चौकीदार की नौकरी से लेकर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की दमदार एक्टिंग तक का ये सफ़र

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जब कोई  इंसान बुरे वक्त से गुजरता है तो सब कहते है कि सब्र करो ये बुरा वक्त बीत जाएगा वैसे तो हर इंसान का बुरा वक्त गुजर ही जाता है. लेकिन उस इंसान से पूछिए जिस पर वो बुरा वक्त गुजर रहा होता है हमें आगे बढ़ने के लिए बीते हुए कल को पीछे छोड़ना पड़ता है लेकिन यह बात सच भी है की उस बीते हुए कल की यादों के सपनो को हमे नही भूलना चाहिए वो सपने और यादे ही है हमारे आने वाले कल को सवार सकता  है। कुछ ऐसे ही बुरे वक्त से गुजरे नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ऐसे ही शख्स है जिन्होंने इस समय कामयाबी हासिल कर ली है लेकिन बीते हुए कल में कई परेशानियों का सामना किया है.

नवाज़ुद्दीन का जन्म :-

नवाज़ुद्दीन का जन्म 19 मई 1974 को उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर डिस्ट्रिक्ट के एक छोटे से गाँव बुढ़ाना में हुआ था. अपने नौ भाई बहनों में से नवाज़ुद्दीन सबसे बड़े थे. उन्होंने अपनी पढाई इंटरमीडिएट तक उसी गाँव से की थी. इसके बाद हरिद्वार चले गए और वही से ही उन्होंने गुरुकुल कांगरी विश्वविद्यालय से ही अपनी केमिट्री में बीएससी की पढाई पूरी की.

करियर बनाते वक्त :-

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक ज़मींदार किसानो के परिवार से थे. हालांकि अपना करियर बनाते वक्त उन्होंने कभी भी परिवार से कोई आर्थिक मदद नहीं ली और बहुत बुरे दिन देखे यहाँ ताकि कि उन्होंने गुजरात जाकर एक कम्पनी में बतौर केमिस्ट काम करने लगे लेकिन इस काम में उनका मन नहीं लगता था वह कुछ अलग करना चाहते थे. लेकिन फिर भी वह काम करते रहे. लगभग 1 साल वहा नौकरी करने के नवाज़ुद्दीन को वहा कुछ कमी महसूस हुई उन्हें लगा ये काम उनके लिए नही है.

नोकरी छोड़ कर दिल्ली आए :-

वहाँ की नौकरी छोड़ कर दिल्ली आ गए पर उन्हें कुछ पता नही था की उन्हें दिल्ली में करना क्या है. एक दिन उनके किसी दोस्त ने उन्हें थिएटर पर लेकर गए. उस थियटर के रंग मंच को देख कर देखकर नवाज़ुद्दीन को लगा. यह वही काम है जो मैं करना चाहता हूँ. उन्होंने एक्टर बनने का निश्चय किया और वो एक थिएटर ग्रुप के साथ जुड़ गए.

एक्टिंग सीखना :-

नवाज़ुद्दीन ने राष्ट्रीय नाटक स्कूल में एडमिशन लेने का सोचा पर उसके लिए पहले से कुछ plays का experience चाहिए था, इसलिए उन्होंने एक प्ले ग्रुप ज्वाइन कर लिया. जिसका नाम था साक्षी थियेटर समूह यही वो ग्रुप था जिसमे उनके साथ मनोज बाजपेयी और सौरभ शुक्ला जैसे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला और एक्टिंग के गुण भी सीखे.

चौकीदार की नौकरी की :-

नवाज़ुद्दीन को छोटे-मोटे नाटकों से पैसे नहीं मिलते थे और उन्हें दिल्ली में बने रहना था. उसके लिए पैसे तो चाहिए थे. वे नौकरी देखने लगे एक दिन उन्हें किसी सार्वजनिक शौचालय की दीवार पर चिपका पोस्टर दिखा. उस पोस्टर पर लिखा था. कि security guards और watchman की जरुरत है. नवाज़ुद्दीन ने कांटेक्ट किया और उन्हें शाहदरा के पास एक खिलौने की फैक्टरी में चौकीदार की नौकरी मिल गयी.

सभी सुविधा :-

इस नौकरी से उन्होंने दिल्ली के प्रतिष्ठित National School of Drama (NSD) में एडमिशन ले लिया. यहाँ पर हर प्रकार की सुविधा थी, खाना-पीना, रहना सारी facilities थीं बस आपको एक ही काम करना था वह है एक्टिंग.

मदद मांगी :-

नवाज़ुद्दीन ने NSD के एक सीनियर से मदद मांगी सीनियर उन्हें रखने को तैयार हो गया. लेकिन उसने एक शर्त रखी कि नवाज़ुद्दीन को उसके लिए खाना बनाना होगा नवाज़ुद्दीन इसके लिए भी तैयार हो गए.

फिल्म करियर :-

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने अपने फिल्म करियर की शुरुवल शूल और सरफरोश जैसी फिल्मों से हुई थी. लेकिन उस फिल्म में उन्हें कम समय के लिए लिया गया था. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मो में छोटे-मोटे रोल किए लेकिन उनकी असली पहचान तो आमिर खान प्रोडक्शन की फिल्म पिपली लाइव से मिली थी. उसके बाद तो उन्होंने कई हिट फिल्मे दी जैसे- कहानी, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, तलाश, द लंचबॉक्स आदि. उन्हें कई फिल्मो के लिए पुरुस्कार भी मिले थे. इसके बाद तो नवाज़ुद्दीन ने अपनी एक अलाग ही पहचान बना ली.

दिल को जीत लिया :-

2015 में नवाज़ुद्दीन की आई फिल्म मांझी द माउंटन मेन में उनकी एक्टिंग की बहुत ही तारीफ की गई थी. इस फिल्म में दशरथ मांझी का किरदार निभाया था. जो की वह अकेले ही पहाड़ को काटता है इस फिल्म से ही दर्शंको के दिल को जीत लिया था.

14 साल का लम्बा सफ़र :-

नवाज़ुद्दीन सिद्दकी से बना फैजल खान ने कभी पीछे मुड़ कर नही देखा. अब नवाज़ भीड़ का हिस्सा नही रहे और न ही उनको किसी छोटे मोठे रोल के लिए किसी की जरूरत पड़ती थी. आज नवाज़ुद्दीन सिद्दकी ने फ़िल्म इंडस्ट्री में खुद को साबित करने के लिए 14 साल का लम्बा सफ़र किया है. जिसमे वो कई बार गिरे कई बार बुरे वक्त से गुजरे लेकिन उनके हौसले बुलन्द थे. जिन हौसलो ने आज उन्हें इस मुकाम पर पहुचा दिया है कि उनकी एक्टिंग का लोहा आज दुनिया मानती है.

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