किसी ने ‘बहुत खूब कहा है कि परों से क्या होता है हौसले से उड़ान होती है.’जाहिर है कि जिन के हौसलों में दम होता है उनके लिये उम्र या समाज की बेड़ियां मायने नहीं रखती. वे उनको रौंदते हुए न सिर्फ अपने सपनों को पूरा करते हैं, बल्कि समाज और महिलाओं को यह संदेश भी दे जाते हैं कि हौसला और हुनर उम्र के मुहताज नहीं होते. इस देश में कई मिसालें हैं जब लोगों की उम्र जान कर उन्हें कमजोर आंकने की गलती की गई. उन्होंने अपने साहस, लगन और बहादुरी से नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर कुछ करने का जज्बा हो तो आप शिखर पर पहुंच सकते हैं. आइए मिलते हैं ऐसी ही एक 87 साल की दादी जी से, जो प्रेरणा हैं हम सब के लिए.
जिस उम्र में आमतौर पर बुजुर्ग आराम करना पसंद करते हैं उस आयु में 87साल की राखी देवी मिट्टी और गारे से सने हाथों से खुद ईट-पत्थर से दीवारें खड़ी कर अपने घर में शौचालय बनाने में जुटी हैं. उनका उद्देश्य अपने गांव को खुले में शौचमुक्त कराना है. उनकी कोशिश यही है कि उनके गांव में कोई भी खुले में शौच के लिये न जाए. इसके लिये उन्होने यह पहल शुरू की है.
आपको ज्ञात होगा कि 2 अक्टूबर 2014 महात्मा गांधी की जयंती पर पीएम मोदी ने देश में स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया था. उसी अभियान में अपना अहम योगदान दे रही हैं 87 साल की बुजुर्ग महिला राखी देवी. जो जम्मू कश्मीर के ऊधमपुर के बादली नाम के गांव में रहती हैं. बेहद गरीब परिवार से संबंध रखने वाली राखी देवी के पास इतने पैसे नहीं है कि वह मिस्त्री या मजदूर लगवाकर टॉयलेट निर्माण करवा सकें.
राखी को टॉयलेट बनाने की प्रेरणा तब मिली, जब उनके गांव में जिला प्रशासन की टीम ने स्वच्छ भारत अभियान को लेकर कैंप लगाया. उन्होंने ग्रामीणों को इस बारे में जागरूक किया. इस कार्यक्रम में बुजुर्ग राखी देवी भी मौजूद थी. एक-एक चीज को बारीकी से समझने के बाद राखी देवी ने घर के पास अपनी जमीन में लगी फसल को अप्रैल के पहले सप्ताह में कच्ची अवस्था में ही काट कर ट्विन लीच पिट शौचालय बनाने के लिए गड्ढे खोदे. इस समय राखी देवी खुद शौचालय की दिवारों की चिनाई का काम कर रही हैं. राखी देवी के दो बेटे हैं, जिसमें एक उसके साथ और दूसरा अपने परिवार के साथ कहीं और रहता है. राखी देवी के साथ रहने वाला उनका बेटा दिन में बाहर दिहाड़ी लगाने के बाद शाम को कुछ देर मां के साथ शौचालय निर्माण में हाथ बंटाता है.
बुजुर्ग राखी कहती हैं, ‘मैं चाहती हूं कि हर व्यक्ति टॉयलेट का इस्तेमाल करे क्योंकि खुले में शौच से कई तरह की बीमारियां पैदा होती हैं. मैं गरीब हूं और शौचालय बनाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं, इसलिए मैंने किसी अन्य की मदद लेने की बजाय खुद ही टॉयलेट बनाने का फैसला लिया. मेरे बेटे ने टॉयलेट बनाने के लिए मसाला तैयार किया, इसके बाद मैंने खुद ही मिस्त्री के तौर पर काम करते हुए ईंटों को जोड़ा. 7 दिनों के भीतर हमारे घर में टॉयलेट तैयार हो जाएगा.’
87 वर्षीय की राखी की इस पहल पर ऊधमपुर के डिप्टी कमिश्नर ने कहा कि यह वक्त है जब लोग अपने पारंपरिक सोच में बदलाव ला रहे हैं. मैं आश्चर्यचकित हो गया जब मुझे पता चला कि 87 साल की महिला बिना किसी मदद के अपने हाथ शौचालय बना रही हैं. मैं उनकी दृढ़ता को सैल्यूट करता हूं, सभी को उनसे सीखना चाहिए. उन्होंने कहा कि राखी को हरसंभव जरूरी मदद मुहैया कराई जाएगी.
ऊधमपुर के BDO का कहना है कि 87 साल की उम्र में खुद शौचालय का निर्माण करना बहुत बड़ा फैसला है. हमें खुशी है कि जिले में जागरूकता अभियान सफल हो रहा है. निश्चित ही राखी देवी कई लोगों की प्रेरणा स्त्रोत बनेंगी. उनका नाम स्वच्छ योजना मिशन के लाभार्थियों में है. शौचालय निर्माण के बाद राखी देवी के बैंक एकांट में पैसे डाल दिए जाएंगे.’
अपनी उम्र को हौसले से पीछे छोड़ते हुए वह खुद ही ईंटों को जोड़ रही हैं. उनकी इस कोशिश को देखकर बाकी गांव वाले न सिर्फ उनकी तारीफ कर रहे हैं बल्कि प्रेरित भी हुए हैं. हम उनके जज्बे को सलाम करते हैं.