किसी ने क्या खूब कहा है, “काम करो ऐसा की पहचान बन जाए, हर कदम ऐसा चलो की निशां बन जाए, यंहा जिंदगी तो सभी काट ही लेते हैं, जिंदगी जियो ऐसी की मिसाल बन जाए.”
इन दिनों रमजान का महीना चल रहा है. रूह को पाक करके अल्लाह के करीब जाने का मौका देने वाला रमजान हर इंसान को अपनी जिंदगी सही राह पर लाने का पैगाम देता है. भूख-प्यास की तड़प के बीच जुबान से रूह तक पहुंचने वाली खुदा की इबादत हर मुसलमान को खुदा के करीब ला देती है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे जो रमजान पर खुद भूखा रहकर रोजाना भूखे लोगों को खाना खिलाता है. इसी शख्स का नाम है सैयद उस्मान अज़हर मक़सूसी.
मकसूसी का कहना है कि भूख से बड़ा ‘मजहब’ और रोटी से बड़ा ‘ईश्वर’ हो तो, बता देना… ये शख्स लोगों के पेट की आग को समझता है. इसी पेट की आग को उसने अपना मजहब बना लिया है. हमारी सरकारें चाहे जितने दावे कर लें लेकिन आज भी देश में करोड़ों लोगों की भूख से मौत हो जाती है.
जी, हां हमारे देश में एक ऐसा शख्स भी है जो बेबस लोगों की भूख मिटाना अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद और इंसानियत का पहला मजहब मानता है. वह रोजाना खाना पकाकर सैकड़ों लोगों की भूख मिटाता है.
हैदराबाद के दबीरपुरा फ्लाईओरवर के पास ऐसा एक भी दिन नहीं गुजरता है जब यहाँ बसे बेघरों को दोपहर का खाना नहीं मिलता हो. इसी फ्लाईओवर के पास प्लास्टर ऑफ पेरिस की दुकान चलाने वाले सैयद उस्मान अजहर मकसुसी पिछले छह साल से भूखों और ज़रूरतमंदों की भूख मिटाते आ रहे हैं.
अजहर के पिता ऑटो चलाते थे. अजहर ने बताया कि जब वह महज चार साल का था तभी मेरे पिता चल बसे. चार भाई-बहनों में अजहर तीसरे नंबर के हैं.पिता का साया उठने के बाद से ही उन्होने पढ़ाई छोड़ मजदूरी करने लगे थे. अजहर का कहना है कि वह अपने दादा के घर रहते थे. उनको बड़े परिवार की जिम्मेदारी संभालनी पड़ती थी. उन्हें दिन में एक बार खाना मिलता था. कभी-कभी वह भी नहीं मिलता था. लेकिन परिस्थितियां जो भी हों उन्होने अल्लाह का शुक्रगुजार बने रहना चाहिए.
चार साल की छोटी उम्र में ही सैयद उस्मान के सिर से पिता का साया उठ गया था. जिसके बाद उन्होने भी भूख की पीड़ा को समझा था. उस्मान कहते हैं कि,’ एक बार एक लड़की लक्ष्मी भूख से झटपटा रही थी. वह बिलख-बिलख कर रो रही थी. तो मैंने उसे खाना खिलाया और तभी फैसला किया कि मेरे पास जो सीमित संसाधन है उससे मैं भूखों की भूख मिटाऊंगा.‘ यहीं से उन्हे प्रेरणा मिल गयी और आज तक वह इस कार्य को बखूबी अनजाम दे रहे हैं.
शुरुआत में सैयद की बीवी बेघरों के लिए खाना बनाया करती थीं. इसके बाद अब सैयद खुद फ्लाईओवर के नीचे खाना बनाते हैं. इससे उनके किराए की भी बचत होती है. पहले इन गरीबों की संख्या 30 थी, जो अब बढ़कर 150 हो गई है.जिन्हें अजहर रोज खाना खिलाते हैं.
यहाँ के अलावा तीन साल पहले उन्होंने सिकंदराबाद स्थित गांधी अस्पताल में भी भूखों को खाना खिलाने का काम शुरू कर दिया था. इसके लिए उन्होंने ‘सनी वेल्फेयर फाउंडेशन’ नाम की एक संस्था बनाई थी. अब इस संस्था ने खाना पकाने के लिए दो रसोइयों को रख लिया है. फाउंडेशन की वैन में रोज 150-200 लोगों का खाना जाता है. इसके अलावा ये फाउंडेशन कुछ अन्य NGO के साथ मिलकर बेंगलुरु, गुवाहाटी, रायचूर और तांदुर शहर में रोजाना आहार कार्यक्रम का संचालन करता है.
पूरी दुनिया से भूख का नामोनिशान मिटा देने के जज्बे से लैस अजहर हाल ही में अभिनेता सलमान खान के कार्यक्रम ‘बीइंग ह्यूमन’ में देश के उन चुनिंदा आधा दर्जन लोगों में शुमार हो चुके हैं, जो सचमुच के जन नायक हैं. वह अमिताभ बच्चन के कार्यक्रम ‘आज की रात है जिंदगी’ में भी शामिल हो चुके हैं. जो लोग अजहर के मिशन में शामिल होना चाहते हैं, उनसे राशन तो वह स्वीकार लेते हैं लेकिन नकद पैसे लेने से साफ मना कर देते हैं.
मॉ से मिली प्रेरणा
अजहर को सबसे बड़ी प्रेरणाश्रोत उनकी मां रही, उनका मानना हैं कि अल्लाह ही गरीबों के लिए उनके मार्फत भोजन की व्यवस्था करता है. भूख वाकई बड़ी बेरहम बला है. इसको दूर भगाने के प्रयास में लगे अजहर कहते हैं- “मैं यह नहीं देखता कि कौन खाने को आ रहा है. मैं बस यही जानता हूं कि सभी भूखे हैं. यही उनका ठिकाना है. दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम. आज आप देख सकते हैं कि शहर में विभिन्न जगहों पर अनेक लोग मुफ्त में खाना बांटते हैं. लेकिन मेरा सपना तभी साकार होगा जब इस देश और दुनिया से भूख मिट जाएगी. भूख नाम की कोई चीज नहीं होनी चाहिए.”