श्राप की घटना के बाद शुरू हुई श्रीमद्भागवत कथा की परंपरा

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ऋषि शमीक के आश्रम में उनके पुत्र श्रृंगी एवं अन्य ऋषि कुमार एक साथ रहकर अध्ययन करते थे. एक दिन जब सभी विद्यार्थी जंगल गए हुए थे तो शमीक ऋषि आश्रम में समाधि में लीन बैठे हुए थे, उसी समय प्यास से व्याकुल होते हुए राजा परीक्षित आश्रम में पहुचे. राजा ने आश्रम में इधर-उधर काफी पानी तलाश किया और शमीक ऋषि जो की समाधि में बैठे हुए थे, उनके पास गए और बड़ी विनम्रता के साथ कहने लगे कि मुझे प्यास लगी है कृपया पानी दीजिए.

राजा ने अपने वचन तीन चार बार लगातार दोहराए लेकिन ऋषि समाधि में लीन थे इसलिए वह उठे नहीं राजा को लगा कि ऋषि समाधि में लीन होने का ढोंग कर रहे हैं इस बात पर राजा को गुस्सा आ गया और पास ही पड़े एक मरे हुए साप को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया आश्रम से जाते हुए राजा परीक्षित को एक ऋषि कुमार ने दूर से देख लिया.

सभी ऋषि कुमार राजा के स्वागत के लिए उसी क्षण आश्रम में पहुंचे लेकिन जब आश्रम में पहुंचे तो राजा आश्रम से जा चुके थे साधना में लीन बैठे शमीक ऋषि गले में सभी ने मरा हुआ सांप देखा इतना देख कर श्रृंगी को क्रोध आ गया और हाथ में जल लेकर राजा को शराब देते हुए कहा कि मेरे पिताश्री का अपमान करने वाले राजा परीक्षित की मृत्यु आज से 7 दिन के बाद नागराज तक्षक के काटने से ही होगी.

इस बीच अन्य ऋषि कुमारों ने शमीक श्रमिक के गले से मरा हुआ साप निकाला तभी शमीक की साधना टूट गई जब ऋषि शमीक ने उनसे बात पूछि तो उन्हें सारी बातें विस्तार से बता दी गई. उनकी बात सुनकर शमीक बोले बेटा एक साधारण से अपराध के लिए राजा परीक्षित को सर्पदंश से मृत्यु का श्राप देना उचित नहीं है. यह बहुत ही बुरा है यह हमें शोभा नहीं देता बेटा अभी तुम्हें इन बातों का ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है इसीलिए तुम ईश्वर की शरण जाओ और अपने अपराध की क्षमा याचना करो.

राजा राजा परीक्षित को भी राजभवन पहुंचते पहुंचते अपनी गलती का एहसास हो गया. ऋषि शमीक का एक शिष्य राजा परीक्षित के पास गया और कहने लगा हे राजन ब्रह्म समाधि में लीन शमीक ऋषि की ओर से आपका उचित आदर सत्कार नहीं हुआ जिसके लिए उन्हें अत्यंत खेद है. लेकिन आपने जो मरे आप को उनके गले में डाल दिया था, जिसके कारण उनके पुत्र ने आपको आज से 7 दिन के बाद मृत्यु का श्राप दिया उनका शॉप असत्य नहीं होगा.

अतः आपसे निवेदन है कि आप अपने इन 7 दिनों तक आप सच्चे मन से ईश्वर की आराधना में लगाएं ताकि मोक्ष मार्ग का आपको रास्ता मिले. श्राप की बात सुनकर राजा परीक्षित व्यासपुत्र शुकदेव मुनि के पास गए जहां राजा परीक्षित को शुकदेवजी ने सात दिन तक लगातार भागवत-कथा सुनाई थी, तभी से पुण्यप्रद श्रीमद् भागवत कथा 1 सप्ताह सोने की परंपरा प्रारंभ हो गई.

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