1100 गरीब बच्चों की पढ़ाई वास्ते एक रुपये मांगते हैं यह ‘मानद’ पिता, ताकि बच्चों का…
बरगद की छांव सरीखे होते हैं पिता. हर धूप और परेशानी झेल जाते हैं मगर बच्चों पर दिक्कतों का एक तिनका तक नहीं गिरने देते. पिता रोटी हैं, कपड़ा है, मकान है, पिता छोटे से परिंदें का बड़ा आसमान है. यह स्वं पंडित ओम व्यास की कविता की ये लाइनें…