महान लोगों के चर्चित किस्से और उनसे जुड़ी रहस्यमयी घटनाओं को आपने पढ़ा होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे नेता के बारे में बताएंगे, जिनका जन्म भी ट्रेन से जुड़ा है और मौत भी। देश में जब भी अंत्योदय और एकात्म मानवतावाद जैसी नवविचारधाराओं के बारे में चर्चा होती है तो सबसे पहले जिस नेता का नाम याद आता है वो है पंडित दीनदयाल उपाध्याय।
दीनदयाल उपाध्याय एक भारतीय विचारक, अर्थशाष्त्री, समाजशाष्त्री, इतिहासकार और पत्रकार थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई और भारतीय जनसंघ (वर्तमान, भारतीय जनता पार्टी) के अध्यक्ष भी बने। इन्होने ब्रिटिश शासन के दौरान भारत द्वारा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी लोकतंत्र का आँख बंद कर समर्थन का विरोध किया. यद्यपि उन्होंने लोकतंत्र की अवधारणा को सरलता से स्वीकार कर लिया, लेकिन पश्चिमी कुलीनतंत्र, शोषण और पूंजीवादी मानने से साफ इनकार कर दिया था। इन्होंने अपना जीवन लोकतंत्र को शक्तिशाली बनाने और जनता की बातों को आगे रखने में लगा दिया।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जीवनभर जनसंघ को स्थापित करने के लिए संघर्ष किया, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि पंडित का जीवन ट्रेन से शुरू हुआ था और ट्रेन में ही खत्म हुआ। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा जिले के छोटे से गांव नगला चंद्रभान में हुआ था।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो रेलवे के कर्मचारी थे। रेलवे में बार-बार तबादला होने के कारण अधिकतर उन्हें अपने परिवार से दूर रहना पड़ता था और कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे। ऐसी ही परिस्थितियों में भगवती प्रसाद उपाध्याय जब अपनी गर्भवती पत्नी रामप्यारी के साथ घर जा रहे थे, तब 25 सितंबर 1916 को रेलवे स्टेशन पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म हुआ।
मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे दीनदयाल उपाध्याय ने जीवनभर राजनीतिक संघर्ष किया। देश में आजादी के बाद कांग्रेस का शासन रहा। इसलिए जनसंघ और आरएसएस से जुड़े नेताओं के खिलाफ जमकर अत्याचार किए गए, जिनमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय भी शामिल रहे। जीवनभर उन्होंने अंत्योदय और एकात्म मानवतावाद की विचारधारा को स्थापित करने के लिए संघर्ष किया। इसी संबंध में उन्होंने देशभर में कई यात्राएं भी की, लेकिन 11 फरवरी 1968 को वो अंतिम यात्रा के लिए निकल गए।
इसी दिन ट्रेन यात्रा के दौरान मुगलसराय के पास स्टेशन वार्ड में उनका पार्थिव शरीर संदिग्ध अवस्था में मिला। देश की सियासत को प्रभावित करने वाली इतनी बड़ी शख्सियत की आकस्मिक मौत ने सभी को झकझोर दिया। उनकी मौत के बाद कई उच्चस्तरीय जांच भी हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। लेकिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म जैसे सिर्फ यात्रा के लिए लिए ही हुआ था। ट्रेन से शुरू हुआ और ट्रेन में खत्म हुआ।
एक लेखक भी थे
दीनदयाल उपाध्याय के अन्दर की पत्रकारिता तब प्रकट हुई जब उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ में वर्ष 1940 के दशक में कार्य किया। अपने आर.एस.एस. के कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’ और एक दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’ शुरू किया था। उन्होंने नाटक ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ और हिन्दी में शंकराचार्य की जीवनी लिखी। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया। उनकी अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में ‘सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘जगतगुरू शंकराचार्य’, ‘अखंड भारत क्यों हैं’, ‘राष्ट्र जीवन की समस्याएं’, ‘राष्ट्र चिंतन’ और ‘राष्ट्र जीवन की दिशा’ आदि हैं।
ये थे भारतीय लोकतंत्र और समाज के प्रति उनका विचार
दीनदयाल उपाध्याय की अवधारणा थी कि आजादी के बाद भारत का विकास का आधार अपनी भारतीय संस्कृति हो न की अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गयी पश्चिमी विचारधारा। हालांकि भारत में लोकतंत्र आजादी के तुरंत बाद स्थापित कर दिया गया था, परंतु दीनदयाल उपाध्याय के मन में यह आशंका थी कि लम्बे वर्षों की गुलामी के बाद भारत ऐसा नहीं कर पायेगा। उनका विचार था कि लोकतंत्र भारत का जन्मसिद्ध अधिकार है न की पश्चिम (अंग्रेजों) का एक उपहार। वे इस बात पर भी बल दिया करते थे कि कर्मचारियों और मजदूरों को भी सरकार की शिकायतों के समाधान पर ध्यान देना चाहिए। उनका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करना प्रशासन का कर्तव्य होना चाहिए। उनके अनुसार लोकतंत्र अपनी सीमाओं से परे नहीं जाना चाहिए और जनता की राय उनके विश्वास और धर्म के आलोक में सुनिश्चित करना चाहिए।