अपनी ही प्रतिभा से मिला था राजा दशरथ को श्राप, इतिहास के पन्नो में है अमर

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हिन्दू धर्म में कई महाकाव्य और धार्मिक कथाओं का सम्पूर्ण वर्णन बताया गया हैं. हिन्दू धर्म के ग्रंथ इस बात का सबूत हैं, की युगों में देवी-देवताओ नें अवतार ले कर पृथ्वी पर बड़ रहे पाप का खात्मा किया हैं. कुछ पौराणिक ग्रंथों में दैवी पात्रों और सिद्ध ऋषि मुनियों द्वारा दिये गए शाप का सम्पूर्ण वर्णन किया गया है.

दर्दनाक किस्सा

जब अपने दृष्टिहीन माता-पिता की प्यास को बुझाने के लिए श्रवणकुमार नदी किनारे गए थे, तो राजा दशरथ उस समय जंगल में शिकार कर रहे थे. राजा दशरथ ने शब्द भेदी बाण चला कर श्रवणकुमार को अज्ञानवश तीर मार देते हैं. राजा दशरथ का बाण श्रवणकुमार की छाती भेद देता है, और वह दर्द से चीख पड़ते हैं. दशरथ उनकी आवाज सुनकर नदी की जाते हैं, वह उन्होने देखा की उनके बाण से मूर्छित हो कर श्रवण कुमार अपनी मृत्यु से जंग लड़ रहे होते हैं. दशरथ जी उसी छण उनसे क्षमा मांगने लगते हैं.

श्रवणकुमार अंतिम समय में राजा दशरथ से सिर्फ इतना कहते है, की मेरे दृष्टिहीन माता पिता बहुत प्यासे हैं, उन्हे जल पिला देना. और वह अपना देह त्याग देते हैं.

जब राजा दशरथ ने श्रवणकुमार के माता-पिता को सारी कहानी बताई तो अपने बुढ़ापे की लाठी की मौत की खबर सुनते ही उनकी माता देवी ज्ञानवती भी अपने प्राण त्याग देती हैं.

श्रवण कुमार के पिता क्रोधाग्नि में राजा दशरथ को शाप देते हैं कि
जिस प्रकार हमारी मौत के वक्त हमारा पुत्र हम दोनों के पास नहीं हैं ठीक उसी तरह जब तुम अपना देह त्यागोगे तो तुम्हारे पास भी कोई पुत्र नहीं होगा. जिस तरह हम पुत्र के वियोग में मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं, तुम भी एसे ही मृत्यु कोप प्राप्त होगे.

इतिहास गवाह है और हम भी इस बात को जानते हैं, की राजा दशरथ की मृत्यु उस समय हुई थी जब भगवान राम वनवास काट रहे थे. लक्ष्मण जी भी राम जी के साथ ही थे, भरत और शत्रुग्न उस समय अपने मामा के घर गए हुए थे. इस तरह ऋषि शांतनु का शाप सत्य साबित हुआ था.

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