P V Narasimha Rao Biography – वह प्रधानमंत्री जिनका शव आधे घंटे तक पड़ा रहा, लेकिन नहीं खुला गेट

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P V Narasimha Rao Biography – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय पी.वी. नरसिम्हा राव की. प्रधानमंत्री बनने से पहले नरसिम्हा राव आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे थे. नरसिम्हा राव के शासनकाल में ही भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘लाइसेंस राज’ की समाप्ति हुई और अर्थनीति में खुलेपन का आरम्भ हुआ. इसलिए नरसिम्हा राव को ‘भारत के आर्थिक सुधार का पिता’ भी कहा जाता है. इसके अलावा पूर्व बहुमत ना होने के बावजूद नरसिम्हा राव ने पांच साल तक अपनी सरकार को सफलतापूर्वक चलाया.

तो चलिए दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम पी.वी. नरसिम्हा राव का जीवन परिचय पढ़ेंगे. साथ ही जानेंगे कि उनके जीवन से जुड़ी दिलचस्प घटनाएं.

पी.वी. नरसिम्हा राव की जीवनी (P V Narasimha Rao Biography)

पी.वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को आंध्रप्रदेश के करीमनगर में एक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था. पीवी नरसिम्हा राव का पूरा नाम परबमुल पार्थी वेंकट नरसिम्हा राव था. नरसिम्हा राव के पिता का नाम पी. रंगा राव था. नरसिम्हा राव की माता का नाम रुक्मिनिअम्मा था. नरसिम्हा राव की पत्नी का नाम सत्याम्मा था. नरसिम्हा राव के 3 बेटे और 5 बेटियां है.

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पी.वी. नरसिम्हा राव की शिक्षा (P V Narasimha Rao Education)

नरसिम्हा राव ने अपनी स्कूली शिक्षा करीमनगर जिले के कत्कुरू गाँव में अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रहकर पूरी की. इसके बाद नरसिम्हा राव ने ओस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा हासिल की. स्नातक की शिक्षा हासिल करने के बाद नरसिम्हा राव ने नागपुर विश्वविद्यालय के हिस्लोप कॉलेज से लॉ की शिक्षा हासिल की है. नरसिम्हा राव को तेलुगु के अलाव तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती भाषा का भी अच्छा ज्ञान था.

पी.वी. नरसिम्हा राव का राजनीतिक करियर (P V Narasimha Rao Political career)

नरसिम्हा राव उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान एक सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाई. देश की आजादी के बाद नरसिम्हा राव कांग्रेस में शामिल हो गए और अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. कांग्रेस में शामिल होने के बाद धीरे-धीरे नरसिम्हा राव का कद बढ़ता गया. वह साल 1962 से 1971 तक आंध्र प्रदेश सरकार में अलग विभागों के मंत्री रहे. नरसिम्हा राव साल 1971 से साल 1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

नरसिम्हा राव ने पहली बार साल 1977 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल करके लोकसभा सदस्य बने. साल 1980 में नरसिम्हा राव को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया गया. इसके बाद नरसिम्हा राव ने केंद्र ने विदेश मंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और मानव संसाधन विकास मंत्री का पद भी संभाला.

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बहुत कम लोग जानते होंगे कि साल 1991 में लोकसभा चुनाव से पहले नरसिम्हा राव ने राजनीति छोड़ने का मन बना लिया था. लेकिन उन्होंने वापस अपने फैसले पर विचार किया और वह राजनीति में बने रहे. साल 1991 में लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान ही राजीव गाँधी की हत्या हो गई और उनकी मौत की सहानुभूति लहर में कांग्रेस पार्टी चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

चुनाव में कांग्रेस को 232 सीटें मिली. हालाँकि यह बहुमत के आंकड़े से कम थी, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ही बनी. चुनाव के बाद नरसिम्हा राव एकाएक भारतीय राजनीति के केंद्रबिंदु बन गए. कांग्रेस पार्टी ने नरसिम्हा राव को सरकार चलाने की जिम्मेदारी दी. नरसिम्हा राव ने भी पूर्ण बहुमत ना होने के बावजूद पांच साल तक सरकार चलाई.

नरसिम्हा राव का सरकार चलाने का तरीका अलग था. नरसिम्हा राव ने एक गैर-राजनैतिक व्यक्ति मनमोहन सिंह को देश का वित्त मंत्री बनाया. इसके अलावा उन्होंने विपक्षी दल के सुब्रमण्यम स्वामी को ‘श्रमिक मापदंड और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ आयोग का अध्यक्ष बनाया. भारत के राजनीतिक इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी विपक्षी दल के सदस्य को कैबिनेट स्तर का पद दिया गया हो.

नरसिम्हा राव के शासनकाल में ही भारतीय अर्थव्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए. उनकी सरकार में विदेशी निवेश, पूंजी बाज़ार, मौजूदा व्यापार व्यवस्था और घरेलु व्यापार के क्षेत्र में सुधार हुए. ‘लाइसेंस राज’ की समाप्ति हुई. देश में विदेशी निवेश बहुत तेज़ी से बढ़ा.

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अर्थव्यवस्था के अलावा नरसिम्हा राव के शासनकाल में राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति में भी बदलाव आए. उनके कार्यकाल में ही पंजाब में आतंकवाद का सफाया हुआ. उनके कार्यकाल में ही भारत-इजराइल सम्बन्ध को नई दिशा मिली. इसके अलावा साल 1993 में मुंबई में हुए बम विस्फोट के बाद उसके प्रबंधन को लेकर भी नरसिम्हा राव की तारीफ़ हुई.

तमाम सुधारों के बीच कुछ चीजें ऐसी भी हुई, जिससे नरसिम्हा राव सरकार की जमकर आलोचना हुई. उनके कार्यकाल के दौरान ही उत्तरप्रदेश में भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया, जिसके बाद देश में कई जगह दंगे हुए और हजारों लोग मारे गए.

इसके अलावा नरसिम्हा राव पर सासदों को रिश्वत देने का भी आरोप लगा. इस मामले में साल 2001 में निचली अदालत ने नरसिम्हा राव को तीन साल की सजा भी सुनाई, लेकिन बाद में हाई कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया.

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9 दिसम्बर 2004 को नरसिम्हा राव को दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें AIIMS दिल्ली में भर्ती कराया गया. 3 दिसंबर 2004 को इनकी मृत्यु हो गई. इनकी मृत्यु से देश के लोगो को बेहद दुख हुआ.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सोनिया गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद नरसिम्हा राव का कांग्रेस नेतृत्व से रिश्ता अच्छा नहीं था. कहा जाता है कि बोफोर्स घोटाला में नरसिम्हा सरकार द्वारा राजीव गांधी के खिलाफ CBI मामले को खारिज करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने से सोनिया गाँधी नाराज थी.

कहा जाता है कि जब नरसिम्हा राव का निधन हुआ तो उनका शव कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय में आम कार्यकर्ताओं के दर्शन के लिए रखा जाना था. लेकिन परिवार के लोग जब उनका शव लेकर पार्टी मुख्यालय पहुंचे तो पार्टी मुख्यालय का गेट बंद था. उनके शव को पार्टी मुख्यालय में नहीं जाने दिया गया और शव आधे घंटे तक बाहर फुटपाथ पर पड़ा रहा.

हालाँकि बाद में एक कांग्रेसी नेता ने अपनी आत्मकथा में यह कहते हुए इसका बचाव किया था कि, ‘राव का शरीर इतना भारी था कि उसे गन कैरेज से उठाकर कांग्रेस मुख्यालय के अंदर रखना मुश्किल था.’

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दूसरी तरफ नरसिम्हा राव के बेटे प्रभाकरा ने कहा था कि, ‘हमें महसूस हुआ कि सोनिया जी नहीं चाहती थीं कि हमारे पिता का अंतिम संस्कार दिल्ली में. वह यह भी नहीं चाहती थीं कि यहां उनका मेमोरियल बने.’

नरसिम्हा राव के परिजनों को इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि ऐसा भी हो सकता है. इसके बाद नरसिम्हा राव के शव को हैदराबाद ले जाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नरसिम्हा राव के परिजन उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में करना चाहते थे, लेकिन उनके परिजनों पर हैदराबाद में अंतिम संस्कार करने का दबाव बनाया गया.

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