इस महिला ने घर में स्कूल खोला और दी सबको मुफ्त शिक्षा

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भारत में आज कई ग्रामीण इलाके ऐसे है जहा पर शिक्षा का स्तर बहुत ही कम है सरकारी संगठन प्रथम ने सूचि जारी की जिसमे 14 से 18 वर्ष के बच्चो का शिक्षा का स्तर बहुत ही कम है 36 फीसदी छात्र को राजधानी का नाम नही पता है और 57 फीसद छात्रों को सामान्य गणित की जानकरी नही थी.

देखा जाए तो कई ऐसे लोग जो शिक्षा की प्रति  बहुत ही नेक काम कर रहे आज हम आपको महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की सुशीला कोली के बारे में बता रहे है यह बच्चो को मुफ्त में शिक्षा देना का नेक कार्य कर रही है इनके गाव में लगभग सैकड़ों बच्चों को शिक्षित किया है.

इस वजह से खोली आंगनबाड़ी-:

इनके गाव में  पहले स्कूल नही था इस वजह से बच्चे माँ-बाप के साथ खेतो में जाते थे और सुशीला जी यह बिकुल अच्छा नही लगता था उन्हें फिर आंगनबाड़ी खोलने का फैसला लिया लेकिन इनकी मदद के लिए कोइ साथ नही आया.

सरकार से भी नाम मात्र की मिली मदद-:

सरकार से थोड़ी मदद मिल रही थी लेकिन यह ज्यादा कारगर साबित नही हो रही थी फिर इन्होने अपने घर में ही आंगनबाड़ी खोल लिय और 2 साल तक बच्चो को शिक्षा देना शुरू कर दिया शुरुआत में कुछ बच्चे ही आते थे लेकिन बाद में  इनकी  मेहनत रंग लाइ और बच्चे आने लगे.

अब बन गया स्कूल-:

सुशीला ने सन  1991 में आंगनबाड़ी की स्थापना की और यह सब सन 2002 तक चला बाद में सरकार ने आंगनबाड़ी को सरकारी स्कूल में बदल दिया.

इनसे हुए शादी-:

सुशीला की सोच ने कई लोगो के जीवन को बदल दिया और गाव के लोगो ने शिक्षा का महत्व जाना है भले ही सुशीला जी का जन्म पिछड़े परिवार में हुआ था लेकिन उनकी सोच हमेशा आधुनिक रही इनकी शादी बाबूराव कोली से हुए जो खेतिहर मजदूर हैं.

बाबु राव का रिश्ता ठुकरा दिया था-:

बाबु राव की पहली पत्नी मर चुकी थी और उनके दो बच्चे भी थे जब बाबुराव का रिश्ता सुशीला के घर गया तब उनके परिवार ने यह रिश्ता ठुकरा दिया लेकिन सुशीला की जिद थी वह बाबुराव से ही शादी करेगी और उनके बच्चो का भी ख्याल रखेगी.

बाबुराव की बदल गयी जिंदगी-:

बाबु राव की  सुशीला के साथ शादी करने के बाद जिंदगी बदल गयी बाबुराव और सुशीला का एक बीटा भी है जो प्रोफेसर है सुशीला की सोच ने कई लोगो की जिंदगी बदल दी है आज सभी को उनके ऊपर बहुत गर्व है

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