मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है, हर पहलू जिंदगी का इम्तेहान होता है
डरने वालों को कुछ मिलता नहीं जिंदगी में, लड़ने वालों के कदमों में जहान होता है.
जून 2014 का वह महीना और क्विकर जैसी बड़ी और नामी कंपनी में उसका प्लेसमेंट हुआ था. जिस पर यकीन कार पाना थोड़ा मुश्किल था. सैलरी भी हजारो में नहीं पूरे 1 लाख रुपये. जब वह इस खुशखबरी को सुनाने अपने दादा के पास गया तो उन्स्की बात पर यकीन कार पाना मुश्किल था. लेकिन सभी को यकीन दिलाने के लिए उन्हें अपनी बैंक की पासबुक भी दिखानी पड़ी तब जाकर उनकी बात पर यकीन किया गया.
यह कोई फ़िल्मी कहानी नहीं बल्कि एक रियाल कहानी है. यह कहानी बिहार के औरंगाबाद जिले के गांव चेनेव के निवासी अनूप राज की है जिस पर आज के समय में हर किसी को काफी नाज है.
कच्चे मकान में रहने के बावजूद अनूप ने अपने गांव से बाहर निकल कर अपनी पढ़ाई को जारी रखा जो उनके स्टार्टअप के लिए कडा संघर्ष था. उनकी हर बात हम सभी के लिए प्रेरणा साबित हो रही है. उनकी कहानी हर किसी के लिए प्रेरणा साबित हो रही है.
बड़ा परिवार
अनूप का परिवार एक संयुक्त परिवार था जिसमे 22 सदस्य रहते थे. अनूप जिसमें दो भाइयों में छोटे बेटे थे. उनके पिता गांव के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे व्यक्तियों में से एक थे. हालांकि उनके पिता की डिग्री परिवार के लिए कुछ काम नहीं आई. उन्हें परिवार चलने के लिए खेत में काम करना पढ़ा
उज्जवल भविष्य की ललक
व्यक्ति को तक तक कोई नहीं हरा सकता जब तक वह खुद से हार न जाये. भले ही अनूप के पिता अपनी अच्छी पढाई के बावजूद कुछ कर न पाए हो लेकिन वह अपने बच्चो को अच्छी और अधिक शिक्षा देना चाहते थे. जिसके चलते उन्होंने अपने बच्चे का एडमिशन दूसरे गांव में करा दिया. हालांकि परेशानिया तो यहाँ से शुरू हुई थी. स्कूल में दाखिला तो मिल गया लेकिन लेकिन पढाई के लिए उनके पास पैसे नहीं थे जिसके लिए उन्होंने पिता के काम में हाथ बटाना शुरू कर दिया.
सात साल की उम्र में काम
कुछ कर गुजरने की जिद ही व्यक्ति को आगे बढ़ाती है. और यही ललक अनूप में थी. पिता के कंधो पर अधिक बोझ को देखते हुए उन्होंने महज सातवीं कक्षा से ही बच्चो को ट्यूशन देना शुरू कर दिया जिससे उनकी करीब 1,000 प्रतिमाह की इनकम आ जाती थी. लेकिन किस्मत को तो अभी और भि दुःख देना था.
गुमनाम पिता
जब सब कुछ ठीक चल रहा था तब अचानक ही अनूप के पिता बिना किसी को बताये कही चले गए थे. लाख कोशिश के बाद भी उनका कोई पता नहीं चला. इतना सब कुछ होने के बाद तो जैसे अनूप के परिवार पर दुखो का पहाड़ टूट गया. पूरा परिवार इस घटना से टूट गया था. पिता के चले जाने से सभी रिश्तेदारों ने भी उनका साथ छोड़ दिया था. लेकिन अनूप ने हिम्मत दिखाकर अपने परिवार को जोड़कर रखने का प्रयास किया
आनंद सुपर 30
पिता के चले जाने के बाद भी वह परिवार को संभालते हुए अपनी पढ़ाई करते गए. ट्यूशन पढ़ते हुए उन्होंने कॉलेज में प्रवेश ले लिया और उन्होंने इंजिनियर बनने का निश्चय किया. 2009 में आईआईटी की परीक्षा में वह असफल हो गए. लेकिन अपनी असफलता को देखतेहुए अपनी सभी कमजोरियों को उन्होंने अपनी ताकत बनाया और वह आनंद सुपर 30 के आनंद कुमार से उनकी मुलाकात हुई और उनकी वह जगह पक्की हो गई.
मेहनत का असर
जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम के लिए कड़ी मेहनत कर उन्होंने इस पड़ाव को पार किया और उन्हें आईआईटी मुंबई में सिविल इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया. छोटे से गांव से आने के कारण बड़े शहरो के लोगो के बिच उन्हें कफ्यू अजीब लगता था. हालांकि उन्होंने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर रखा और स्टार्टअप के लिए वेबसाइट और प्रोजेक्ट बनाकर वह 60 हजार रुपये प्रतिमाह कमाने लग गए.
क्विकर
पढ़ाई करते हुए ही इंटर्नशिप के लिए दुबई जाने का अनूप को सुनहरा अवसर मिला. हालांकि उन्हें इसका फायदा उस समय हुआ जब उनके कमा के आधार पर क्विकर ने उनकी उपयोगिता के आधार पर उन्हें 1 लाख रुपये प्रतिमाह की नौकरी का सुनहरा ऑफर दिया. क्विकर में एक साल तक लगातार काम करने के बाद 2015 में अनूप ने हेल्थ केयर स्टार्टअप pstakecare.com को प्रारम्भ किया.
मरीजों की मदद
pstakcare.com अनूप के द्वारा प्रारम्भ की गई है जिसके अंतर्गत सभी मरीजों के लिए उनकी आवश्यकता के अनुसार और उनके उनके बजट में डॉक्टर और अच्छे से अच्छा हॉस्पिटल मुहैया करवाना, सर्जरी के बाद नर्स देखभाल के लिए, फिजियोथेरेपिस्ट की व्यवस्था के साथ सभी मरीजों को हॉस्पिटल से घर और घर से हॉस्पिटल आने-जाने के लिए सही साधन मुहैया करवाने की सुविधा भी देना है.
हुआ विस्तार
महज दो साल में ही इस स्टार्टअप ने काफी नाम कमा लिया है. यह 2015 में शुरू हुआ था, जो काफी काम समय में काफी फेल गया है. इतनी उपलब्धि हासिल करने के बाद भी अनूप को अपने गरीबी वाले दिन याद है, जिसे वह आज तक नहीं भूले है.
7classes.com
अनूप ने अपने जीवन में काफी कुछ हासिल कर लिया है. अब तो उन्हें आईआईएम और आईआईटी में भी मोटिवेशनल स्पीकर बुलाया जाता है. उनका अभी भी एक ही लक्ष्य है निरंतर आगे बढ़ना. जिसके लिए उन्होंने 7classes.com नामक क्लासरूम का शुभारम्भ भी किया है इसकी हर एक बैच में 7 बच्चों को वह पढ़ाते हैं. उनका उद्देश्य ओलम्पियाड और मैथेमेटिक्स के क्षेत्र में बच्चों को आगे बढ़ाना है.