अबुल कलाम आज़ाद थे वो सच्चे मुसलमान जो नहीं चाहते थे की हिन्दुस्तान का बटवारा हो और पाकिस्तान बने

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स्वतंत्रता सेनानी की जब भी बात की जाती है तो हमारे देश के ऐसे कई सेनानी है जिनका नाम बड़े ही आदर और सम्मान से लेते है और उनके बलिदान को याद करते है.

आज हम आपको एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में बताएँगे जिनके बारे में बहुत काम व्यक्ति जानते है. भारत देश के पहले शिक्षा मंत्री अबुल कलाम मोहीउद्दीन अहमद आज़ाद जिन्हें हर कोई मौलाना आज़ाद के नाम से जानता है.

जन्म

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को हुआ था. मौलाना साहब ने अपनी पूरी जिंन्दगी देश के नाम कर दी. सदैव देश के बारे में अपने विचार व्यक्त करने वाले मौलाना साहब एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे.

देश की एकता पर तत्पर

अबुल कलाम आज़ाद एक महान भारतीय विद्वान तो थे ही साथ ही वह स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, कवि भी थे.

न तो हिन्दुस्तान में जन्म और न हीं पाकिस्तान में

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दिलचस्प बात तो यह है की मौलाना साहब ने न तो हिन्दुस्तान में जन्म लिया है और न ही पाकिस्तान उनका जन्म सऊदी अरब के पवित्र स्थल मक्का में हुआ था.

आ गए भारत

जन्म के बाद वह कोलकाता आ गए. मौलाना साहब ने देश की आज़ादी की लड़ाई में वह हमेशा तत्पर रहे थे. उन्होंने इस लड़ाई में अपना हथियार कलम को बनाया. कलम का सिपाही बनकर वह पत्रिकाओं में लिखने लग गए.

कम उम्र में लिखी कविता

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महज 12 वर्ष की उम्र से ही वह लिखने लग गए. छोटी उम्र में ही उन्होंने उर्दू में कविताये लिखना शुरू कर दिया.

धर्म और दर्शन पर रचनाये

मोलाना साहब ने धर्म और दर्शन पर कई रचनाएं लिख कर काफी प्रसिधी हासिल की थी. 1912 में मोलाना जी ने अल हिलाल नामक एक उर्दू साप्ताहिक की शुरुआत भी की थी.

भारतीय राष्ट्रीयता का समर्थन

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कलम की मदद से वह अक्सर ब्रिटिश राज की कड़ी आलोचना करते थे. ब्रिटिश राज की आलोचना वह प्रमुख रूप से छापा करते थे. साथ ही वह अपने द्वारा लिखे गए लेखों की मदद से भारतीय राष्ट्रीयता का समर्थन करने से पीछे नहीं हटते थे.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष

35 साल की उम्र 1923 के दरमियाँ मौलाना साहब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे. वह एकमात्र इसे व्यक्ति थे जो सबसे कम उम्र में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे.

मुसलमान के नेता

कांग्रेस पार्टी के नेता होने के साथ वह सिर्फ उन मुसलमानों के नेता बने थे जिन्होंने भारत देश की आजादी का उज्जल भविष्य का सपना देखा था.

आन्दोलन के प्रमुख नेता

1919-26 के बीच हुए खिलाफत आंदोलन में मौलाना साहब सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थे.

महात्मा गाँधी से बड़ी नजदीकियां

आंदोलनों में तत्पर रहने के कारन उनकी महात्मा गांधीसे नजदीकियां बढ़ने लग गई.

महात्मा गाँधी के बने समर्थक

इस दौरान मौलाना साहब गाँधी जी के विचारों और उनके अहिंसक आंदोलनों के समर्थक बने थे.

जवाहर लाल नेहरु ने दिया था नया नाम

1919 के रोलेक्ट एक्ट विरोध में हुए असहयोग आंदोलन को पूर्ण रूप से व्यवस्थित करने का जिम्मा मौलाना साहब का ही था. उनके काम को देखकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु मीर-ए-कारवां कहा करते थे. जिसका मतलब कारवां का नेता होता है.

बटवारे का विरोध

देश में हो रह बटवारे की बात का मौलाना साहब हमेशा से ही विरोध करते थे. वह उन सभी व्यक्तियों का विरोध करते थे जो अलग पाकिस्तान बनाने की बात करते थे.

विरोध करने वाले प्रमुख नेता

अलग पकिस्तान बनाने की बात का विरोध करने वाले मौलाना साहब सबसे प्रमुख नेता थे. वह सदैव सभी को एक जुट होने की बात किया करते थे.

भारत के पहले शिक्षामंत्री

भारत की आजादी के बाद मौलाना साहब भारत के पहले शिक्षामंत्री बने.

भारत रत्न

1992 में मौलाना साहब को मरणोपरांत भारत देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित हुए है.

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस

भारत रत्न से सम्मानित देश के पहले शिक्षा मंत्री की याद में प्रतिवर्ष 11 नवंबर का दिन राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में भारत सरकार मनाती है. लेकिन आधिकारिक रूप से11 नवम्बर 2008 से इस खास दिन की शुरुआत की गई थी.

मृत्यु

70 वर्ष की उम्र में मौलाना साहब हम सब से रुखसत हो गए. 22 फरवरी 1958 का वह दिन उनकी जिंदंगी का अंतिम दिन था.

जामा मज्जिद की गोद

मौलाना साहब को लाल किले की निगरानी के बीच जामा मस्जिद की गोद सुपुर्द-ए-खाक किया गया था.

चाहे आज के समय में मौलाना साहब हमारे बिच नहीं है लेकिन हिन्दू-मुस्लिम एकता की वह एक मिसाल है. जिन्हे सदियों तक भुलाये न भुलाया जाएगा.

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