लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारियां अब जोरशोरों से शुरू हो गई है. दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों ने चुनाव की तैयारी के लिये अपनी कमर कस ली है. जहां एक तरफ कांग्रेस पूरे भाजपा के खिलाफ विपक्ष का गठबंधन बनाने का सतत प्रयास कर रही है.वहीं बीजेपी अपनी 2014 की जीत को वापस दोहराने की कोशिश में लगी हुई है. भाजपा का मकसद साफ है कि उसे एनकेन प्रकारेण 2019 चुनाव जीतना है और वापस पीएम की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी को बैठालना है. लेकिन 2019 के चुनाव में जीत में रोड़ा एनडीए के सहयोगी दल ही बन सकते हैं. क्योंकि अब तक खामोशी से बीजेपी की अगली चाल का इंतजार करते रहे एनडीए के सहयोगी दल भी उसे आंखे दिखाने लगे हैं. सब जानते हैं कि अपनी बातें मनवाने का अभी जबरदस्त मौका है.
एनडीए के सहयोगी दल दिखा रहे हैं आंखें
एनडीए के सहयोगी दल भाजपा की कमजोर नब्ज को दबाने के लिये अब तैयार हो चुके हैं. क्योंकि हालहि में कर्नाटक विस चुनाव हार के बाद, यूपी में उपचुनाव हार के बाद, राजस्थान में भी उपचुनाव हार के बाद सब जानते हैं कि अपनी बातें मनवाने का अभी जबरदस्त मौका है. यही वजह है कि शिवसेना से लेकर जेडीयू तक सभी बीजेपी से अपना हिस्सा मांग रहे हैं.
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने छुआ था 333 का आंकड़ा
जहां लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को सहयोगी दलों से 282 सीटों में सहयोगियों की 54 सीटें जोड़ने पर 335 का आंकड़ा बना था. वहीं इस बार कुछ एनडीए के सहयोगी दल भाजपा से नाखुश हैं. इस लिस्ट में पहला नाम महाराष्ट्र की शिवसेना, दूसरा नाम आंध्र प्रदेश की टीडीपी, तीसरा नाम पंजाब का अकाली दल और बिहार की रालोसपा हैं.
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हर राज्य में अधिकतम सीटें जीती थीं. कई राज्यों में उसे सभी सीटें मिल गई थीं. लेकिन इस बार हालात ऐसे नहीं रहने वाले हैं. पार्टी को राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में जितनी सीटें मिली थीं. उतनी दोबारा मिलना संभव ही नहीं है. बीजेपी की हालत अगर सबसे अच्छी रहती है तो भी 220 सीटों तक उसे मिल सकती हैं.
शिवसेना के बगावती बोल
साल 2014 में महाराष्ट्र में 18 लोकसभा सीटें जीतने वाली शिव सेना एनडीए में भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन पिछले तीन वर्षों से शिव सेना ने सहयोगी भाजपा को आड़े हाथों ही लिया है. साल 2014 के आम चुनाव के बाद और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के पहले दोनों अलग भी हुए थे. लगभग हर हफ़्ते ही शिव सेना की तरफ़ से बीजेपी को समर्थन देते रहने के मुद्दे पर आंख दिखाती नजर आती रहती है.
तेलुगू देशम पार्टी दिखा रही हैं तल्ख तेवर
पिछले कुछ महीनों से 16 लोकसभा सीटें जीतने वाली टीडीपी के तेवर तल्ख दिख रहे हैं. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के सुर बागवती होते नजर आ रहे हैं.वहीं अब टीडीपी के मंत्री केंद्र सरकार से और बीजेपी के मंत्री आंध्र में राज्य सरकार से इस्तीफ़ा दे चुके हैं और टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू कह चुके हैं कि भाजपा का रवैया “अपमानजनक और दुख पहुँचाने वाला था,” वे कह रहे हैं कि वे एनडीए में रहेंगे या नहीं इसका फ़ैसला बाद में किया जाएगा.
भाजपा-अकाली दल के बीच खटास
वहीं दूसरी तरफ, पंजाब में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अमरिंदर सिंह की शानदार जीत और सत्ताधारी भाजपा-अकाली गठबंधन की शिकस्त से दोनों के रिश्तों में खटास घर कर चुकी है.
रालोसपा की नाराजगी
बिहार में भले ही भाजपा ने नीतीश-लालू गठबंधन टूटने के बाद सरकार में भागीदारी बना ली हो, लेकिन नीतीश सरकार के पास भी बहुमत नहीं हैं. वहीं बिहार से रामवलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा ने 2014 में एनडीए को पूर्ण समर्थन दिया था. लेकिन नीतीश कुमार के एनडीए में आने के बाद से बिहार के दूसरे साझीदार राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा भी नाखुश बताए जा रहे हैं, हाल में उनकी एक रैली में लालू की पार्टी के कई नेता नज़र आए थे जिसके बाद से उनके दल बदलने के कयास लगाए जा रहे हैं.
पीडीपी से नाता तोड़ा
कुछ दिनों पहले जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया है. ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि क्या 2019 के चुनावों में एनडीए की शक्ल वही रहेगी जो 2014 में थी?
पीएम मोदी के अलावा ये मंत्री बन सकते हैं पीएम
वहीं राजनीतिक हालात का बारीकी से विश्लेषण करने वाले मानते हैं कि बीजेपी भले ही 2019 में सरकार बना लें, लेकिन मोदी का पीएम बनना बहुत मुश्किल से भी ज्यादा मुश्किल है. ये भी माना जा रहा है कि अगर भाजपा अकेले दम 240 सीटें नहीं ला पाती है और उसके सहयोगी दल मिलकर 240 का आंकड़ा छू लेते हैं तो उनके इच्छानुसार ही पीएम की घोषणा करनी होगी. ऐसे में पीएम मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री के बनने के चांसेज कम हो जाएंगे. वहीं अगर भाजपा को 2019 में 240-250 से कम सीटें मिलती हैं तो नरेंद्र मोदी की जगह प्रधानमंत्री राजनाथ सिंह होंगे. इन नेताओं को कांग्रेस के खाते में कम से कम 125 सीटें मिलने का अनुमान है. इनका यह भी अनुमान है कि अगर कांग्रेस को इससे ज्यादा सीटों मिली तो गैर भाजपा सरकार बनेगी. 2019 को लेकर सोनिया गांधी से राय मांगी गई तो उन्होंने अभी इस पर टिप्पणी करने से करने से मना कर दिया. अचरज की बात ये है कि कांग्रेसियों को राहुल गांधी के नाम पर सहमति मिलने की संभावना कम लग रही है.