भारत के स्वतंत्रता संग्राम में से एक सोहन सिंह भकना उन संघर्ष क्रांतिकारियों में से एक थे उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए एक क्रांतिकारी बने ओए गदर आन्दोलन पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष बने थे और उन पार्टी के प्रमुख सूत्रधार थे. उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण सोहन सिंह जी को गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी.
सोहन सिंह भकना :
सोहन सिंह भकना का जन्म जनवरी 1870 में अमृतसर के खुत्र्रा खुर्द गांव में किसान परिवार में हुआ था, उनके पिता भाई करम सिंह और माँ राम कौर थी. उन्होंने गांव के गुरुद्वारा में अपनी बचपन की शिक्षा प्राप्त की. सोहन जी ने कम उम्र में पंजाबी भाषा को सीख लिया.
उर्दू और फारसी :
सोहन सिंह का दस साल की उम्र में शादीशुदा सिंह के नाम से लाहौर के निकट मकान मालिक की बेटी बिशन कौर से शादी हुई थी. सोहन सिंह ने सोलह साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया, उस समय तक उन्होंने उर्दू और फारसी में भी अच्छी पकड़ बना ली थी.
अंग्रेज़ों की ग़ुलामी के कारण :
सोहन सिंह जी सन 1907 में अमेरिका पहुँचे. वहाँ पर उन्हेंने एक मिल में काम करना प्रारंभ किया. लेकिन वहा पर काम करने वाले लोगों को बहुत ही कम वेतन मिलता था और सोहन सिंह जी को यह समझते देर नहीं लगी कि उनका यह अपमान भारत में अंग्रेज़ों की ग़ुलामी के कारण हो रहा था.
अतः उन्होंने देश की आज़ादी के लिए स्वयं के संगठन का निर्माण करना आरम्भ कर दिया और उन्होंने वहां पर गदर आन्दोलन पार्टी के प्रसिद्ध नेता बने और लाला हरदयाल ने अमेरिका में पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन नाम की एक संस्था बनाई थी, जिसका अध्यक्ष सोहन सिंह भकना को बनाया गया था.
प्रथम लाहौर षड़यंत्र केस के नाम से प्रसिद्ध :
13 अक्टूबर 1914 ई. को उन्हें आंदोलन केस में गिरफ्तार कर लिया गया और उनसे पूछताछ के लिए लाहौर जेल भेज दिया गया. इन सब क्रांतिकारियों पर लाहौर में मुकदमा चलाया गया, जो प्रथम लाहौर षड़यंत्र केस के नाम से प्रसिद्ध हुए.
आजीवन कारावास :
सोहन सिंह भकना की इस क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उन्हें गिरफ्तार कर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. अग्रेंज सरकार उन्हें पूरे 16 वर्ष तक जेल में रखना चाहती थी, लेकिन उनके स्वास्थ्य की गिरावट को देखते हुए सरकार ने उन्हें रिहा करना पड़ा.
श्रम आंदोलन :
रिहाई के बाद में सोहन जी ने भारतीय श्रम आंदोलन के साथ मिलकर काम किया, जो किसान सभा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काफी समय तक काम करते रहे. उन्होंने आंतरिक ग़दिरियों को अपने राजनीतिक कार्य का एक महत्वपूर्ण अंग भी बनाया था.
बाबा सोहन सिंह भकना का निधन :
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्हें दूसरी बार इंटर्न किया गया, जब वह राजस्थान में देओली शिविर में जेल गए थे. वह लगभग तीन साल तक जेल में रहे. लेकिन सन 1943में रिहा कर दिया. 20 दिसम्बर 1968 को बाबा सोहन सिंह भकना का निधन हो गया.