घरों में पानी भरने वाली आज बन गई 20 लाख का टर्नओवर देने वाली वेबसाइट की मालकिन

0

हमारा भारत देश अपनी अलग-अलग कलाओं के लिए एक एतिहासिक देश माना जाता है जहाँ पर हर क्षेत्र में हमें कई तरह की कलाएं देखने को मिलती है वो कला जो अपने आप में अद्भुत होती है और उस अद्भुत कला को हमेशा जीवित रखना एक बहुत बढ़ी चुनौती भरा काम होता है लेकिन इस चुनौती को स्वीकार करते हुए भादरोई नामक गाँव की पाबिबेन ने अपनी कला को एक एतिहासिक पहचान दी है।

पाबिबेन एक ऐसी आत्मनिर्भर महिला है जिसने इस बदलती जनरेशन को साबित कर दिया है की उपलब्धि और काबिलियत पैसो की नहीं बल्कि मेहनत की मोहताज होती है जहाँ पाबिबेन ने अपनी जिंदगी में आई कई रूकावटो को पार कर के आज शिखर की चोटी को चुवा है।

भादरोई गाँव पाबिबेन रबारी

पाबिबेन रबारी कच्छ गुजरात के अंजार तालुका में भादरोई गाँव की रहने वाली है शुरुआती उम्र में कढ़ाई का काम शुरू किया और हरि जेरी नामक एक कढ़ाई कला का आविष्कार किया रबी ने पाबी बैग नमक शॉपिंग बैग की एक लाइन बनाने के लिए कंपनी बनाई जिसका यूज कई बॉलीवुड़ और हॉलीवुड़ फिल्मो में किया जाता है।

पिता की म्रत्यु के बाद 

पाबिबेन महज़ अपनी 5 वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो चुकी थी वह अपनी 3 बहनों में सबसे से बड़ी है घर की परिस्थितियां बिगड़ने की वजह से उन्हें अपनी कम उम्र में ही जिम्मेदारी उठानी पड़ी जब उनके पिता की म्रत्यु हुई उस टाइम उनकी माँ गर्भवती थी और उसी हालत में उन्हें पुरे परिवार को पालने के लिए घरों में काम करना पड़ता था।

माँ के साथ करती थी काम

अपने घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से पाबिबेन ने अपनी चौथी कक्षा की पढाई छोड़ कर महज़ 10 वर्ष की उम्र में ही अपनी माँ के साथ काम पर जाने लग गई थी और वह लोगो के घरो में पानी भरने का काम करती थी है जिसके बदले में उन्हें केवल 1 रूपए मजदूरी मिलती थी।

समुदाय दहेज़ प्रथा

पांरपरिक रूप से इस सुमदाय में यह प्रथा होती है की लड़कियों को अपनी शादी के बाद दहेज के लिए अपने हाथो से ही सिलाई और कढ़ाई किए हुए कपड़ो को ससुराल ले जाना होता है और उन्हें एक कपड़ा तैयार करने में कम से कम 1 से 2 महीने लग जाते है जिस की वजह से उन्हें काफी टाइम तक अपने मायके में ही रह कर अपने दहेज़ की तैयारी करनी पड़ती है और इस तरह की समस्या को देखते हुए समुदाय के बड़े-बुजुर्गो ने इस प्रथा को अब समाप्त कर दिया है।

डिजाइनिंग का काम सीखी

अपनी सिलाई-कढ़ाई वाली कला को दुसरों तक पंहुचने के लिए और उसे ज्यादा से ज्यादा विकसित करने के लिए उन्होंने ट्रिम और रिबन की तरह कपड़ो पर की जाने वाली कढ़ाई के लिए एक मशीन एप्लीकेशन की शुरुआत की जिसका नाम उन्होंने हरी-जरी रखा और काफी टाइम तक उन्होंने इस पर काम किया और वह रजाई तकिये के कवर और कपड़ो पर भी कई अलग-अलग तरह के डिजाइनिंग काम सीखें इस में उन्होंने महीने के 300 रूपए की मजदूरी दी जाती थी।

शादी के बाद जिन्दगी में आया नया मोड़

पाबिबेन की शादी 18 वर्ष की उम्र में हो गई थी और उनकी शादी में कुछ विदेशी लोग भी आइये थे और उनके द्वारा बनाये गए बैग की उन्होंने बहुत तारीफ की पाबिबेन ने कुछ गिफ्ट के तौर पर उन विदेशियों को कढ़ाई किए हुए बैग दे दिए बस तब से उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ ले लिया।

कैसे पड़ा पाबिबैग का नाम

शादी में आए विदेशियों ने गिफ्ट में दिए गए बैग को पाबिबैग के नाम से प्रसिद्ध कर दिया जिस से उन्हें अंतराष्टीय स्तर तक अपनी कला को पहुचाने में काफी मदद मिली जिसके बाद पाबिनेन ने अपनी कला को ओर निखारते हुए कई तरह की कला प्रदर्शन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।

पाबिबेन डॉटकॉम का निर्माण  HTTP://WWW.PABIBEN.COM

पाबिबेन ने गाँव में रहने वाली कई महिलओं के साथ मिल कर अपने काम को ओर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है और एक पाबिबेन डॉट कॉम का निर्माण किया जिसके बाद उनकी महिला टीम को अहमदाबाद से लगभग 70 हजार का पहला ऑडर मिला।

20 लाख का टर्नओवर

पाबिबेन आज कम से कम 25 तरह की अलग-अलग डिज़ाइन पर काम कर रही है और अपनी टीम में 60 से भी ज्यादा महिलओं को रोजगार दे रही है आज उनके द्वारा चलाई जाने वाली पाबिबेन डॉट कॉम की वेबसाइट कम से कम सालाना 20 लाख रूपए का टर्नओवर कर रही है।

फिल्मो में भी बनाई अपनी जगह

पाबिबेन के बनाई गई डिज़ाइन न केवल गुजरात तक सिमित है बल्क़ि फ़िल्मी पर्दों पर भी अपनी एक अलग ही जगह बनाई है और उनका काम देखते हुए सरकार ने उन्हें 2016 में ग्रामीण आंत्रप्रेन्योर की ओर से हेल्प करने के लिए जानकी देवी बजाज के पुरस्कार से भी नवाज़ा गया है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.