खुद के सपने नहीं हुए पूरे लेकिन बेटियों के सपनों को पूरा कर रही हैं कौसर बानो

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राजस्थान (rajasthan) के चित्तौड़गढ़ में रहने वाली 43 साल की कौसर बानो (kausar bano) ने कुछ ऐसा काम किया कि उनका नाम आज सभी के लिए एक मिसाल बन गया है. वे नेशनल लेवल (national level athlete) पर एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में 5 बार अपने राज्य का नाम भी रोशन कर चुकी हैं. कौसर बानो कौन हैं ? कौसर बानो की सफलता की कहानी क्या है ? इस बारे में चलिए समझते हैं विस्तार से :

सबसे पहले तो जैसा हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि कौसर बानो अपने राज्य राजस्थान का नाम रोशन कर रही हैं. कौसर अपने मां-बाबा की 6 संतानों में से एक हैं. वे बच्चों में सबसे बड़ी है इस कारण उनपर जिम्मेदारियां भी कुछ अधिक हैं.

कौसर काफी कौशल से भरी हुई हैं लेकिन समाज की सोच की वजह से वे 10 वीं कक्षा के आगे नहीं पढ़ सकीं. इसके साथ ही कौसर का खेल भी यहीं खत्म हो गया. समाज ने उनकी पढाई और खेल पर तो अंकुश लगा दिया लेकिन वे कौसर की सोच को रोकने में असफल रहे.

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कौसर की शादी हो गई और जब खुद उनके घर बेटियों का जन्म हुआ तो उन्होंने यह बात सोच ली कि चाहे कुछ भी हो जाए वे अपनी बेटियों को खूब पढ़ाएंगी और उस क्षेत्र में आगे बढ़ने देंगी जिसमें वे बढ़ना चाहती हैं. जब उनकी बड़ी बेटी असरार ने उनसे यह कहा कि वे वुशु में जाना चाहती हैं तो कौसर काफी खुश हुई और उसे आगे बढाने की तैयारी में जुट गईं. जबकि उन्होंने अपनी छोटी बेटी का मुक्केबाज बनने का सपना देखने में भी पूरा सहयोग दिया.

कौसर इस बारे में बात करते हुए कहती हैं कि उनके पति को इस बारे में शुरू से ही उन्होंने बताया हुआ था, वे भी शुरू में बेटियों के खेलने पर एतराज जताया करते थे. लेकिन जब पिता ने अपनी बेटियों का जूनून और उन्हें आगे बढने के सपने देखते हुए देखा तो उन्होंनेभी अपनी बेटियों का साथ दिया.

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माता और पिता से मिले सहयोग से दोनों बेटियों की हिम्मत और भी बढ़ गई. उनकी बेटियां जब भी किसी कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेती हैं तो कौसर उनका हौंसला बढ़ाती हैं. कौसर हमेशा बेटियों की हिम्मत बनकर उनके साथ में खड़ी रहती हैं. कई बार ऐसा भी हो जाता है कि कौसर उनके साथ खेल में नहीं जा पाती हैं तो वे उन्हें अकेले हिम्मत के साथ जाने के लिए कहती हैं.

कौसर का अपनी बेटियों के लिए यह प्यार और सहायता देखकर अब उनके आसपास भी उनके लिए लोगो के मन में सम्मान बढ़ गया है. लोगों की सोच में भी कुछ बदलाव आए हैं. इस बारे में कौसर कहती हैं कि वे कभी भी बेटियों को आगे बढ़ने से नहीं रोकती हैं. और समाज को भी अपनी बेटियों को आगे बढ़ाना चाहिए. वे भी सपने देखने और उन्हें पूरे करने की हक़दार हैं.

वे कहती हैं कि परिस्थितियों के कारण चाहे मेरी पढ़ाई बीच में अधूरी रह गई लेकिन मैं कभी भी अपनी बेटियों के साथ ऐसा नहीं होने देना चाहती थी. मैं अपनी बेटियों का सपना साकार करने में उनकी मदद कर रही हूँ.

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