अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी

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प्राचीन काल से ही महिलाओं का विशेष स्थान रहा है भारतीय ग्रंथों में हूं नारी को देवतुल्य एवं पंचमी या बताया गया है धारणाएं तो यही कहती है कि देवी शक्तियां वहीं पर निवास करती हैं जहां नारी का सम्मान होता है मैं प्रतिष्ठा मिलती है और एक समान दृष्टि से उन्हें देखा जाता है. कोई भी राष्ट्र या समाज तब तक अग्रसर नहीं हो सकता जब तक वहां महिलाओं को एक समान दृष्टि से देखते हुए संपूर्ण नारी जाति को बिना भेदभाव हिंद भाव का त्याग करें.

विशिष्ट कार्य के संपादन में नारी शक्ति की उपस्थिति का होना अतुलनीय माना जाता है युगो युगो से भारतीय नारी का समाज में पूजनीय स्थान अपनी महत्वता को अच्छी बना रखा है सीता, गायत्री ,सती सावित्री ,अनुसूया कई नारियल यह बताया है कि नारी पूजनीय और देवीय रूप है.

बदलते दौर के साथ साथ भारतीय नारी के दशा में भी परिवर्तन हुआ है जिस नारी को कोई चिनिया और देवी अरूप समझा जाता था उसकी दशा परिवर्तित होते हुए उन्हें समाज में काफी हिन भावना से होकर गुजरना पढ़ रहा है.

अंग्रेजों का शासन काल आया था भारतीय नारी की दशा अत्यंत ही गंभीर और चिंतनीय हो गई थी अंग्रेजों के शासन काल में भारतीय नारी को अबला की संज्ञा दी जाने लगी, और उसे समाज में हिंन भावना के साथ देखने के अलावा उसका तिरस्कार किया जाने लगा.

अंग्रेजों के द्वारा दी जा रही वेदना के साथ साथ समाज में आई व्यभिचार और सामाजिक कुरीतियों के अलावा रूढ़िवादिता ने नारी को दिन प्रतिदिन कमजोर बना दिया. नारी को पुरुष का आशिक बना कर रख दिया बाल विवाह सती प्रथा दहेज की कुरीतियों की एक दिन है.

यह योग परिवर्तन का है जहां भारतीय नारी की दशा में परिवर्तन देखा जा सकता है देश को आजाद होने के बाद हमारे समाज में नारियों के प्रति काफी बदलाव देखा गया। समाज सुधारक सेवाओं और सरकारी सेवाओं में नारी उत्थान पर विशेष ध्यान देते हुए नारियों को समाज में एक खास पहचान दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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