28 नवम्बर 1945 को मुल्तान में जन्मे अमर गोस्वामी में से एक थे. वह हमेशा गंगा और मनोरमा जैसी देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं से लंबे समय तक जुड़े रहे थे. अमर गोस्वामी साहत्यिक संस्था वैचारिकी के संस्थापक भी रहे. उन्होंने कई साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन भी किया था.
अमर गोस्वामी का जन्म :
अमर गोस्वामी का जन्म 28 नवम्बर, 1945 को एक बांग्ला भाषी ब्राह्मण परिवार में मुल्तान (विभाजित भारत) में हुआ था. जब अमर गोस्वामी दो वर्ष के थे, तब उनका परिवार देश के बंटवारे के समय मुल्तान से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर नगर में आकर बस गया था. उन्होंने अपनी शिक्षा इलाहाबाद के विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय के साथ स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी.
सेवाएँ प्रदान की :
शिक्षा के क्षेत्र में अमर गोस्वामी ने एक प्राध्यापक के रूप में अपना योगदान दिया था. महिलाओं की बहुचर्चित पत्रिका मनोरमा में उन्होंने बतौर उप-संपादक अपनी सेवाएँ प्रदान की थीं. उन दिनों कथाकार अमरकांत इस पत्रिका के संपादक थे. अमर जी ने मनोरमा में लगभग 6 वर्ष तक काम करने के बाद वह दिल्ली चले गए.
अमर गोस्वामी की रचनाएँ :
अमर गोस्वामी जी कई प्रकार की रचनाए लिखी है इसमे से कहानी संग्रह में कई कहानी लिखी है जैसे कि हिमायती, महुए का पेड़, धरतीपुत्र, अपनी-अपनी दुनिया, उदास राघवदास, कल का भरोसा, महाबली, भूल-भुल्लैया, बूजो बहादुर, इक्कीस कहानियाँ लिखी है.
पुस्तकें प्रकाशित :
बाल साहित्य में अमर गोस्वामी जी की शाबाश मुन्नू से लेकर कई बच्चों की कहानियों की कुल सोलह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और इन्होने इस दौर में हमसफर का उपन्यास लिखा है.
अनुवाद किया है :
अमर जी ने बांग्ला से हिंदी में साठ से अधिक अनूदित किया है और उनकी पुस्तकें प्रकाशित भी हुई है. कुछ कहानियों का टी.वी. रूपांतरण भी किया जा चूका है और कथा-पत्रिका कथांतर, आगामी कल, मनोरमा, अक्षर भारत, नया ज्ञानोदय आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अमर गोस्वामी जी ने वरिष्ठ पदों पर संपादन सहयोग दिया है.
हिन्दी लेखक पुरस्कार :
अमर गोस्वामी जी को हिमायती कहानी संग्रह पर केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा अहिन्दी भाषी हिन्दी लेखक पुरस्कार दिया गया था और इन्हे प्रेमचंद पुरस्कार से भी सम्मानित भी किया जा चूका थे. और केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, हिन्दी अकेडमी दिल्ली, इंडो सोवियत लिटरेरी सोसायटी के कई सम्मान भी उन्हें मिले थे.
निधन :
28 जून 2012 को अमर गोस्वामी का निधन अपने ही निवास स्थान गाजियाबाद में हुआ था. उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दिया था. जो हमेशा याद रखा जाएगा.