बुद्ध पूर्णिमा: जानिए बुद्ध के ‘लोटस सूत्र’ को, पढ़ने के बाद ही समझ आएंगी ये बातें

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बुद्ध पूर्णिमा बैशाख की पूर्णमासी को मनाया जाने वाला त्योहार है. इसे बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म के अनुयायी इस दिन को बहुत ही खास तरह से मनाते हैं. महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक है. बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था. बुद्ध जी ने आज ही के दिन बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे बुद्धत्व हासिल किया था. जिस कारण से हर साल दुनियाभर में इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं.आज हम आपको वो बातें बताएंगे जिनको बुद्ध ने अपने अंर्तमन में झांककर पाया था…

नरक की दुनिया

जब इंसान अपने जीवन के सबसे संघर्षपूर्ण दौर से गुजर रहा होता है तो उसे अपना जीवन कष्टदायक लगने लगता है. और वो कई बार सुसाइड करने की भी कोशिश करता है. लेकिन इस दौरान मनुष्य की इस मानसिक स्थिति में किया गया कोई भी काम पाप की श्रेणी में जाता है क्योंकि ऐसे हालात में हम सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते.

भूख की दुनिया

हर इंसान में ईष्या भरी होती है. अगर उसे एक चीज मिल जाए तो उसमें दूसरी की भूख जग जाती है. ये भूख जीवनकाल तक चलती रहती है. लेकिन वह दूसरों की उन्नति देखकर जलन महसूस करता है और सोचता है कि वो चीज मेरे पास क्यों नहीं है.ऐसी मानसिक स्थिति में किया गया हर कर्म हमारे पाप के खाते में जाता है क्योंकि असंतुष्ट मन कभी अच्छा नहीं सोचता है.

जानवरों की दुनिया

कई बार इंसान जानवर की तरह खूंखार बन जाता है. और अपनी ताकत का इस्तेमाल किसी कमजोर पर करता है.ऐसी मानसिक स्थिति में किया गया हर कर्म हमारे पाप के खाते में जाता है.

क्रोध की दुनिया

क्रोध यानि खुद को ही बलवान और काबिल समझना. अपने आगे सबको तुच्छ और छोटा समझना. ऐसे में इंसान को दूसरों को नीचा दिखाने में ही संतोष मिलता है. ऐसी मानसिक स्थिति में किया गया हर कर्म हमारे पाप के खाते में जाता है क्योंकि क्रोध करना मतलब अपने हाथ में जलता कोयला रखकर किसी दूसरे से कहना कि मैं तुम्हे जला दूंगा जबकि हाथ खुदका ही जलता है.

इंसानियत की दुनिया

भगवान ने हमें मनुष्य बनाया है तो मानवता भी दी है. हमारे पास सही गलत की समझ है. मगर हम इस मायावी दुनिया में रहते हैं जहां ज़रा सा कुछ हो जाए तो तुरंत ऊपर लिखी बुरी बातों में उलझ जाते हैं. ऐसे में पूरा काम बिगड़ जाता है. इस बात का ध्यान हमें ही रखना चाहिए. बोधिसत्व

इस मानसिक अवस्था में इंसान केवल दूसरों का भला ही करना चाहता है. उसमें पूरे जगत के लिए अपार प्रेम भरा होता है. इंसान अपने अंदर की ही बुराई से लड़कर खुदको अच्छा बनाता है. फिर बाहर से वो भले ही कैसा भी दिखे.

बुद्धत्व

इस अवस्था में पहुँचकर इंसान केवल अच्छाई की स्थापना के लिए शांति से लड़ता है. मुनष्य के अंदर दयाभाव और करूणा जाग जाती है.

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