India First Woman Lawyer – भारत की पहली महिला वकील के संघर्षों की कहानी

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दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत की पहली महिला वकील (India First Woman Lawyer) कॉर्नेलिया सोराबजी (Cornelia Sorabji) के बारे में बात करेंगे. कॉर्नेलिया सोराबजी वह महिला थी, जिन्होंने महिलाओं के हक के लिए जोर-शौर से आवाज उठाई. अगर आज महिलाएं निर्भीक होकर अपने क्षेत्र में आगे बढ़ रही है तो उसका श्रेय कॉर्नेलिया सोराबजी जैसी महिलाओं को ही जाता है. कॉर्नेलिया सोराबजी ने अपने जीवन में महिला होने के कारण अनेक बार भेदभाव का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और ना सिर्फ अपने सपने को पूरा किया बल्कि दूसरी महिलाओं के लिए भी तरक्की के रास्ते खोल दिए.

दोस्तों इस आर्टिकल के जरिए हम जानेंगे कि कॉर्नेलिया सोराबजी कौन थी? (Who was Cornelia Sorabji?), कार्नेलिया के पिता का नाम क्या था? साथ ही हम कॉर्नेलिया सोराबजी के संघर्षों (Cornelia Sorabji’s struggles) और महिलाओं के हक के लिए किए गए कामों के बारे में भी जानेंगे. तो चलिए शुरू करते है भारत की पहली महिला वकील (India First Woman Lawyer) कॉर्नेलिया सोराबजी का जीवन परिचय.

कॉर्नेलिया सोराबजी जीवनी (Cornelia Sorabji Biography)

दोस्तों कॉर्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवंबर 1866 को महाराष्ट्र के नासिक में हुआ था. कॉर्नेलिया सोराबजी के पिता का नाम रेवेरेंड सोराबजी कारसेदजी था जबकि कॉर्नेलिया सोराबजी की माता का नाम फ़्रांसिना फ़ोर्ड था. कॉर्नेलिया सोराबजी के माता-पिता पारसी थे, लेकिन बाद उन्होंने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था. कॉर्नेलिया सोराबजी की एक बहन भी थी.

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कॉर्नेलिया सोराबजी की माता ने पुणे में लड़कियों के लिए स्कूल खोला था. यह एक ऐसा समय था जब महिला शिक्षा को लेकर लोग गंभीर नहीं थे. लोग अपनी बेटियों को पढ़ने नहीं भेजते थे. उस समय महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में पता ही नहीं था. ऐसे समय में कॉर्नेलिया सोराबजी ने अपनी माता को महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए लड़ते हुए देखा है. स्थानीय महिलाएं अक्सर अपनी सम्पत्ति जुड़े मामलों में राय लेने के लिए कॉर्नेलिया सोराबजी की माता के पास आती थी. ऐसे में कॉर्नेलिया सोराबजी के जीवन पर इन सब बातों का खासा प्रभाव पड़ा.

कॉर्नेलिया सोराबजी के पिता अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे. उन्होंने अपनी बेटियों को अपने मिशन स्कूल्स में पढ़ाया. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने अपनी बेटियों का दाखिला बॉम्बे यूनिवर्सिटी में करवाने की कोशिश की. लेकिन बॉम्बे यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने यह कहकर दाखिला देने से इंकार कर दिया कि आज तक किसी महिला को बॉम्बे यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं दिया गया है. हालांकि बाद में बॉम्बे यूनिवर्सिटी को अपना फैसला बदलना पड़ा और कॉर्नेलिया सोराबजी का दाखिला बॉम्बे यूनिवर्सिटी में हो गया. इस तरह कॉर्नेलिया सोराबजी बॉम्बे यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाली महिला बनी.

बॉम्बे यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान भी कॉर्नेलिया सोराबजी को महिला होने के कारण कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने तमाम मुश्किलों का सामना किया और अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केन्द्रित किया. आख़िरकार कॉर्नेलिया सोराबजी की मेहनत रंग लाई और उन्होंने अपने कॉलेज में अंग्रेज़ी साहित्य में टॉप किया. इसके बाद कॉर्नेलिया सोराबजी आगे की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड जाना चाहती थी. उन्हें उम्मीद थी कि टॉप करने के कारण उन्हें इंग्लैंड जाकर पढ़ाई करने के लिए स्कॉलरशिप मिल जाएगी.

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कॉर्नेलिया सोराबजी को परीक्षा में टॉप करने के बावजूद स्कॉलरशिप नहीं मिली क्यों कि वह एक महिला थी. यह मामला हाउस ऑफ़ कॉमन्स में भी उठाया गया लेकिन कॉर्नेलिया सोराबजी को किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली. ऐसी स्थिति में दुनिया की कुछ सशक्त और नामचीन महिलाएं कॉर्नेलिया सोराबजी की मदद के लिए आगे आई और उन्होंने पैसे इकट्ठे करके कॉर्नेलिया सोराबजी को दिए ताकि वह इंग्लैंड जाकर आगे की पढ़ाई कर सके.

जैसा कि हमने आपको बताया था कि कॉर्नेलिया सोराबजी को महिला होने के कारण अनेक बार भेदभाव का सामना करना पड़ा. वह एक मुश्किल से निपटती तो दूसरी मुश्किल उनके सामने खड़ी हो जाती. कॉर्नेलिया सोराबजी जब ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई करने के लिए पहुंची तो यूनिवर्सिटी ने उनसे कह दिया कि वह सिर्फ अंग्रेज़ी साहित्य की ही पढ़ाई कर सकती हैं. ऐसी परिस्थिति में बेंजामिन जोवेट ने उनकी मदद की और उनके लिए एक खास लॉ कोर्स बनवाया. इस तरह कॉर्नेलिया सोराबजी ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में क़ानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला बनीं.

पढ़ाई करने के बाद अब बारी थी परीक्षा देने की, लेकिन यहाँ भी यूनिवर्सिटी ने उनके साथ भेदभाव करते हुए उन्हें मर्दों के साथ बैठकर परीक्षा देने की इजाज़त नहीं दी. ऐसे में कॉर्नेलिया सोराबजी ने इसके खिलाफ अपील की. आख़िरकार उनकी अपील का असर हुआ और उन्हें परीक्षा शुरू होने से चंद घंटों पहले परीक्षा देने की इजाज़त दे दी गई. कॉर्नेलिया सोराबजी ब्रिटेन में पहली महिला थी, जिन्हें बैचलर ऑफ़ सिविल लॉ परीक्षा में बैठने की अनुमति मिली. हालांकि परीक्षा पास करने के बाद यूनिवर्सिटी ने यह कहकर उनका रास्ता रोक दिया कि परीक्षा पास करने के 30 साल बाद तक कोई महिला अपनी डिग्री नहीं ले सकती थी.

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कॉर्नेलिया सोराबजी को सिर्फ इंग्लैंड में ही मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ा बल्कि भारत में भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा. ब्रिटिश अधिकारियों के अलावा भारतीय राजाओं ने भी कॉर्नेलिया सोराबजी के साथ भेदभाव करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. साल 1894 में कॉर्नेलिया सोराबजी अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद वापस भारत आ गई. उस समय चीफ़ जस्टिस ऑफ़ बॉम्बे का एक आदेश था कि किसी भी महिला को नौकरी ना दी जाए. इस तरह कॉर्नेलिया सोराबजी का बतौर सॉलिसिटर काम करने का सपना टूट गया.

बता दे कि भारत में उन दिनों पर्दा प्रथा थी. महिलाओं को परिवार से बाहर के पुरुषों से बात करना तो दूर उन्हें देखने तक की इजाज़त नहीं थी. कॉर्नेलिया सोराबजी ने भारत में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को करीब से देखा. उन्होंने देखा कि महिलाओ को घरों से बाहर निकलने की भी आजादी नहीं है. ऐसे में महिला अपने साथ हो रहे अत्याचारों के बारे में पुलिस को भी नहीं बता पाती थी. कॉर्नेलिया सोराबजी ने हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए उन्हें सरकार का क़ानूनी सलाहकार बनाए जाने की मांग की, लेकिन सरकार ने नियमों का हवाला देकर इंकार कर दिया.

इसके बावजूद कॉर्नेलिया सोराबजी ने हार नहीं मानी और अकेले ही काम करने का फैसला किया. कॉर्नेलिया सोराबजी ने 20 सालों तक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी. कई बार वह महिलाओं की मदद करने के लिए जासूस भी बनी. उन्होंने इस दौरान करीब 600 से भी अधिक महिलाओं को उनका हक दिलाया और पुरुषों के अत्याचारों से आजाद करवाया.

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हालांकि उस समय समाज की सोच ऐसी हुआ करती थी कि महिलाओं को पुरुषों के अधीन ही रहना चाहिए. ऐसे में कॉर्नेलिया सोराबजी के द्वारा महिलाओं के अधिकारों लिए काम करने से उनके कई दुश्मन पैदा हो गए. कई रियासतें उन्हें अपना दुश्मन समझने लगीं. कई बार कॉर्नेलिया सोराबजी को जान से मारने की भी कोशिश की गई. हालांकि कॉर्नेलिया सोराबजी अपनी सुझबुझ से हर बार बच निकली और महिलाओं के हक के लिए अपनी आवाज बुलंद करती रही.

कॉर्नेलिया सोराबजी और उन जैसी अन्य महिलाओं की आवाज का असर हुआ और साल 1919 में ब्रिटेन ने अपने क़ानून में बदलाव करते हुए महिलाओं को भी क़ानूनी क्षेत्र में आने की इजाज़त दे दी. इससे महिलाओं का आधिकारिक रूप से वकील और जज बनने का रास्ता साफ़ हो गया. कॉर्नेलिया सोराबजी ने लॉ की पढ़ाई तो पहले से की हुई थी. इस फैसले के साथ ही वह भारत की पहली महिला वकील भी बन गई. हालांकि इसके बाद भी उन्हें कोर्ट में भेदभाव का सामना करना पड़ा. एक बार तो जज ने उनसे यह तक कह दिया था कि, ‘आप अंग्रेज़ी बहुत अच्छे से जानती हैं. लेकिन इसके अलावा आप कुछ नहीं जानतीं.’

कॉर्नेलिया सोराबजी ने साल 1929 तक कोलकाता में वक़ालत की और फिर रिटायर हुईं. इसके बाद वे इंग्लैंड चली गईं. साल 1954 में 88 साल की उम्र में वहीं उनका निधन हो गया. आज हमारे देश में कानून के क्षेत्र में भी महिलाओं को आने और वकील व जज बनने की जो आज़ादी मिली है, उसकी नीव कॉर्नेलिया सोराबजी जैसी महिलाओं ने ही रखी थी.

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