बुराई के रूप में लंका पति लंकेश इतिहास में अमर है, भले ही उन्हे राक्षस की श्रेणी मे गिना जाता है, लेकिन यह भी सती है की वह एक महान ज्ञानी राजा था. रावण राज का इतिहास हर कोई जानता है. पुराणों मे भी बताया गया है की है रावण जितना बड़ा ज्ञानी था उतना ही बड़ा भक्त भी था. रावण की तपस्या के किस्से आज भी इतिहास में के पन्नो मे दर्ज है.
इतिहास मे दर्ज जानकारी के अनुसार कहा जाता है की रावण ने तपस्या से भगवान् शिव को प्रसन्न किया ओर उनसे पासर पत्थर प्राप्त किया था, जिससे रावण ने सोने की लंका का निर्माण कराया था. लेकिन बहुत कम व्यक्ति जानते है की रावण के पारस पत्थर का एक किस्सा राजस्थान के छोटे से गाँव से भी संबंध रखता है.
रावण को इस गाँव से मिला था पारस पत्थर :-
अलवर शहर से करीब 3 किमी दूर स्थित है रावण देहरा गांव स्थित है. इस गांव का व्याख्यान जैन धर्म के इतिहास में भी किया गया है, कहा जाता है की रावण इस स्थान पर भगवान शंकर के स्वरूप पार्श्वनाथ की पूजा करने के लिए आया था.
इस स्थान पर घोर तपस्या करने के बाद रावण को पारस पत्थर मिला था, मान्यता के अनुसार कहा जाता है की पारस पत्थर के संपर्क से लोहा भी सोने का रूप धारण कर लेता है. रावण देहरा गांव में प्राचीन जैन मंदिर के भग्नावशेष भी प्रपट हुये है, कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण राक्षसराज ने ही करवाया था.
पुराणों के वर्णन के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी जैन धर्म की बहुत बड़ी अनुयायी थी, वह भी इस मंदिर में रावण के साथ पूजा करने आती थी. पूजा के दौरान ही वह इंद्रदेव प्रकट हुए और उन्होने पार्श्वनाथ भगवान की पूजा करने के बाद चमत्कारिक पारस पत्थर का वरदान लेने के लिए कहा.
उनकी बात सुन कर रावण ने बहुत कठिन तप करना प्रारम्भ कर दिया, जिसके फलस्वरूप रावण ने पारस पत्थर को प्राप्त किया. देहरा गांव के जैन मंदिर की सभी मूर्तियों को बीरबल मोहल्ले में जैन मंदिर में स्थापित किया गया है.
इस मंदिर को रावण-पार्श्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है की रावणदेहरा में जैन मंदिरों के अब भी अवशेष मौजूद हैं.