रफ्तार अधिक थी. कोई समजह ही नहीं पाया की हुआ क्या है उस समय लोकसभा सुरक्षाकर्मचारी जगदीश यादव उस तेज रफ़्तार कार का पीछा करते हुए नजर आये थे.
जगदीश यादव ने किया कार का पीछा
जगदीश यादव लगातार कार को रोकने का इशारा कर रहे थे. जगदीश यादव को इस तरह कार का पीछा करते देख उप राष्ट्रपति के सुरक्षा गार्ड एएसआई चीप राव, श्याम सिंह और नामक चंद ने भी कार को रोकने के लिये आगे बाद गए.
जब कार चालक ने देखा की उनकी तरफ कई व्यक्ति बड़रहे है तो उन्होंने अपनी कार गेट नंबर 1 की तरफ मोड़ ली जहा उप राष्ट्रपति की कार पहले से ही खड़ी थी. कार की अधिक रफ्तार और मोड़ के कारण कार चालक का नियंत्रण बिगड़ जाता है और वह उप राष्ट्रपति की कार को टक्कर मार देता है.
सुबह 11 बजकर 30 मिनट
संसद के गेट नंबर 1 पर कार की भयंकर टक्कर के बाद वहा उपस्थित कोई व्यक्ति माजरा समझ पाता उससे पहले ही उस कार के चारों दरवाजे एक साथ खुलते हैं और उनमे से पांच आतंकवादी बंदूकों के साथ बाहर निकलते ही अंधाधूंध फायरिंग करना शुरु कर देते हैं. वह पांचों आतंकवादी थे जिनके पास एके-47 के साथ गोला बारूद मौजूद था. ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई आतंकी हमारे लोकतंत्र की दहलीज के अंदर आया था.
गोलियों की आवाज से गुजा संसद भवन
देखते ही देखते पूरा संसद भवन गोलियों की आवाज से गूंज उठा. आतंकवादियों ने सबसे पहले उन सुरक्षा कर्मियों को अपना निशाना बनाया जिन्होंने उनकी कार को रोकने का प्रयास किया था. इस हमले के वाबजूद अभी तक संसद में मौजूद अन्य लोगों को हमले की भनक भी नहीं थी.
जब संसद भवन के बाहर गोलियों की आवाज गूंज रही थी तो अंदर मौजूद सांसद और मंत्री उन्हें पटाखों की आवाज समझ रहे थे. गोलियों की गूंज के बिच एक जोरदार धमाका हुआ जिसने हमले डंका बजा दिया.इस धमाके के बाद हर कोई समजह गया था की संसद पर हमला हुआ है.
11बजकर 40 मिनट
आतंवादियो के द्वारा की जा रही अंधाधुन फायरिंग के बिच एक आतंकवादी ने संसद भवन के गेट नंबर 1 की दौड़ लगाईं. उसका मन किसी न किसी तरह संसद के गलियारे में पहुंचकर सभी सांसदों को बंधक बनाने या फिर उन्हें हानि पहुंचाने का इरादा था.
आतंवादी अपने मनसूबे में कामयाब होता इससे पहले ही हमारे जवानो ने उसे मोत के घाट उतार दिया. गेट नंबर 1 पर फीदाइनी ने बम से ब्लास्ट कर वहा का दरवाजा तोड़ने का मन बांया था. जिस आतंकी को मार गिराया था वह अभी तक जिंदा था.
हालांकि सुरक्षाकर्मियों ने उसे बन्दुक के निशाने पर ले लिया था. लेकिन उसके पास जाने से हर कोई डर रहा था कही वह खुद को उड़ा ना ले. और उनका डर सही साबित हुआ.जब घायल आतंकी को लगा कि अब बचने का कोई रास्ता नहीं है तो उसने रिमोट की बटन दबा कर खुद को बम से उड़ा लिया.
सुबह 11 बजकर 45 मिनट
हमले में एक आतंकी को मोत के घाट उतार दिया गया था. चार आतंकवादी संसद के कई हिस्सों में ताबड़तोड़ फायरिंग कर अपनी दशहत फैला रहे थे. उनके मुठभेड़ करने के इरादे को देख कर अंदाजा लगाया जा रहा था की वह घंटों मुकाबला करने की तैयारी कर आये थे. उनके पास गोलियों की कमी नहीं थी साथ ही उनके पास हैंड ग्रेनेड का जखिरा रखा हुआ था. जिसे वह बैग में रख कर लाये थे. हमारी सेना और एनएसजी पहुंच चुकी थी.
लाइव ऑपरेशन
आतंकियो के द्वारा की जा रही ताबड़तोड़ फायरिंग ने उनके इरादों को साफ कर दिया था की वह किस इरादे से संसद में आये हैं. इस पूरे आत्मघाती हमले का मास्टर मांइड अफजल गुरू को बताया गया था, जिसे भारत की सरकार ने फांसी दे दी है. हमले में आतंकियों को निर्देश दिया गया था की रास्ते में जो भी दिखे उसे जान से मारना है.
संसद पर हमले की सूचना सेना के साथ एनएसजी कमांडो को दी गई. आतंवादियो से निपटने में माहिर दिल्ली की पुलिस की स्पेशल सेल ने वहा का मोर्चा अपने हाथ में लिया. मीडिया के माध्यम से इस हमले की खबर आग की तरह फैल चुकी थी.
अटैकिंग हो गये थे
आतंकियों को जब पता चला की उनका एक साथी मारा गया तो वह और भी आक्रामक हो गये. फायरिंग के बिच ही संसद भवन के गेट नंबर 5 से खबर आई की सुरक्षाकर्मियों की गोली से एक और आतंकवादी ढेर हो गया. आतंकवादीयो को हमारे जवानो ने चारों तरफ से घेर लिया था. अब हमारे जवान पूरी तरह से उनसे मुकाबले को तैयार थे.
दोपहर के 12 बजकर 5 मिनट
हमले में सिर्फ सिर्फ तीन ही आतंकी बचे हुए थे. जब उन आतंकियों को अहसास हुआ की वह संसद से जिंदा तो निकल नहीं सकेंगे तो उन्होंने एक बार फिर संसद के अंदर घुसने का प्रयास किया. गोलियो की बरसात करते हुए वह संसद भवन के गेट नंबर 9 की तरफ भागने लगे. लेकिन हमारे जवानों ने उन्हें गेट नंबर 9 पर [पहुंचने स पहले ही घेर लिया.
दोपहर के 12 बजकर 10 मिनट
पूरा ऑपरेशन गेट नंबर 9 पर ही सिमट गया था. आतंकी सुरक्षाकर्मियों पर बीच-बीच में हाथगोले भी फेंक रहे थे. मुटभेड करते हुए एक एक कर तीनों ही आतंकी मारे गए. यह पूरा ऑप्रेशन 45 मिनट तक चलता रहा.
45 मिनट चला ऑप्रेशन
संसद भवन में आत्मघाती ऑप्रेशन 45 मिनट तक चलता रहा था. मुठभेड़ के 5 घंटे तक संसद भवन से फिर भी रुक-रुक कर गोलियो के चलने की आवाज आ ही रही थी.
हालांकि हमारा संसद भवन आतंकियों के मरने के बाद भी सुरक्षित नहीं था. क्योंकि वहा ग्रेनेड जगह जगह गिरे हुए थे. जो थोड़ी थोडी देर में ब्लास्ट हो रहे थे. बम निरोधक दस्ते ने संसद में बम को निष्क्रिय कर संसद को पूरी तरह सुरक्षित कर दिया.