किसी ने सच ही कहा है कि सच्चे मन से की गई मेहनत का फल जरूर मिलता है। इस बात को एक बार फिर से सच कर दिखाया हरियाणा के एक छोटे से गाँव में रहने वाले अशोक कुमार ने। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद अशोक कुमार अपनी मेहनत के दम पर न्यूक्लियर साइंटिस्ट बन गए है। आज अशोक कुमार की सफलता पर उनका पूरा परिवार और गाँव गर्व महसूस कर रहा है। हालांकि न्यूक्लियर साइंटिस्ट बनने के लिए अशोक ने काफी संघर्ष किया है।
आटा चक्की चलाते है पिता
अशोक कुमार हरियाणा के हिसार जिले के मुकलन गांव के रहने वाले हैं। अशोक कुमार के पिता का नाम मांगेराम है और उनकी माता का नाम कलावती है। अशोक अपने तीन भाई-बहनो में सबसे बड़े हैं। अशोक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनके पिता गांव में ही आटा चक्की चलाते है और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। घर की ख़राब आर्थिक स्थिति के चलते अशोक ने दसवीं तक की पढ़ाई गाँव के ही एक सरकारी स्कूल से पूरी की है। इसके बाद अशोक ने 11वीं व 12वीं नॉनमेडिकल से प्राइवेट स्कूल से की। इसके बाद उन्होंने मैकेनिकल से बीटेक किया।
डॉ अब्दुल कलाम को मानते है आदर्श
भले ही अशोक कुमार के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन वह हमेशा बड़े सपने देखते थे। अशोक बचपन से ही डॉ अब्दुल कलाम को अपना आदर्श मानते है और हमेशा से उनके जैसा वैज्ञानिक बनना चाहते है। वह अक्सर टीवी या अख़बार में अब्दुल कलाम की तस्वीर देखते तो उनके जैसा बनने की सोचते।
ऑल इंडिया सेकेंड रैंक मिली
अपने वैज्ञानिक बनने के सफ़र को पूरा करने के लिए अशोक कुमार ने मार्च 2020 में भामा अटॉमिक रिसर्च सेंटर रिक्रुमेंट की परीक्षा दी। हाल ही में जब परीक्षा का परिणाम जारी हुआ, जिसमें अशोक ने ऑल इंडिया सेकेंड रैंक प्राप्त की। पूरे देश से महज 30 लोगों का चयन हुआ, जिसमें अशोक कुमार का नाम भी शामिल है। अशोक के न्यूक्लियर साइंटिस्ट बनने से उनके परिजन और गाँव वाले बहुत खुश है। अशोक के पिता का कहना है कि उनका बेटा बचपन से ही पढाई में अच्छा रहा है।
घर से दूर रहे, रोज की 12 घंटे पढ़ाई
वैज्ञानिक बनने के लिए अशोक ने काफी संघर्ष किया है। भामा अटॉमिक रिसर्च सेंटर रिक्रुमेंट की परीक्षा पास करने के लिए अशोक रोजाना 12 घंटे पढ़ाई करते थे। इस दौरान वह टीवी, मोबाइल से दूर रहते और अखबार पढ़ते। यहीं नहीं अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने के लिए वह 2 साल तक अपने घर से दूर रहे। अशोक अपनी मौसी के घर पर रहकर पढ़ाई करते थे, क्यों कि उनकी मौसी का घर बड़ा था और कम सदस्य होने के कारण वहां उन्हें शांत वातावरण मिलता था।
शिक्षक ने भरी इंजीनियरिंग की फीस
साल 2015 में अशोक ने JEE मेंस का पेपर क्लियर किया। उनके फरीदाबाद के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेना था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह इंजीनियरिंग की फीस भर सके। ऐसे में हिसार के गणित के शिक्षक रवि यादव ने अशोक की प्रतिभा को देखते हुए उनकी इंजीनियरिंग की फीस भरी।
प्रधानमंत्री की स्कीम बनी सहारा
अशोक कुमार के संघर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा साल 2014 में शुरू की गई CSR स्कीम काफी मददगार साबित हुई। इस स्कीम के तहत जर्मनी की सीमनस कंपनी ने पूरे देश से 50 लोगों का चयन किया, जिसमें अशोक कुमार का नाम भी शामिल था। इस स्कीम के कारण अशोक कुमार की कॉलेज की पूरी पढ़ाई, किताब और होस्टल का खर्च तक कंपनी ने भरा।