जज्बे को सलाम: नाती-पोते के साथ 5वीं की पढ़ाई पढ़ रहे 73 साल के दादा जी

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किसी ने ‘बहुत खूब कहा है कि परों से क्या होता है हौसले से उड़ान होती है.’ जाहिर है कि जिन के हौसलों में दम होता है उनके लिये उम्र या समाज की बेड़ियां मायने नहीं रखती. वे उनको रौंदते हुए न सिर्फ अपने सपनों को पूरा करते हैं, बल्कि समाज और महिलाओं को यह संदेश भी दे जाते हैं कि हौसला और हुनर उम्र के मुहताज नहीं होते. इस देश में कई मिसालें हैं जब लोगों की उम्र जान कर उन्हें कमजोर आंकने की गलती की गई. उन्होंने अपने साहस, लगन और बहादुरी से नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर कुछ करने का जज्बा हो तो आप शिखर पर पहुंच सकते हैं. आइए मिलते हैं ऐसे ही एक 73 साल के दादा जी से, जो प्रेरणा हैं हम सब के लिए.

पढ़ाई उम्र की मोहताज नहीं होती

जैसा कि हम सब कहते हैं कि ज्ञान कि कोई उम्र नहीं होती है जब अपकी इच्छा हो आप पढ़ सकते हैं. ऐसा ही एक कारनामा कर दिखाया है एक 73साल के बुजुर्ग ने, जिन्होंने 73 वर्ष की उम्र में पढ़ने के सपने को पूरा करने की ठानी और आज वे 5वीं कक्षा के छात्र हैं.

5वीं पढ़ते हैं 73साल के दादा जी

दरअसल, मिजोरम के रहने वाले लालरिंगथारा की आयु 73साल है. लेकिन वे चम्फाई जिले के न्यू रुआईकॉन गांव में स्कूल जाकर पढ़ाई करते हैं. लालरिंगथारा ने गांव के एकमात्र माध्यमिक स्कूल में 5वीं कक्षा में एडमिशन लिया है. वे रोज़ सुबह स्कूल जाते हैं. स्कूल में वे पीटी भी करते हैं और फिर घर आकर होमवर्क भी करते हैं.

अपने सपने के बोझ को बैग टांगकर पूरा कर रहे हैं

लालरिंगथारा उम्र के इस पड़ाव में अपने बचपन के सपने को पूरा करने में लगे हैं. दरअसल, साल 1945 में भारत-म्यांमार बॉर्डर के करीब खुआंगलेंग गांव में जन्मे लालरिंगथारा ने दो साल की उम्र में ही अपने पिता को खो दिया. वो अकेली संतान थे, पिता के जाने के बाद वो अपनी मां का अकेला सहारा बन गए. बचपन से ही वो घर चलाने में मां की मदद करने लगे. घर के कामों से लेकर खेतों में काम करने तक, वो मां को अकेला नहीं छोड़ते थे. पिता की मौत के बाद और उनके घर की परिस्थितियों ने उन्हे शिक्षा से दूर कर दिया. लालरिंगथारा की पढ़ाई का सपना, सपना बनकर ही रह गया.

नौकरी के साथ-साथ पढ़ाई भी करते हैं

लालरिंगथारा आज अपने सपने को जी रहे हैं. कुछ सालों पहले वो अपना गांव छोड़कर न्यू रुआईकॉन गांव में हमेशा के लिए बस गए. यहां वो एक चर्च में चौकीदार की नौकरी करने लगे पर पढ़ाई करने का उनका सपना उन्हें सोने नहीं देता. अपने सपने को पूरा करने के लिए आखिर उन्होंने स्कूल में दाखिला कराया, अब वो दिन में स्कूल जाते हैं और रात को चौकीदारी करते हैं. अपने से 60 वर्ष छोटे बच्चों के साथ पढ़ने में उन्हें थोड़ा अजीब तो लगता है, लेकिन अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने इस हिचक को भी दूर किया है.

अंग्रेजी से हैं काफी लगाव

लालरिंगथारा को अंग्रेजी में बड़ा लगाव है और वो हमेशा से इस भाषा को बोलना और इसमें लिखना चाहते रहे हैं. पढ़ाई का जुनून और अंग्रेजी सीखने की इस धुन में ही लालरिंगथारा ने स्कूल में दाखिला कराया सीखने के इस जुनून ने लालरिंगथारा को 73 साल का स्टूडेंट बना दिया है, जो सभी के लिए प्रेरणा हैं.

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