एक कंपनी के ब्रांड है नटराज पेंसिल और अप्सरा पेंसिल, दिलचस्प है सफलता की कहानी

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natraj pencil apsara pencil success story in hindi – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे नटराज पेंसिल और अप्सरा पेंसिल की सफलता की कहानी के बारे में. नटराज पेंसिल (Natraj Pencil) और अप्सरा पेंसिल (Apsara Pencil) क्या है, यह तो हम सभी जानते ही है. हमने बचपन में इन पेंसिल का खूब इस्तेमाल किया है. नटराज और अप्सरा की पेंसिल ही नहीं बल्कि इरेजर, शार्पनर, स्केल सहित अन्य चीजें भी आती है, जिनका हमें पढ़ाई के दौरान उपयोग किया है.

इसके अलावा एक समय पर टीवी पर नटराज पेंसिल और अप्सरा पेंसिल के विज्ञापन भी खासे चर्चित हुआ करते थे. इन दोनों ही पेंसिल से हमारी बचपन की यादें जुड़ी हुई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नटराज पेंसिल और अप्सरा पेंसिल की शुरुआत कैसे हुई थी? और कैसे यह इतनी सफल हुई?

सबसे पहले तो आपको बता दे कि नटराज पेंसिल और अप्सरा पेंसिल कोई दो अलग-अलग पेंसिल कंपनी नहीं नहीं बल्कि यह दोनों ही एक ही कंपनी हिंदुस्तान पेंसिल (hindustan pencil) के अलग-अलग ब्रांड है. कंपनी ने डुअल ब्रांड स्ट्रैटजी के तहत अपने दो अलग-अलग ब्रांड को मार्किट में उतारा था. तो चलिए शुरू करते हैं नटराज और अप्सरा पेंसिल की सफलता की कहानी. (natraj pencil apsara pencil success story in hindi)

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दोस्तों यह कहानी शुरू होती है देश की आजादी से पहले से. दरअसल ब्रिटिश शासनकाल में हमारे देश में सुई से लेकर जहाज तक विदेशों से आता था. भारत में बहुत कम चीजें बनती थी. 1940 के दशक में भारत में लगभग 6.50 लाख रूपए की पेंसिल हर साल ब्रिटेन, जर्मनी और जापान जैसे देशों से इम्पोर्ट की जाती थी.

इस बीच जब द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ तो विदेशों से पेंसिल भारत आना बंद हो गई. ऐसे में भारत में पेंसिल की कमी होने लगी. इसका फायदा उठाकर हमारे देश में ही कुछ लोगों ने पेंसिल बनाने का फैसला किया. इसके लिए कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास में पेंसिल बनाने के कारखाने लगे गए. शुरुआत में देसी पेंसिल की बिक्री अच्छी हुई.

हालांकि देसी पेंसिल की समस्या यह थी कि वह विदेशो पेंसिल के मुकाबले महंगी और कमजोर होती थी. ऐसे में सालों से विदेशी पेंसिल का उपयोग कर रहे लोगों को देसी पेंसिल रास नहीं आई. शुरुआत में मज़बूरी में लोगों ने देसी पेंसिल जरूर खरीदी, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जब देश में वापस से विदेशी पेंसिल आने लगी तो लोगों ने देसी पेंसिल खरीदना बंद कर दिया. इससे देसी पेंसिल का धंधा चौपट हो गया.

इस बीच देश की आजादी के बाद साल 1958 में बीजे सांघवी, रामनाथ मेहरा और मनसूकनी नाम के तीन दोस्तों ने मिलकर हिंदुस्तान पेंसिल्स नाम की कंपनी की शुरुआत की. उनसे पहले देसी पेंसिल बनाने वाली कंपनियों की गलती से सीख लेकर इन्होने तय किया कि उनकी कंपनी एक मजबूत और सस्ती पेंसिल बनेंगे ताकि देश के लोग आसानी से उनकी पेंसिल का उपयोग कर सके. इसके लिए तीनों दोस्तों ने जर्मनी जाकर मजबूत और सस्ती पेंसिल बनाने के तरीके को समझा.

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इस तरह हिंदुस्तान पेंसिल्स ने अपना पहला ब्रांड नटराज पेंसिल को बाजार में उतारा. यह पेंसिल भी विदेशी पेंसिल की तरह सस्ती और मजबूत थी. दूसरी तरफ भारत सरकार ने भी भारतीय पेंसिल निर्माताओं की मदद करने के लिए पेंसिल के आयात पर कुछ प्रतिबंध लगाए. इससे देसी निर्माताओं को पनपने का मौका मिला और नटराज पेंसिल को लोगों ने हाथो-हाथ लिया और इसकी बिक्री बढ़ने लगी.

समय के साथ बीजे सांघवी ने फैक्ट्री का कंट्रोल अपने हाथों में ले लिया. नटराज पेंसिल की सफलता के बाद कंपनी ने डुअल ब्रांड स्ट्रैटजी के तहत साल 1970 में अप्सरा पेंसिल को बाजार में उतारा. इस तरह कंपनी ने नटराजन और अप्सरा के नाम से पेंसिल, इरेजर, शार्पनर, स्केल, वैक्स क्रेयॉन, ऑयल पेस्टल, मैथमेटिकल इंस्ट्रूमेंट, वाटर कलर, बाल प्वॉइंट और जेल पेन मार्किट में उतार दिए.

अपनी डुअल ब्रांड स्ट्रैटजी के तहत कंपनी ने नटराज पेंसिल की पहचान एक मजबूत और किफायती पेंसिल की बनाई जबकि अप्सरा पेंसिल की पहचान प्रीमियम पेंसिल की बनाई. इसी के तहत टीवी पर अलग-अलग विज्ञापन भी चलाए गए. इस स्ट्रैटजी का फायदा यह हुआ कि दो अलग-अलग ब्रांड से सभी तरह के उपभोक्ता कवर हो गए और दूसरी कोई कंपनी मार्किट में फल-फूल नहीं सकी. इस तरह हिंदुस्तान पेंसिल्स देश की नंबर वन पेंसिल निर्माता कंपनी बन गई.

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हिंदुस्तान पेंसिल मालिक (hindustan pencils owner)

बता दे कि हिंदुस्तान पेंसिल्स लंबे समय से देश की नंबर वन पेंसिल निर्माता कंपनी बनी हुई है. इस कंपनी की कमान आज भी सांघवी फैमिली के हाथ में है. सांघवी फैमिली के सदस्य कंपनी में अलग-अलग पद संभाले हुए है. सांघवी फैमिली अब पेंसिल के अलावा अन्य तरह की स्टेशनरी का बिजनेस बढ़ाना चाहती है.

हिंदुस्तान पेंसिल नेट वर्थ  (hindustan pencils net worth)

बता दे कि बीते कुछ सालों में हिंदुस्तान पेंसिल्स की ग्रोथ धीमी हुई है. एक वेबसाइट के अनुसार हिंदुस्तान पेंसिल प्राइवेट लिमिटेड का राजस्व / कारोबार 500 करोड़ रूपए से अधिक है. आज 50 से अधिक देशों में हिंदुस्तान पेंसिल्स अपने प्रोडक्ट के सप्लाई करता है.

कैसे बनती है पेंसिल (how to make pencil)

बता दे कि पेंसिल बनाने के लिए लकड़ी की स्लेट का इस्तेमाल किया जाता है. एक अनुमान के अनुसार एक पेड़ से करीब 1.70 लाख पेंसिल बनाई जा सकती है. हिंदुस्तान पेंसिल रोजाना लगभग 85 लाख पेंसिल बनाती है. इसके लिए उन्हें रोजाना 50 पेड़ काटने पड़ते है. ऐसे में प्रकृति को कोई नुकसान ना हो, इसके लिए कंपनी जंगलों के पेड़ नहीं काटती है बल्कि अपनी जरूरत के पेड़ खेतों में उगाती है. पुलवामा के ओखू गांव में लकड़ी की स्लेट बनाने वाली तीन फैक्ट्रियां हैं. हिंदुस्तान पेंसिल्स यहीं से कच्चा माल खरीदती है.

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