भारत के 5 खतरनाक युद्ध, जहां बहादुरी के आगे घुटने टेक दिए शक्ति ने

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भारत देश में वैसे तो अब तक कई युद्ध हुए है जिनकी कल्पना भी हम सब से परे है. अब तक हम कई भयानक युद्धों के बारे में पढ़ चुके है. लेकिन कुछ युद्ध ऐसे भी हमारे देश में हुए है जो जिनके बारे में आज भी हम सुन उस पल की गाथा को सुन सकते है.

यह भयानक युद्ध आज भी लोगो के दिलो को दहला देते है. की की इन युद्धों में सेना की शक्ति नहीं बल्कि बहादुरी ने अपनी छाप छोड़ी थी. जिसके फलस्वरूप उन्होंने इतिहास रच दिया.

हल्दीघाटी का युद्ध (1576)

हल्दीघाटी का युद्ध इस युद्ध के बारे में आज भी हम किताबो में पड़ते है. यह युद्ध राणा प्रताप द्वारा अकबर का आधिपत्य को न स्वीकारने के कारण ही हुआ था. इस युद्ध में राणा प्रताप ने बड़ी ही बहादुरी से युध्द में अपना बाहुबली अवतार दिखाया, लेकिन अंत में उन्हें परास्त का सामना करना पड़ा. कहा जाता है की 18 जून, 1576 ई. में हल्दीघाटी का यह युद्ध मुग़ल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुआ था, जो काफी विनाशकारी और भयानक युद्धों में से एक है.

कहा जाता है की इस युद्ध में न ही अकबर को जीत मिली और न ही राणा प्रताप को हार. युद्ध के समय राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति थी तो मुग़लों के पास सैन्य शक्ति की भरमार थी. वह निरंतर अपने मान सम्मान के लिए लड़ाईया लड़ते रहे.

चमकौर का युद्ध

व्यक्ति के सामने चाहे लाख मुसीबते आ जाए लेकिन यदि आपके मनसूबे अटूट है तो आपकोअपनी मंजिल पर जाने से कोई नहीं रोक सकता है. चमकौर का युद्ध भी यमे कुछ जिन ही शिक्षा देता है. महज 40 सिक्ख अपने अटूट इरादों से 10 लाख मुग़ल सैनिकों के छक्के छुड़ा देते है तो हर कोई हैरान हो गया था. सिरसा नदी के किनारे 22 दिसंबर 1704 को चमकौर नामक एक जगह पर मुग़लों की लाखो की संख्या में सैनिक और उनके बिच महज 40 सिक्खों की टोली लेकिन जब सिक्खों ने अपना दम दिखाया तो लाखो की संख्या वाली फौज भी उनके आगे टिक न सकी.

यह युद्ध एक इतिहासिक युद्ध है. 40 सिक्खों वाली एक छोटी सी सेना का नेतृत्व कर रहे सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का सामना वजीर खान और उनकी मुग़ल सेना से हुआ था.

बताया जाता है की वजीर खान गुरु गोविंद सिंह जी को किसी भी हालत में ज़िंदा या मुर्दा पकड़ना चाहता था. क्योंकि गुरु गोविंद सिंह मुग़लों की किसी भी सूरत में अधीनता को स्वीकारना नहीं चाहते थे. 40 सिक्खों की गिनती में गुरु गोविंद सिंह के दो बेटे भी शामिल थे जिन्होंने वजीर खान के सभी मंसूबो पर पानी फेर दिया.

हाइडेस्पीस का युद्ध/ झेलम का युध्द (326 ई.पू.)

326 ई. पू. में हाइडेस्पीस नामक स्थान पर सिकन्दर और पंजाब के राजा पुरू के मध्य यह भयानक युद्ध हुआ था. झेलम नदी के पास हुए इस युद्ध को झेलम का युध्द नाम से भी जाना जाता है. युद्ध में राजा पुरू पराजित हुए थे. उनकी बहादुरी और वीरता को देखते हुए सिकन्दर के सैनिक नन्द साम्राज्य के विरूध्द लड़ाई लड़ने से मना कर दिया था.

कलिंग युद्ध (261 ई.पू.)

कलिंग (उड़ीसा) के राजा और मौर्य शासक अशोक के भींच हुए इस भयानक युद्ध में मरे गए लोगो को देखते हुए अशोक का रदय परिवर्तन हो गया था और इसके बाद उन्होंने प्रण किया की वही कभी भी किसी से भी युद्ध नहीं करेंगे जिसके बाद उन्होंने बौध्द धर्म स्वीकार किया

तराइन का प्रथम युध्द (1191ई.)

1191 ई. तराइन के मैदान में यह युद्ध लड़ा गया था जिसके चलते इसका नाम तराइन का प्रथम युद्ध पढ़ गया. यह भयानक युद्ध मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी और हिन्दू राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान के बिच हुआ था. युद्ध में शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी को करारी हार का सामना करना पड़ा जिसके फलस्वरूप उसकी सम्पूर्ण सेना भाग खड़ी हुई.

युद्ध मे ग़ोरी भीं काफी घायल हो गया था, जिसके चलते उसे भी अपनी जान बचाकर भारत से भागना पड़ा.

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