Milkha Singh Biography – दोस्तों ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह 19 जून 2021 को निधन हो गया है. मिल्खा सिंह कुछ दिनों पहले कोरोना से संक्रमित हो गए थे. महीने भर कोरोना से जूझने के बाद हाल ही में उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी. लेकिन अचानक से उनकी तबीयत नाजुक होने लगी और उनका निधन हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई लोगों ने उनके निधन पर दुःख जाहिर किया है. बता दे कि कुछ दिनों पहले उनकी पत्नी निर्मल मिल्खा सिंह का भी निधन कोरोना की वजह से हुआ था.
आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे ‘फ्लाइंग सिख’ के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह का जीवन परिचय (Milkha Singh Biography In Hindi). मिल्खा सिंह देश के सबसे प्रसिद्द और सम्मानित धावक में से एक है. किसी समय वह भारत के सबसे तेज दौड़ने वाले धावक थे. यहीं नहीं मिल्खा सिंह पहले भारतीय हैं, जिन्होंने कामनवेल्थ खेलो में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया है. मिल्खा सिंह ने अपने करियर में कई रिकॉर्ड बनाए हैं. मिल्खा सिंह के योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से भी सम्मानित किया है.
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी मिल्खा सिंह से काफी प्रभावित थे. यहीं नहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी लोग मिल्खा सिंह की रफ़्तार के प्रशंसक थे. मिल्खा सिंह के जीवन के ऊपर एक बॉलीवुड फिल्म भी बन चुकी है, जो कि जबरदस्त हिट रही थी. इस फिल्म के जरिए आज की युवा पीढ़ी ने मिल्खा सिंह के बारे में करीब से जाना.
तो दोस्तों चलिए आज के इस आर्टिकल में हम मिल्खा सिंह के जीवन से जुड़ी दिलचस्प चीजों के बारे में जानेगे.
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मिल्खा सिंह जीवनी (Milkha Singh Biography)
फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवम्बर 1929 को अविभाजित भारत के पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में एक सिख राठौर परिवार में हुआ था. मिल्खा सिंह के 15 भाई-बहन थे. हालांकि इनमें से कई भाई-बहन बचपन में ही गुजर गए थे. साल 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तो पाकिस्तान में दंगे भड़क गए. लोगों को मारा जाने लगा. इन्हीं दंगों में मिल्खा सिंह ने माता-पिता खो दिए. मिल्खा सिंह जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर पाकिस्तान से दिल्ली आ गए.
दिल्ली आने के बाद मिल्खा सिंह अपनी शादी-शुदा बहन के घर चले गए. दिल्ली में मिल्खा सिंह शरणार्थी शिविरों में भी रहे. बाद में मिल्खा सिंह ने दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी कुछ दिन गुजारे. पाकिस्तान में हुए उस भयानक हादसे का मिल्खा सिंह के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा.
दिल्ली में रहने के दौरान उनके भाई मलखान ने मिल्खा सिंह को भारतीय सेना में जाने के लिए कहा. लगातार 4 बार कोशिश करने के बाद मिल्खा सिंह को भारतीय सेना में भर्ती कर लिया गया.
मिल्खा सिंह बचपन में जिस स्कूल जाते थे वह उनके घर से 10 किलोमीटर दूर था. इसलिए वह बचपन में रोजाना घर से स्कूल और स्कूल से घर 10-10 किलोमीटर दौड़ा करते थे. भारतीय सेना में भर्ती के समय भी मिल्खा सिंह क्रॉस-कंट्री रेस में छठे स्थान पर आए थे. इसके बाद मिल्खा सिंह को सेना ने खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना.
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मिल्खा सिंह का करियर (Milkha Singh Career)
भारतीय सेना में शामिल होने के बाद मिल्खा सिंह ने कड़ी मेहनत की और अपने आप को 200 मी और 400 मी रेस के लिए तैयार किया. उन्होंने देश में कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और जीत हासिल की. इसी को देखते हुए सरकार ने मिल्खा सिंह को 1956 में हुआ मेलबर्न ओलंपिक में 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना, हालांकि अंतराष्ट्रीय स्तर का अनुभव नहीं होने के कारण मिल्खा सिंह को सफलता नहीं मिली.
साल 1958 मिल्खा सिंह के लिए अच्छा रहा. इस साल मिल्खा सिंह ने कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया. इसके बाद मिल्खा सिंह ने एशियन खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में देश का प्रतिनिधित्व किया और देश को स्वर्ण पदक दिलाया. इसी साल ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक दुनिया में अपने नाम का डंका बजा दिया. इस तरह मिल्खा सिंह आजाद भारत में राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी बने.
साल 1960 में मिल्खा सिंह पाकिस्तान गए और पाकिस्तान में वहां के सर्वश्रेष्ठ धावक अब्दुल बासित को हरा दिया. पाकिस्तान में मिल्खा सिंह की रफ़्तार देख हर कोई हैरान रह गया. इसी दौरान पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को ‘उड़न सिख’ नाम दिया.
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रोम ओलिंपिक 1960
साल 1960 के शुरू होने से पहले मिल्खा सिंह अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ फार्म में थे. तब हर किसी को आशा थी कि इस ओलंपिक में मिल्खा सिंह देश को स्वर्ण पदक जरूर दिलाएंगे, लेकिन उनकी एक गलती के कारण वह इतिहास रचने से चुक गए. दरअसल हुआ यह कि 400 मीटर की रेस में शुरूआती 250 मीटर तक मिल्खा सिंह रेस में सबसे आगे थे, लेकिन अचानक उन्हें लगा कि वह अंत तक अपनी गति नहीं बनाए रख पाएंगे. ऐसे में उन्होंने पीछे मुड़कर अपने प्रतिद्वंदियों को देखा जिससे उनकी गति थोड़ी कम हो गई और तीन धावक उनसे आगे निकल गए. इसके बाद मिल्खा सिंह ने वापस उनसे आगे निकलने की कोशिश की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. मिल्खा सिंह उस रेस में चौथे स्थान पर आए.
उस रेस में मिल्खा सिंह और उनसे आगे तीनों खिलाड़ी ने पुराना ओलंपिक रिकार्ड तोड़ा था. उस समय 400 मीटर के ओलंपिक रिकार्ड 45.9 सेकेंड का था, लेकिन मिल्खा सिंह ने वह रेस 45.6 सेकंड में पूरी कर ली थी. हालांकि इसके बावजूद वह ओलंपिक पदक नहीं जीत सके. मिल्खा सिंह को अपनी उस गलती का मलाल पूरे जीवन रहा.
रोम ओलिंपिक में मिली हार से मिल्खा सिंह बुरी तरह से टूट गए और उन्होंने अब रेस में भाग नहीं लेने का फैसला किया. हालांकि बाद में काफी समझाने के बाद मिल्खा सिंह ने वापस मैदान में वापसी की और साल 1962 के जकार्ता में आयोजित एशियन खेलों में मिल्खा ने 400 मीटर और 4 X 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता. मिल्खा सिंह ने साल 1964 में हुए टोक्यो ओलिंपिक खेलों में भाग लिया थे, लेकिन उन्हें यहां भी सफलता नहीं मिली.
साल 1958 में जब मिल्खा सिंह ने एशियाई खेलों में अपना परचम लहराया तो भारतीय सेना ने मिल्खा सिंह को ‘जूनियर कमीशंड ऑफिसर’ बना दिया. इसके बाद पंजाब सरकार ने मिल्खा सिंह को राज्य के शिक्षा विभाग में ‘खेल निदेशक’ के पद पर नियुक्त किया. मिल्खा सिंह के बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए भारत सरकार ने मिल्खा सिंह को साल 1958 में पद्मश्री से सम्मानित किया था.
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मिल्खा सिंह की प्रेम कहानी (Milkha Singh love story)
अपने खेल के साथ-साथ मिल्खा सिंह अपने निजी जीवन को लेकर भी चर्चा में रहे हैं. मिल्खा सिंह की पत्नी का नाम (Milkha Singh wife name) निर्मल कौर है. निर्मल कौर भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान है. मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की पहली मुलाकात साल 1955 में श्रीलंका के कोलंबो में हुई थी.
दरअसल दोनों ही वहां एक टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे. उस समय निर्मल कौर भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान थी जबकि मिल्खा सिंह एथलेटिक्स टीम का हिस्सा थे. कोलंबो में रहने वाले एक भारतीय बिजनेसमैन ने मिल्खा सिंह और निर्मल कौर को अपने घर खाने पर बुलाया था. उसी दौरान मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की मुलाकात हुई.
मिल्खा सिंह को पहली ही नजर में निर्मल कौर पसंद आ गई थी. इसके बाद साल 1958 में एक बार फिर मिल्खा सिंह और निर्मल कौर की मुलाकात हुई. इसके बाद मिल्खा सिंह और निर्मल कौर दोनों काफी समय साथ में बिताने लगे. कुछ साल मुलाकात का दौरा चलता रहा और फिर मिल्खा सिंह और निर्मल कौर ने शादी करने का फैसला किया. हालांकि दोनों की शादी में भी काफी परेशानी आ रही, जिसके बाद पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों मदद के लिए आगे आए और उन्होंने दोनों परिवारों से बात करके उन्हें शादी के लिए राजी किया. इसके बाद साल 1962 में मिल्खा सिंह और निर्मल कौर ने शादी कर ली. 13 जून 2021 को कोरोना संक्रमण के कारण निर्मल कौर ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
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मिल्खा सिंह और ऑस्ट्रेलिया लड़की
1956 में ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न ओलिंपिक के दौरान मिल्खा सिंह को एक ऑस्ट्रेलियन लड़की से प्यार हो गया था. उस लड़की का नाम था बेट्टी कथबर्ट. मेलबर्न ओलिंपिक के बाद मिल्खा सिंह और बेट्टी कथबर्ट 1960 में फिर मिले, लेकिन उसके बाद मुलाकात नहीं हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार साल 2006 में मिल्खा सिंह कॉमनवेल्थ गेम्स मेलबर्न में हिस्सा लेने के लिए गए थे. उस दौरान मिल्खा सिंह ने बेट्टी कथबर्ट को फ़ोन किया था, लेकिन वह फ़ोन बेट्टी कथबर्ट के बेटे ने उठाया. वह मिल्खा सिंह को पहचान गए. बेट्टी कथबर्ट के बेटे ने मिल्खा सिंह को बताया कि कैंसर के कारण बेट्टी कथबर्ट की मौत हो गई है. इसके अलावा कहा जाता है कि मिल्खा सिंह को सबसे पहले अपने गाँव की एक लड़की से प्यार हुआ था.
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