पंचतत्वो का त्याग करने पर भी दो कबूतरों ने अद्भुत तरीके से लिया अमर ज्ञान, ऐतिहासिक है बाबा बर्फानी की कथा

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जय बाबा बर्फानी :- हिन्दू पुराणों के अनुसार एक बार जब माता पार्वती ने भगवान शिव कहा की प्रभु आप तो अजर-अमर हैं, किन्तु  में प्रत्येक बार नया जन्म लेने के पश्चात नए स्वरूप में आकर कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आपको प्राप्त करती हु, आप तो पालन हर है फिर मेरी इस प्रकार कठोर परीक्षा क्यों? आखिर आपके अमर होने का रहस्य क्या है?

माता पार्वती की बातो को सुनकर भगवान् शंकर मुस्कुराते हुए उन्हें मार होने का कहते है. जिसके लिए वह माता पार्वती को एकांत स्थान पर अमर कथा सुनाने के लिए ले गए ताकि कोई भी अमर कथा को सुन न पाए.

पुराणों में कही गई बातों के अनुसार, शिवशंकर माता पार्वती को अमरनाथ की इस पवन गुफा अमर होने की कथा सुनाई थी.

जब भोलेनाथ माता पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए अमरनाथ गुफा की तरफ ले गए. अमरनाथ गुफा में पहुँचने से पहले भोलेनाथ ने नंदी को पहलगाम पर छोड़ते हुए अपनी जटाओं से चन्द्रमा को उतारकर चंदनवाड़ी में तथा गंगाजी को पंचतरणी में रखने के बाद कंठ में सुशोभित आभूषण सर्पों को शेषनाग पर रख कर आगे बड चले.

जिसके कारण इस जगह का नाम शेषनाग पड़ गया. अगला पड़ाव था गणेश जी का. बाबा बर्फानी ने अपने पुत्र गणेश जी को भी उस स्थान पर छोड़ दिया, जिसे महागुणा के पर्वत के नाम से जाना जाता है. जब भोलेनाथ पार्वती माता के साथ पिस्सू घाटी पहुचे तो पिस्सू नामक कीड़े को भी उन्होंने त्याग दिया.

भगवान् शंकर ने अंत में पांचों तत्वों का त्याग करने के पश्चात मां पार्वती के साथ गुप्त गुफा में प्रवेश किया. और अमर कथा सुनाना प्रारम्भ कर दिया.

जब भोलेनाथ माता पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तो पार्वती देवी को नींद अ गई, और वह बिना कथा पूरी सुने ही सो गई. इस बात का शंकर जी को बिल्कुल भी आभाष नहीं था. शंकर जी माता पार्वती को कथा सुनते रहे,. उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था की माता पार्वती सो गई है. उस समय वहा पर माता पार्वती भगवान् शंकर के अलावा उस गुफा में दो सफेद कबूतर भी थे, जो अमर कथा को सुन रहे थे. कथा की बीच वह गूं-गूं की आवाजें कर रहे थे, जिसे सुनकर शिव जी को लगा कि पार्वती माता अमर कथा का श्रवण कर रही हैं, जिसके लिए वह उंकार भर रही है. इस बीच उन दोनों कबूतरों ने अमर कथा को सुन लिया.

कथा समाप्त होने के बाद जब महादेव ने अपनी आखे खोली तो देख की माता पार्वती तो सो गई है तथा कथा तो दो कबूतर सुन रहे थे. यह देख शंकर जी अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्हें मारने के लिए आगे बड़े.

शंकर जी को क्रोध अवस्था में जब अपनी तरफ बढता कबूतरी बने देखा तो वह अत्यधिक भयभीत हो गए और शंकर जी से कहने लगे की हे प्रभु हमने आपके द्वारा कही गई अमर स्था को सम्पूर्ण सुन लिया है. यदि आप हमें अब मारते है तो आपके द्वारा कही गई अमर होने की बात असत्य हो जाएगी. कबूतर की बात सुन कर शिव जी का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने दोनों कबुतारो को आशीर्वाद देते हुए कहा की तुम दोनों सदेव इस स्थान पर शिव-पार्वती के चिन्ह स्वरुप रहोगे.

इस तरह वह दोनों कबूतर अजर-अमर हो गए. कहा जाता है की आज भी वह दोनों कबूतरों भक्तों को दर्शन देते है. इस तरह यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई, जिसके फलस्वरूप गुफा का नाम अमरनाथ गुफा हो गया.

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