Fevicol Success Story – कभी चपरासी की नौकरी करते थे फेविकोल के मालिक, ऐसे बना फेविकोल का मजबूत जोड़

0

Fevicol Success Story – ‘ये फेविकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं´ यह एक ऐसी लाइन जिसे हम अक्सर टीवी पर देखते है या अख़बार में पढ़ते हैं. जैसा कि हम सब जानते हैं कि यह लाइन आती है फेविकोल (Fevicol) के विज्ञापन के साथ. पिछले कई दशकों से फेविकोल का मजबूत जोड़ अपने ग्राहकों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मजबूत जोड़ के पीछे कितनी मेहनत और संघर्ष है.

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे बलवंत पारेख (balvant parekh) की. बलवंत पारेख ही वह शख्स हैं जिसने ‘पिडिलाइट’ (Pidilite) कंपनी की स्थापना की थी. पिडिलाइट कंपनी ही फेविकोल बनाती है. फेविकोल के साथ ही पिडिलाइट कंपनी एम-सील (M-Seal), फेवि क्विक (Feviquick) तथा डॉ फिक्सइट (Dr. Fixit) जैसे प्रोडक्ट भी बनाती है.

दोस्तों बलवंत पारेख भले ही देश के एक बड़े उद्योगपति रहे है और उनके द्वारा स्थापित कंपनी आज खरबों रुपए की हो गई हो, लेकिन इसके लिए बलवंत पारेख को काफी संघर्ष करना पड़ा है. बहुत कम लोग जानते होंगे कि खरबों रुपए की कंपनी की स्थापना करने वाले बलवंत पारेख किसी समय चपरासी की नौकरी करते थे. लेकिन बलवंत पारेख उन लोगों में से नहीं थे जो परिस्थितियों का रोना रोते है. बलवंत पारेख का जीवन देश के लाखों युवाओं के सामने एक मिसाल है. तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं बलवंत पारेख का जीवन परिचय और साथ ही जानेंगे फेविकोल की सफलता की कहानी (fevicol success story).

Success Story of Nirma – नौकरी छोड़ घर-घर जाकर बेचा सर्फ, तब जाकर बना सबकी पसंद ‘निरमा’

बलवंत पारेख जीवनी (balvant parekh biography)

दोस्तों बलवंत पारेख का जन्म साल 1925 में गुजरात के भावनगर जिले के महुवा नाम के गाँव में हुआ था. बलवंत पारेख ने अपनी स्कूली शिक्षा महुवा के ही एक प्राथमिक स्कूल से पूरी की है. स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद बलवंत पारेख एक बिजनेसमैन बनना चाहते थे, लेकिन उनके परिवार की इच्छा थी कि वह एक वकील बने. इसलिए बलवंत पारेख के परिवार ने उनका दाखिला मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज करवा दिया.

भारत छोड़ो आंदोलन में लिया हिस्सा

यह वह समय था जब देश महात्मा गाँधी के नेतृत्व में अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था. बलवंत पारेख भी महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित थे और देश की आजादी के लिए पढ़ाई बीच में छोड़ कर भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बन गए. उन्होंने अपने गृहनगर में हुए आन्दोलन में हिस्सा लिया. हालाँकि बाद में बलवंत पारेख ने वकालत की पढ़ाई को पूरा किया.

प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी की

बलवंत पारेख ने भले ही वकालत की पढ़ाई को पूरा किया, लेकिन वह तो वकील कभी बनना ही नहीं चाहते थे. उन्हें लगता था कि वकील को झूठ बोलना पड़ता है और वह गाँधी जी के सत्य और अहिंसा के मंत्र से प्रभावित थे. बलवंत पारेख बिजनेस करना चाहते थे लेकिन आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी. पढ़ाई के दौरान ही बलवंत पारेख की शादी भी कर दी गई थी. उनके ऊपर अपने परिवार को चलाने की जिम्मेदारी थी. ऐसे में बलवंत पारेख एक डाइंग और प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करने लगे.

Success Story of ‘Amul’ – 247 लीटर दूध से हुई शुरुआत, आज रोजाना 2.3 करोड़ लीटर दूध खरीदता है अमूल

चपरासी की नौकरी की

प्रिंटिंग प्रेस में भी बलवंत पारेख का मन नहीं लगा तो उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और लकड़ी व्यापारी के कार्यालय में चपरासी की नौकरी करने लगे. कुछ दिन चपरासी की नौकरी करने के बाद बलवंत पारेख ने वह नौकरी भी छोड़ दी और दूसरी नौकरी करने लगे. इस तरह बलवंत पारेख ने कई नौकरियां बदली. इसका फायदा यह हुआ कि अलग-अलग जगह नौकरी करने से बलवंत पारेख को बिजनेस के बारे में अलग-अलग चीजें सीखने को मिली. साथ ही उनका लोगों से सम्पर्क भी बड़ा. इस बीच बलवंत पारेख को जर्मनी जाने का मौका भी मिला. जहाँ उन्होंने बिजनेस के बारे में बहुत कुछ सीखा.

देश की आजादी ने बदली जिंदगी

देश की आजादी के बाद बलवंत पारेख ने बिजनेस के क्षेत्र में हाथ अजमाया. वह पश्चिमी देशों से साइकिल, एक्स्ट्रा नट्स, पेपर डाई जैसी चीजें खरीदकर भारत में बेचने लगे. इससे उन्हें काफी फायदा भी हुआ. देश की आजादी के बाद देश के व्यापारी ऐसी चीजें देश में बनाने लगे, जो विदेशों से आती थी. बलवंत पारेख भी कुछ ऐसा ही करना चाहते थे.

फेविकोल बनने की कहानी

बलवंत पारेख को एक दिन ख्याल आया कि जब वह लकड़ी व्यापारी के यहां चपरासी का काम करते थे, उस दौरान वहां के कर्मचारियों को लकड़ी को जोड़ने के लिए कितनी मेहनत करना पड़ती थी. उस समय लकड़ियों को जोड़ने के लिए चर्बी को गर्म करके उसका गोंद बनाया जाता था. इसमें मेहनत भी बहुत लगती थी और बदबू भी बहुत आती थी. ऐसे में बलवंत पारेख ने लोगों की इस समस्या को दूर करने के लिए एक खुशबूदार गोंद बनाने की सोची. थोड़ी कोशिश करने के बाद बलवंत पारेख को सिंथेटिक रसायन के प्रयोग से गोंद बनाने का तरीका मिल गया. इसके बाद बलवंत पारेख ने अपने भाई सुनील पारेख के साथ साल 1959 में पिडिलाइट कंपनी की स्थापना की.

Success Story of “CHAI SUTTA BAR” – 200 से ज्यादा आउटलेट्स और 30 लाख रु रोजाना टर्नओवर

कैसे पड़ा फेविकोल नाम

कंपनी की स्थापना के बाद बलवंत पारेख ने देश को खुशबूदार गोंद ‘फेविकोल’ दिया. अब गोंद का नाम फेविकोल क्यों रखा, इसके पीछे भी एक कहानी है. दरअसल उस समय जर्मनी में भी एक गोंद की कंपनी हुआ करती थी, जिसका नाम था मोविकोल. इसी से प्रेरित होकर बलवंत पारेख ने अपनी कम्पनी के गोंद का नाम फेविकोल रखा. जर्मनी में कोल का मतलब होता है दो चीजों को जोड़ना.

हजारों करोड़ की कंपनी

बाजार में आने के बाद फेविकोल देखते ही देखते पूरे देश में लोकप्रिय हो गया. इसका कारण यह था कि इसने लोगों की बहुत सी समस्याओं का समाधान कर दिया था. अब लोग खुशबूदार गोंद ‘फेविकोल’ के जरिए आसानी से चीजों को चिपका सकते थे. फेविकोल के कारण पिडिलाइट कंपनी को बहुत फायदा हुआ. इससे प्रभावित होकर पिडिलाइट कंपनी ने फेवि क्विक, एम-सील आदि जैसे नए प्रोडक्ट लॉन्च किए. इन प्रोडक्ट को भी लोगों ने खूब पसंद किया और देखते ही देखते पिडिलाइट१ हजारों करोड़ की कंपनी बन गई.

200 से ज़्यादा प्रोडक्ट

एक चपरासी की नौकरी करने वाले बलवंत पारेख द्वारा स्थापित कंपनी आज 200 से ज्यादा प्रोडक्ट्स तैयार करती है. पिडिलाइट आज एक इंटरनेश्नल ब्रांड बन चुका है. गुजरात के एक साधारण परिवार से आने वाले बलवंत पारेख अपने जीवन के अंतिम समय तक एशिया के 50 सबसे अमीर आदमियों में से एक बन चुके थे. उस समय उनकी निजी संपत्ति 1.36 बिलियन डॉलर थी. 25 जनवरी 2013 को बलवंत पारेख ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

History of Parle-G : कैसे देश के बिस्किट ने बनाया पूरे विश्व में अनूठा नाम

मधुकर पारेख की सम्पत्ति (Madhukar Parekh Net Worth)

बलवंत पारेख द्वारा स्थापित कंपनी को आज उनके बड़े बेटे मधुकर पारेख आगे बढ़ा रहे है. आज१ मधुकर पारेख देश के सबसे अमीर लोगों में से एक है. एक रिपोर्ट के अनुसार उनकी सम्पत्ति लगभग 3.1 बिलियन डॉलर है.

Leave A Reply

Your email address will not be published.