महिलाओं की स्तिथि देखी नही गयी, नौकरी छोड़ कर बना दी अपनी बंधन बैंक जानिए चंद्रशेखर घोष की कहानी

0

हम में से अधिकतर लोग सफलता की कहानियों को पढ़कर यही सोचते है कि हम भी ऐसा कर लेंगे या हम ऐसा कर सकते है.लेकिन ज्यादातर पैसो के कारण हम अपना सपना पूरा नही कर पाते. मेरा ये मानना है की एक मिडिल क्लास घर से निकला बच्चा ही कामयाबी की सबसे ऊँची सीड़ी चड़ता है. लेकिन कई आमिर परिवार के बच्चो ने भी अपना नाम कमाया है. आज हम आपको नारीशक्ति को परिभाषित करने वाले एक पुरुष की कहानी बनाते जा रहे है. है न दिलचस्प , एक पुरुष यानी हमारी इस कहानी के हीरो का नाम है “चंद्रशेखर” , जिन्होंने न केवल 3 साल में देशभर के 21 सरकारी बैंकों को पीछे छोड़ दिया है बल्कि ये आज देश की 80 लाख महिलाओं को इस काबिल बना चुके हैं कि वो अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने परिवार का खर्च तक उठा रही हैं.

जन्म और शिक्षा

चंद्रशेखर घोष का जन्म सन 1960 में त्रिपुरा के अगरतला में हुआ था , इनके पिता वहा मिठाई की एक छोटी सी दूकान चलाते थे. उनके परिवार में कुल 9 सदस्य थे और उसी एक दूकान से उनके घर का गुज़ारा चलता था. चंद्रशेखर ने बचपन में आर्थिक तंगी देखी. घोष भी अपने पिताजी के साथ इसी दूकान में काम करते थे. और अपनी पढाई करते.

Bandhan Bank Managing Director Chandra Shekhar Ghosh Biography and story

12वी तक की शिक्षा चंद्रशेखर ने ग्रेटर त्रिपुरा के एक सरकारी स्कूल से ली. और ग्रैजुएशन करने के लिए उन्हें बांग्लादेश जाना पड़ा. सन 1978 में घोष ने बांग्लादेश के ढाका विश्वविद्यालय से सांख्यिकी में मास्टर्स की डिग्री ली है. ढाका में उनके रहने और खाने का प्रबंध “ब्रोजोनंद सरस्वती के आश्रम” में कराया गया था. क्योकि घोष के पिता ब्रोजोनंद सरस्वती के बड़े भक्त थे और सरस्वती जी का आश्रम यूनिवर्सिटी में ही था इसलिए आसानी से चंद्रशेखर के वहां रहने का प्रबंध हो गया। और फीस और कॉपी-किताबे लाने के लिए घोष बच्चो को ट्यूशन पढ़ाया करते थे.

औरो के लिए जीना पिता से सीखा

चंद्रशेखर अपने गाँव जा रहे थे , तब उन्होंने अपनी पहली कमाई 50 रू से अपने पिता के लिए एक शर्त खरीदी थी. लेकिन पिताजी ने कहा की मुजसे ज्यादा इस शर्ट की जरुरत तुन्माहेर चाचा को है तुम उन्हें ये दे दो. तभी से घोष के दिमाग में ये बात दौड़ गयी की औरो के लिए जीना ही ज़िन्दगी है.

Life में आया टर्निंग पॉइंट

साल 1985 में उनके लाइफ ने एक नई दिशा ली. ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद उन्हें ढाका के एक International Development Non Profit organisation (BRAC) में जॉब मिल गई। BRAC बांग्लादेश के छोटे-छोटे गांवों में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का हर संभव प्रयास करता था. वहां पर काम करते हुए जब घोष महिलाओं की हालत देखते थे तो उनकी आखो में आसू आ जाते थे. क्यों की वहां महिलाए कितनी भी बीमार क्यू न हो दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें मजदूरी करनी ही पड़ती थी.

दूसरी नौकरी में भी वही सब देखने को मिला

इन सभी को देखकर घोष ने साल 1998 में “Villege Welfare Society” के लिए काम करना शुरू कर दिया। यह organisation सभी लोगो को उनके अधिकारों के बारे में बताती और उनकी मदद करती थी. घोष ने यहा पर भी वही हालत देखी जो International Development Non Profit organisation में महिलाओं की देखने को मिली थी. और इन सब से निकलने का एक ही रास्ता था शिक्षा. वहा महिलाओं को Business के बारे में कोई ज्ञान नही था और उनकी अशिक्षा का भरपूर फायदा उठाया जाता था.

“Non Profit Microfinance Company” की शुरुआत की

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने खुद की स्वयं सेवी संस्था शुरू करने का सोचा. उसके लिए उन्हें अपनी नौकरी छोडनी पड़ी और 2 लाख रू का लोन भी आप खुद समझ सकते है की खुद की नौकरी छोड़ लोन लेकर एक नई अपनी कंपनी बनाना आसान बात नही है. इसका पूरा असर उनके परिवार पर भी पड़ा. उन्हें कई लोगो ने समझाया लेकिन घोष ने खुद पर यकीन किया और इसी आत्मविश्वाश की भावना ने बंधन नाम से एक स्वयंसेवी संस्था शुरू की.

Bandhan Bank Managing Director Chandra Shekhar Ghosh Biography and story

जुलाई 2001 में घोष ने बंधन-कोन्नागर नाम से “Non Profit Microfinance Company” की शुरुआत की फिर घोष ने अपना काम शुरू किया गाँव-गाँव जाकर महिलाओं को बिज़नस के बारे में बताया और लोन के बारे में समझाया लेकिन गाँव के लोग इतनी जल्दी थोड़े हि मानते है , और लोन की बात सुनकर तो घोष की तरफ शक भरी नजरो से देखते थे. लेकिन घोष ने उन्हें विश्वास दिला दिया. सन 2002 में घोष को सिडबी की और से 20 लाख का लोन मिला, जिसमे से 15 लाख का लोन 1100 महिलाओं में बाटां गया. और ब्याज की दर रखी 30% वार्षिक. लोन वापस लेने के लिए घोष को ज्यादा मशक्कत नही करनी पड़ी.

जब घोष को लगा की अब महिलाओं में सुधार होने लगा है और उनकी बनाई कंपनी लोगो के लिए काफी मददगार साबित हो रही तो उन्होंने साल 2009 में अपनी कंपनी को रिजर्व बैंक द्वारा NBFC यानी नॉन बैंकिंग फाइनैंस कंपनी के तौर पर रजिस्टर्ड करवा लिया. सरकार ने 2013 में जब बैंक स्थापित करने के लिए आवेदन निकाले तब घोष ने भी अपनी कंपनी का लाइसेंस बनवाने के लिए आवेदन दिया था. और ये लाइसेंस उनकी कंपनी को दिया गया. बैंक खोलने का लायसेंस कोलकाता की एक माइक्रोफाइनेंस कंपनी को मिलना सच में हैरत की बात थी. 2015 से बंधन बैंक ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया.

आज उनकी कंपनी की कीमत 60 हज़ार करोड़ रू हो गयी है. उनकी इस बैंक ने बैंक ने एक झटके में 21 सरकारी बैंकों को पीछे छोड़ दिया है. आज घोष की इस कोशिश ने 80 लाख महिलाओं की ज़िन्दगी बदल दी है. आज वो सभी महिलाए आत्मनिर्भर है , अपनी काबिलियत को जानती है अपने आप को पहचानती है. और अब दो वक्त की रोटी वो किसी गरीब को भी दे सकती है. अगर घोष जैसी सोच दुनिया के 10% लोगो की भी हो जाए तो मेरा मानना है की इस दुनिया की तस्वीर बदल जायेगी.

Leave A Reply

Your email address will not be published.