महिला के बिना पुरुष अस्तित्व विहीन है, तो फिर क्यों महिलाओ का अस्तित्व विहीन है

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हमारे देश में महिलाओ को देवी का दर्जा दिया गया है. महिला शक्ति का दूसरा रूप होती है जिसका प्रमाण हम हमारे इतिहास काल से देखते आ रहे है. हमारे देश की कई महिलाओ ने देश के लिए अपनी जान को भी डाव पर लगा दिया. जिनकी बहादुरी आज भी हमारे लिए मिसाल बानी हुई है.

हमारे देश में प्रतिवर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. इस दिन को पूरा देश एक त्यौहार के तोर पर मनाता है. साथ ही महिलाओंयो की उपलब्धियों और उनके द्वारा किये गए वभिन्ना कार्यो को याद किया जाता है. महिलाओ ने हमें दिखा दिया है की हमारी संस्कृति में पुरषो से कही अधिक भूमिका महिलाओ की होती है.

भारतीय ग्रंथो में भी महिलाओ को सम्मान देते हुए उनका गुणगान किया गया है. जिस तरह शरीर के लिए आत्मा का होना जरुरी है ठीक उसी तरह समाज में महिलाओ का होना भी जरुरी है.

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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता

जिस स्थान पर नारियों की पूजा होती है, उन्हें सम्मान मिलता है, ईश्वर भी उसी स्थान पर निवास करते है. यह सच ही है महिलाओ को भारतीय सभ्यता में शक्ति का रूप बताया गया है, और उस शक्ति का यदि हम सम्मान नहीं करेंगे तो ईश्वर उस स्थान पर कैसे निवास कर सकते है.

नारी शक्ति

महिला के बिना के पुरुष का अस्तित्व कुछ भी नहीं है. इस सम्पूर्ण सृष्टि और मानव जगत की आधार स्त्री है. नारी को सृजन की शक्ति मानते हुए विश्वभर में 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के तोर पर मनाया जाता है.

हजारो वर्ष पूर्व सतयुग, से लेकर द्वापर युग में भी सभी देवता नारी को शक्ति का रूप मानते हुए उनका सम्मान करते थे. 8 मार्च को भले ही हम महिलायों के सम्मान में इस दिन को मनाते है लेकिन उनका सम्मान उस दिन होगा जब हम दिल से उनका सम्मान करते हुए उन्हें उनकी काबिलियत को बढावा देंगे. हमें समाज की कुरीतियों को ख़त्म करना होगा. तभी समाज में नारी शक्ति का मान बढेगा.

पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

विश्व में सर्वप्रथम बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 28 फरवरी 1909 को अमेरिका में सोशालिष्ट पार्टी के आह्वान पर मनाया गया था. महिला दिवस मानाने का उस समय प्रमुख उद्देश्य सिर्फ महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त करना था.

क्योंकि उस समय महिला को कही भी वोट देने का अधिकार प्राप्त नहीं था. महिला दिवस की महत्वता उस समय अधिक बड़ गई जब रुसी महिलाओं से रोटी, कपड़ो के लिए वह की सरकार के लिए आन्दोलन चालू कर दिया था.

जिस समय यह आंदोलन चालू किया गया उस समय जुलियन कैलेंडर के अनुसार 28 फरवरी, रविवार का वह दिन था. हालांकि ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार 8 मार्च को वह दिन पड़ता है. तभी से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 28 फरवरी को ना मनाते हुए 8 मार्च को मनाया जाने लगा.

भारतीय संस्कृति और इतिहास के पैन नारी शक्ति से भरे पड़े है. भारत की आजादी में भी हमारे देश की कई बहादुर महिलाओं ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए. रानी लक्ष्मी बाई और उनके जैसे न जाने कितनी वीर महिलाओ ने हसते-हसते अप्नवे प्राणो की आहुति दे दी.

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