औरतों के लिये नहीं, मर्दों के हक के लिये लड़ती है ये महिला

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एक ऐसी महिला ने जिसने लीक से हटकर आवाज उठायी है. जहां पूरे देश में महिला सश्क्तिकरण महिलों के हक के लिये न जाने कितनी संस्थाएं, एनजीओ खुल चुके हैं. वहीं इस महिला ने मर्दों के हक के लिये कदम बढ़ाया है. उनका कहना है कि महिलाओं के लिये तो सब लड़ रहे हैं लेकिन कई पुरुष भी समाज में महिलाओं द्वारा शोषित हो रहे हैं, जिनके लिए कोई आवाज नहीं उठा रहा है. इस महिला का कहना है, ”दहेज़ के झूठे मामलों में फंसाये गए लोगों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रही हूँ ताकि उन्हे न्याय मिल सके. विवाह एक पवित्र बंधन है और तलाक़ अच्छी बात नहीं है. लेकिन कानून इस तरह होना चाहिए कि उसका दुरूपयोग न हो.”

दीपिका नारायण

जी हां, आज हम आपको जिस महिला से बारे में बताने जा रहे हैं उसने अपने करियर को छोड़कर, मर्दों के हक के लिए आवाज़ उठाई है. इनका नाम है ‘दीपिका नारायण’ जो लम्बे अर्से से पुरूषों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं.

शुरूआती जीवन

वे इंफोसिस में सॉफ्टवेयर इंजीनियर थीं, पर नौकरी छोड़कर पत्रकारिता में आ गईं. एंकरिंग करने लगीं, डाक्युमेंट्री फिल्में बनाने लगीं और आज वे महिला संगठनों, महिलावादियों और कई एनजीओ के निशाने पर हैं. वे पहली महिला हैं, जिन्होंने दमदारी से यह कहा है कि भारत में असली प्रताड़ना तो पुरुष झेल रहे हैं. दीपिका नारायण दहेज प्रताड़ना कानून के तहत फंसाए गए पुरुषों को भी कानूनी मदद देती है.उनका कहना है कि धारा 498A (दहेज कानून) का कुछ महिलाओं द्वारा बेहद दुरुपयोग किया जाता है.

‘Martyrs of Marriage’ नाम की डाक्युमेंट्री

इस काम के साथ-साथ दीपिका डाक्युमेंट्री फिल्म भी बनाती है. पत्रकार रह चुकी दीपिका ने 2012 में इस मुद्दे पर रिसर्च शुरू की थी. दीपिका ने अपनी रिसर्च के दौरान पाया कि ज्यादातर दहेज प्रताड़ना के मामले झूठे हैं. झूठे आरोप में फंसाए जाने के कारण कुछ मामले में लड़के के मां बाप ने बदनामी के डर से आत्महत्या तक कर ली. उन्होंने इसी मुद्दे पर ‘Martyrs of Marriage’ नाम की डाक्युमेंट्री फ़िल्म बनाई है.

ऐसे हुई काम की शुरुआत

साल 2011 में दीपिका के चचेरे भाई की शादी तीन महीने में टूट गई और उसकी पत्नी ने भाई और हमारे पूरे परिवार पर मारपीट करने और दहेज मांगने का आरोप लगाया. उसने दीपिका के परिवार के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराया. उसमें दीपिका को भी अभियुक्त बनाया गया और आरोप लगाया गया कि वे भी उसे नियमित तौर पर मारा-पीटा करती थी. इसी घटना ने दीपिका को 498ए के खिलाफ खड़ा होने के लिए प्रेरित किया. ये क़ानून ब्लैकमेलिंग और पैसे की उगाही करने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा था.

महिला संगठनों ने किया विरोध

गौरतलब है कि दिसंबर 2016 में दिल्ली में निर्भया कांड के बाद सरकार ने क़ानून को और कड़ा कर दिया था. कई जज भी इस तरह के झूठे मुकदमों पर चेतावनी दे चुके हैं और दिल्ली महिला आयोग का कहना है कि अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 के बीच दर्ज रेप के कुल मामलों में से 53.2 प्रतिशत झूठे हैं.

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