भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने राजनैतिक दौर में एक से बढ़ कर एक काम किये है जिन्हे आज भी याद किया जाता है कुछ व्यक्ति इंदिरा गाँधी के कई फेसलो से काफी नाखुश भी रहते थे लेकिन उन्होंने सतत सत्ता में रहकर जनता की भलाई के कार्य किये है.
कुछ व्यक्ति उनके द्वारा किये गए काम पर सवाल उठाते हुए उनकी राजनीती को गलत बताते थे हालांकि ऐसा तो सभी के साथ होता है जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को करता है तो कुछ व्यक्तियों को उनका काम काफी पसंद आता है तो कई व्यक्ति उन कामो की निंदा करते है, और उन पर सवाल उठाते है.
इंदिरा गाँधी के राजनैतिक दौर को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा की वह काफी कड़क स्वभाव की नेता थी. वह हमेशा जनता के हित में फैसले लेती थी उन्होंने इस बात की कभी भी परवाह नहीं की उनके विरोधी उनके बारे में क्या सोचते है वह काफी कड़क स्वभाव से अपने फैसले सुनाती थी.
इंदिरा गाँधी देश की ऐसी इकलौती महिला है जो भारत देश की प्रधानमंत्री रह चुकी है लेकिन 31 अक्टूबर 1984 के दिन देश ने इस महान शख्शियत को हमेशा के लिए खो दिया उनके ही रक्षको ने भक्षक बन कर उन्हें मोत के घाट उतार दिया.
इंदिरा गाँधी ने उस दौर में महिला शक्ति को बढ़ावा दिया था जब देश की रजनीति में पुरषो का डंका बजता था उस दौर में उन्होंने बताया की महिलाये भी समाज और देश के राजनीतिक गलियारे की कमान संभाल कर देश को चला सकती है.
इंदिरा गाँधी ने अपने राजनैतिक सफर में लिए यह कड़क फैसले
अमेरिका से मदद लेना
24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बन कर देश की कमान को अपने हाथो में लिया उस समय देश की अर्थव्यवस्था बहुत ही ज्यादा खराब थी.
इस स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने अमेरिका से देश की बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई को ख़त्म करने के लिए आर्थिक तरीके से और अनाज के रूप में उनसे सहायता प्राप्त की थी.
डॉलर के मुकाबले कीमत गिराना
जब अमेरिका ने 1966 में भारत की मदद की तो उन्होंने अपनी करेंसी का अवमूल्यन करने के लिए कहा था लेकिन जून 1966 में इस बात की कड़ी आलोचनाओं को देखते हुए इंदिरा गांधी ने रूपए का अवमूल्यन करने का फैसला ले ही लिया.
जिसके चलते डॉलर रुपए के मुकाबले और भी ज्यादा महंगा हो गया वैसे तो उनके इस फैसले की काफी आलोचना की लेकिन उनके इस काम का असर धीरे-धीरे दिखने लगा.
देश में भूखमरी में कमी दर्ज की गई यहाँ तक की वित्तीय घाटा भी कम हुआ था आयात-निर्यात घाटा भी 930 करोड़ से 100 करोड़ के पास आ गया था.
बैंको का राष्ट्रीयकरण
1969 में इंदिरा की सरकार ने बड़े फैसले लेते हुए 14 बड़े-बड़े बैंको पर लगाम कसने का फैसला लिया और उनका राष्ट्रीयकरण कर सभी को चौका दिया सरकार ने ऐसा इसलिए किया क्यों की बैंक अपनी मर्जी खुद चलाते थे.
वह अपनी नीतिया स्वयं बनाते थे वह अपने फायदे के अनुसार ही ग्राहक चुनते थे कुछ बैंक तो अपने फायदे के लिए बड़े उद्योगपतियों को अच्छा खासा कर्जा दे देते थे.
लेकिन किसान को कर्जा देने में वह काफी आनाकानी करते थे इंदिरा सरकार के द्वारा राष्ट्रीयकरण करने के बाद बैंकों के नए नियम बनाए गए जिसके अंतर्गत एक निश्चित राशि बैंक को कर्ज के तोर पर किसान को भी देनी आवश्यक है.
प्रिवी पर्स की समाप्ति
1971 में इंदिरा गांधी ने बेहद ही अहम् फैसला लेते हुए राजघरानों को मिलने वाले प्रिवी पर्स को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया 1946-47 के दौर में भारत में रजवाड़े हुआ करते थे.
जिन्हे लुभाने के लिए सरकार प्रिवी पर्स ने एक तरह की पेंशन देने की घोषणा की थी जिसके अंतर्गत जनसंख्या के आधार पर पूर्व शासकों को एक निश्चित राशि दी जाती थी.
बांग्लादेश की आजादी
1971 में हुए भारत- पाकिस्तान युद्ध में भारत को मिली पाकिस्तान से जित का पूरा शैर्य इंदिरा गांधी को जाता है यह उनकी बड़ी उपलब्धियों में गिना जाया जाने लगा था मार्च 1971 के दरमियान पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) में राष्ट्रवादी बंगालियों के साथ-साथ छात्रों, नेताओ का कत्लेआम करना शुरु कर दिया था.
1970 में हुए आम चुनाव को भी पाकिस्तानी सेना ने इंकार कर दिया और पीएम मुजिबुर्र रहमान को गिरफ्तार कर बंदी बना लिया बिगड़ते हालात को देखते हुए हजारो की संख्या में शरणार्थी ने भारत आने का निश्चय कर यहाँ बसने लगे.
उस समय दिसंबर 1971 में पाकिस्तान ने भारत पर हवाई करते हुए हमला बोल दिया लेकिन इंदिरा ने तत्काल स्थिति को समझते हुए सेना प्रमुख फील्ड मार्शल स्वर्गीय जनरल सैम मानेकशॉ से बात की और युद्ध में भारत भी शामिल हुआ.
जिसके चलते16 दिसंबर 1971 को भारत की सहायता से बांग्लादेश को आजाद कराया गया पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी उस समय इंदिरा गांधी के इस फैसले का समर्थन करते हुए काफी तारीफे करते हुए उन्हें दुर्गा माता का रूप बताया था.
आपातकाल की घोषणा
जब भी भरत के आपातकाल की बात की जाती है तो आपातकाल और इंदिरा गांधी का नाम एक साथ लिया जाता है. ऐसा इसलिए क्यों की 12 जून 1975 को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना अहम फैसला सूनाते हुए कहा था की 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने चुनाव के नियमो का उल्लंघन किया है.
उनके अनुसार इंदिरा ने इसमें गलत तरीकों का प्रयोग किया था राज नारायण ने उनके खिलाफ अर्जी लगाईं थी. जिसके जवाब में कोर्ट ने इंदिरा का चयन रद्द कर उन पर 6 सालो तक कोई भी चुनाव न लड़ने का आदेश दिया था. लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री की गद्दी का भार संभालने की अनुमति दी गई थी.
आम चुनाव
23 जनवरी 1977 को जब इंदिरा ने आम चुनाव का देश में ऐलान किया तो सभी को उम्मीद थी की जनता पुनः उन्हें सत्ता को संभालने का मौका अवश्य देगी लेकिन पासा पलट गया और छठे आम चुनाव में 542 लोकसभा सीटों में से 298 सीटें तो बीजेपी को मिल गई थी.
सत्ता में वापसी
सत्ता की भूख अभी भी ख़त्म नहीं हुई थी 1978 में इंदिरा गांधी ने पुनः चुनाव लड़ते हुए चिकमगलूर सीट से लोकसभा उप चुनाव को जित कर बता दिया की अभी भी उनमे सता की ललक बाकि है.
जनता पार्टी में गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा के खिलाफ लिए गए आपातकाल फैसलों के अंतर्गत मामलो के अंतर्गत गिरफ्तारी करवाई गई. सत्ता में जनता पार्टी में भीतरी कलह की तरह फैली, जिसका फायदा इंदिरा गांधी ने लिया और उन्होंने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमन्त्री बनाने का समर्थन की बात कही थी.
1979 जुलाई में चरण सिंह पीएम के पद पर काबिज हुए हलाकि इंदिरा ने समर्थन की बात एक शर्त पर कही थी की उन पर और उनके बेटे संजय पर लगाए गए सभी आरोप ख़ारिज किये जाए इस तरह इंदिरा ने राजनीति में अपना रास्ता साफ़ किया.
ऑपरेशन ब्लू स्टार
यह आपरेशन ही इंदिरा के जीवन का अंत बना 1977 में पंजाब में विधानसभा चुनाव में अकाली दल ने जित दर्ज की थी. अकाली दल को कमजोर करने के लिए कांग्रेस ने कट्टर सिख जरनैल सिंह भिंडरावाले को राजनीति में उतारा.
लेकिन कुछ सालो के बाद ही पत्रकार जगत सिंह की हत्या के आरोप के चलते भिंडरावाले की गिरफ्तारी हो गई. जिसके कारण उन्होंने अपने रिश्ते कांग्रेस से तोड़ लिए थे.
भिंडरावाले ने पंजाब में 1982 में अधिक स्वायत्ता की मांग रखी जो आगे चल कर हिंसा में बदल गई और वहा आतंकवादी घटनाएं होने लग गई.
1983 में शिरोमणी दल के अध्यक्ष और पंजाब पुलिस के DIG की हत्या का एक बार फिर शक भिंडरावाले पर आ गया जिसके चलते 1984 में भिंडरावाले अपने समर्थकों के साथ अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में जा घुसा उनके पास कई हथियार थे.
देश की प्रधानमन्त्री होने के लिहाज से इंदिरा ने एक्शन लेते हुए सेना को आदेश दिया और उन्होंने आतंकियों के खात्मे के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया. इस ओपरेशन में भिंडरावाले की मौत हो गई और स्वर्ण मंदिर को आजाद कराया गया.