India First IAS Officer – अंग्रेजों का गुरूर तोड़ बने IAS अधिकारी, जानिए कौन थे सत्येंद्रनाथ टैगोर

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India First IAS Officer – दोस्तों एक IAS अधिकारी बनना हर किसी का सपना होता है, लेकिन यह सपना पूरा करना हर किसी के बस की बात नहीं है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के प्रथम आईएएस ऑफिसर (india first ias officer ) कौन थे? अगर नही जानते तो कोई बात नही आज हम आपको बताएंगे कि देश का पहला ias अधिकारी कौन था?

दोस्तों हम सभी विश्वविख्यात कवि रविंद्रनाथ टैगोर के बारे में तो जानते ही हैं. उन्हीं के एक बड़े भाई थे, जिनका नाम था सत्येंद्रनाथ टैगोर. तो दोस्तों सत्येंद्रनाथ टैगोर ही पहले भारतीय हैं, जिन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास की थी और देश के पहले भारतीय आईएएस अधिकारी बनकर अंग्रेजों का घमंड चूर-चूर कर दिया. तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे देश के पहले आईएएस अधिकारी सत्येंद्रनाथ टैगोर के बारे में :-

सत्येंद्रनाथ टैगोर की जीवनी (satyendranath tagore biography)

इंडियन सिविल सर्विस जॉइन करने वाले पहले भारतीय सत्येंद्रनाथ टैगोर का जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता में हुआ था. सत्येंद्रनाथ टैगोर की शुरुआती शिक्षा कोलकाता में ही पूरी हुई थी. इसके बाद सत्येंद्रनाथ प्रेसिडेंसी कॉलेज चले गए. सत्येंद्रनाथ टैगोर की पत्नी का नाम (satyendranath tagore wife) ज्ञानंदिनी देवी था. दोनों का विवाह साल 1859 में हुआ था.

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भारत में सिविल सर्विस परीक्षा की शुरुआत

बता दे कि भारत में सिविल सर्विस परीक्षा की शुरुआत साल 1854 में हुई थी. इसकी शुरुआत अंग्रेजो ने की थी. दरअसल ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम करने वाले सिविल सर्वेंट को पहले कंपनी के निदेशकों द्वारा नामित किया जाता था. इसके बाद लंदन के हेलीबरी कॉलेज में इन्हें ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता. यहां से ट्रेनिंग पूरी करने के बाद ही भारत में तैनात किया जाता था.

सिविल सर्विस कमीशन का गठन

ईस्ट इंडिया कंपनी की इस प्रकिया को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे, क्यों कि इसमें भारतियों को बराबर मौका नहीं मिला था. जिसके बाद 1854 में लंदन में सिविल सर्विस कमीशन का गठन किया गया. जिसके बाद भारत में अधिकारियों की नियुक्ति के लिए सिविल सर्विस की परीक्षा होने लगी.

अंग्रेजों की चाल

अंग्रेजों ने भले ही दुनिया को दिखाने के लिए सिविल सर्विस कमीशन का गठन कर दिया, लेकिन वह बिल्कुल नहीं चाहते थे कि कोई भारतीय इस परीक्षा को पास करे. ऐसे में अंग्रेजों ने तय किया कि यह परीक्षा सिर्फ लंदन में होगी. ऐसे में किसी गरीब भारतीय के लिए लंदन पहुंचना मुमकिन नहीं था. दूसरा परीक्षा के सिलेबस को इस तरह से तैयार किया गया था कि भारतियों के लिए परीक्षा मुश्किल हो जाए. परीक्षा में यूरोपीय क्लासिक के लिए ज्यादा नंबर रखे गए.

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सत्येंद्रनाथ ने तोड़ा अंग्रेजों का गुरूर

शुरूआती एक दशक तक तो ऐसा लग रहा था कि अंग्रेज अपनी चाल में कामयाब हो जाएंगे, क्यों कि एक दशक तक कोई भी भारतीय, सिविल सर्विस की परीक्षा पास नही कर पाया. अंग्रेजों के इस गुरूर को तोड़ा सत्येंद्रनाथ टैगोर ने, जिन्होंने साल 1863 में लंदन जाकर इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास की. परीक्षा पास करने के बाद लंदन में ही सत्येंद्रनाथ टैगोर की ट्रेनिंग पूरी हुई.

अहमदाबाद  के कलेक्टर बने

साल 1864 में अपनी ट्रेनिंग खत्म करने के बाद सत्येंद्रनाथ वापस भारत लौट आए और उनकी पहली नियुक्ति बांबे प्रेसिडेंसी में हुई. इसके बाद साल 1865 में सत्येंद्रनाथ अहमदाबाद के असिस्टेंट मजिस्ट्रेट और कलक्टर बन गए. इसके बाद साल 1882 में वह कर्नाटक के कारवार में जिला न्यायाधीश बने. साल 1897 में महाराष्ट्र के सतारा के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए. सत्येंद्रनाथ लगभग 30 सालों तक सत्येंद्रनाथ सिविल सर्विस में रहे. सेवानिवृत्त होने के बाद सत्येंद्रनाथ वापस कोलकाता लौट आए, जहाँ 9 जनवरी 1923 को उनका निधन हो गया.

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भारत में परीक्षा के लिए 50 साल का संघर्ष

सिविल सर्विस परीक्षा में ज्यादा से ज्यादा भारतीय भाग ले सके, इसके लिए भारतीयों ने लगभग 50 सालों तक संघर्ष किया. भारतीय चाहते थे कि यह परीक्षा लंदन की बजाय भारत में आयोजित की जा सके. लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके खिलाफ थी. लेकिन भारतीयों के लगातार प्रयास और याचिकाओं के बाद आखिरकार ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और सत्येंद्रनाथ की मौत से एक साल पहले 1922 से यह परीक्षा भारत में होने लगी.

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