लडकियों की सुरक्षा के लिए मोदी जी ने एक्ट नहीं एक्शन का नारा दिया था मगर आज ना तो कोई एक्ट है ना कोई एक्शन
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान और लडकियों के लिए कई तरह की योजनाओं को प्रारम्भ करने के बाद भारत सरकार के पास इस सवाल का जवाब नही है की उन्होंने बीते सालो से लेकर अब तक बेटियों की सुरक्षा के लिए क्या किया? क्यों की सरकार भले ही अपनी कामयाबी का ढिंढोरा पिट रही हो लेकिन महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध थमने का नाम नहीं ले रहे है.
देश में बढ़ रहे महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की खबरों के बाद महिलाओं की सुरक्षा सभी के लिए एक बड़ा और अहम् मुद्दा बन गई है. वेसे तो नरेन्द्र मोदी ने महिलाओं की सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बनाया था और महिलाओं की सुरक्षा के लिए काफी प्रयास किया था लेकिन फिर भी इस तरह के अपराध थम नहीं रहे है.
जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमन्त्री के पद पर नहीं थे तब उन्होने महिलाओं की सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बनाते हुए एक्ट नहीं एक्शन का नारा दिया था. उनकी इन्ही बातो को देखते हुए देश की जनता ने उन्हें प्रधानमंत्री का पद सौंपा था और सत्ता की ड़ोर उनके हाथ में दे दी थी.
हालाकि आज के दौर को देखते हुए हर किसी की जुबा पर सिर्फ एक ही सवाल है की आखिर महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा कहा गया सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान तो शुरू कर दिया लेकिन बेटियों को सुरक्षा देना भी तो जरुरी है उन्हें सुरक्षा कौन देगा?
साल दर साल देश में बलात्कार की संख्या बढती ही जा रही है. वर्ष 2015 में 34,000 से भी ज्यादा बलात्कार के मामले सामने आए थे जबकि 2016 में इस संख्या में बढोतरी दर्ज की गई और कुल 34,600 बलात्कार के मामले सामने आये थे.
दिन प्रतिदिन महिलाओं के खिलाफ योन उत्पीडन के अलावा और भी कई तरह के अपराध बड़ते ही जा रहे है अब सरकार को उनके कहे अनुसार एक्ट नहीं, एक्शन लेने की आवश्यकता है. एक्ट नहीं एक्शन का नारा देने वाले नरेन्द्र मोदी इस मुद्दे पर क्या विचार कर रहे हैं?
महिलाओं के साथ होने वाले अपराधो में न तो कानून मंत्री कुछ कहते है और न ही गृह मंत्री कुछ बोलते हैं उनकी ख़ामोशी को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे महिलाओं के साथ होने वाले अपराधो और उनकी सुरक्षा को केंद्र सरकार महज राज्यों के अपराध के नजरिये से ही देखती है जिसे देखते हुए हम कह सकते है की यह अपराध नहीं, बल्कि हमारे समाज की बिगड़ती मनोदशा की ही निशानियां हैं.
नन्ही-नन्ही बच्चिया सामूहिक बलात्कार का शिकार हो रही है बच्चो का नाम बड़े-बड़े अपराधो में शामिल हो रहा है इंटरनेट अश्लील सामग्री से भरी पड़ी है दर्जनों एसी साइट्स है जहा से छोटे-छोटे बच्चे अश्लील सामग्री को देखते है और इन सब चीजो को स्मार्टफोन के माध्यम से बच्चे इस्तेमाल करते है. इन सब बातो का ध्यान रखाना सरकारी एजेंसियों का है लेकिन वह इन पर रोक लगाने के बजाय सरकार की आलोचना को छुपाने में लगी हुई है.
सुरक्षा के लिए कोई कानून बना देना या फिर मोबाईल पर ऐप बना देने से इस तरह के अपराध ख़त्म नहीं होने वाले इसके लिए मनोवेज्ञानिक ढंग से सोचने की आवश्यकता है और इस काम के लिए सबसे पहले पहल तो प्रधान सेवक को ही करनी चाहिए.