जलियांवाला बाग हत्याकांड के 101 साल, जानिए 10 ख़ास बातें

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जलियांवाला हत्याकांड को आज 102 साल पूरे हो चुके हैं। 13 अप्रैल के दिन ही साल 1919 में अंग्रेजों ने बेकसूर भारतीय नागरिकों का खून बहाया था। पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में इस दिन ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला के निहत्थे, शांत बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों को मार डाला था और हजारों लोगों को घायल कर दिया था। इस घटना ने भारत के इतिहास की धारा को बदल कर रख दिया। उसी जनरल डायर की 13 मार्च, 1934 को भारत के वीर सपूत ऊधमसिंह ने हत्या करके भारतीयों के खून का बदला लिया था।

गांधीजी तथा कुछ अन्य नेताओं के पंजाब प्रदेश पर प्रतिबंध लगे होने के कारण वहां की जनता में बड़ा आक्रोश था। आग में घी डालने का काम अमृतसर के डेप्युटी कमिशनर ने किया जिसने बिना किसी कारण पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉक्टर सत्यपाल एवं सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया। आक्रोशित जनता ने शांतिपूर्ण जुलूस निकाला जिसे पुलिस ने रोकने की कोशिश की।

जुलूस को रोकने में नाकाम ब्रिटिश पुलिस ने उन लोगों पर गोलियां चला दीं। गोलीबारी में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। लोगों का गुस्सा और भड़क गया। उन लोगों ने सरकारी इमारतों में आग लगा दिया और पांच अंग्रेजों की हत्या कर दी। स्थिति बिगड़ते देख ब्रिटिश सरकार ने 10 अप्रैल, 1919 को पंजाब शहर का प्रशासन जनरल डायर को सौंप दिया।

रॉलेट एक्ट का विरोध करने पर स्वतंत्रता सेनानियों की गिरफ्तारी और पहले हुए गोली कांड की निंदा करने के लिए 13 अप्रैल को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन हुआ। वह दिन बैसाखी का था। सभा में करीब 20,000 लोग जमा हुए थे। प्रशासन को जब सभा की खबर मिली तो डायर ने उसे गैर कानूनी घोषित कर दिया था।

नही भुलाई जा सकती जलियावाला बाग़ की ये 10 बाते

1. अमृतसर के प्रसिद्ध् स्वर्ण मंदिर, यानी गोल्डिन टेंपल से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को रॉलेट एक्टन का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी, उस दिन बैसाखी भी थी। जलियांवाला बाग में कई सालों से बैसाखी के दिन मेला भी लगता था, जिसमें शामिल होने के लिए उस दिन सैकड़ों लोग वहां पहुंचे थे।

2. तब उस समय की ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्डभ डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया। सैनिकों ने बाग को घेरकर ब‍िना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। वहां मौजूद लोगों ने बाहर निकलने की कोश‍िश भी की, लेकिन रास्ता बहुत संकरा था और डायर के फौजी उसे रोककर खड़े थे। इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया और हिन्दुस्तानी जान बचाने में नाकाम रहे।

3. जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश आर्मी ने बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं। इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी। बताया जाता है कि सैनिकों के पास जब गोलियां खत्मग हो गईं, तभी उनके हाथ रुके।

4. कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने कुएं में कूद गए थे, जिसे अब ‘शहीदी कुआं’ कहा जाता है। यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है और उन मासूमों की याद दिलाता है, जो अंग्रेज़ों के बुरे मंसूबों का श‍िकार हो गए थे।

5. ब्रिटिश सरकार के अनुसार इस फायरिंग में लगभग 379 लोगों की जान गई थी और 1,200 लोग ज़ख्मीर हुए थे, लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक उस दिन 1,000 से ज़्यादा लोग शहीद हुए थे, जिनमें से 120 की लाशें कुएं में से मिली थीं और 1,500 से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हुए थे।

6. जनरल डायर रॉलेट एक्टम का बहुत बड़ा समर्थक था और उसे इसका विरोध मंज़ूर नहीं था। उसकी मंशा थी कि इस हत्याकांड के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन इसके ठीक उलट ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरा देश आंदोलित हो उठा।

7. हत्या कांड की पूरी दुनिया में आलोचना हुई। आखिरकार दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेयट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया।

8. हाउस ऑफ कॉमन्स ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया, लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने इस हत्याकांड की तारीफ करते हुए उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। बाद में दबाव में ब्रिटिश सकार ने उसका निंदा प्रस्तािव पारित किया। 1920 में डायर को इस्तीफा देना पड़ा।

9. जलियांवाला बाग हत्या।कांड का बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940 को ऊधम सिंह लंदन गए। वहां उन्होंने कैक्सटन हॉल में डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया. उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर का नाम उन्ही के नाम पर रखा गया है।

10. जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह को भीतर तक प्रभावित किया। बताया जाता है कि जब भगत सिंह को इस हत्याकांड की सूचना मिली तो वह अपने स्कूाल से 19 किलोमीटर पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे।

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