Rani Laxmi Bai Biography – जानिए कैसे हुई थी रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु, अंग्रेजों के हाथ नहीं लगा उनका पार्थिव शरीर

0

Rani Laxmi Bai Biography in Hindi – दोस्तों हमारे देश में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है. रानी लक्ष्मीबाई उन क्रांतिकारियों में से एक थी, जिसने साल 1857 में हुए प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से मोर्चा लिया. महज 23 की उम्र में जिस तरह से रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश साम्राज्य के सैनिकों से लड़ाई लड़ी, उसे देखकर अंग्रेज अफसर भी हैरान रह गए.

वैसे तो रानी लक्ष्मीबाई को आज पूरा देश जानता है, लेकिन आज भी लोगों के मन में रानी लक्ष्मीबाई को लेकर कई तरह के सवाल है. जिसे रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु कब और कैसे हुई?. इसके अलावा और भी कि तरह के सवाल लोगों के मन में उठते हैं. तो चलिए आज हम इस आर्टिकल के जरिए जानते है रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय-

जलियांवाला बाग हत्याकांड के 101 साल, जानिए 10 ख़ास बातें

रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी (Rani Laxmi Bai Biography)

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी के एक मराठा ब्राह्मण परिवार में हुआ था. रानी लक्ष्मीबाई के पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे था जबकि रानी लक्ष्मीबाई की माता का नाम भागीरथी सप्रे था. रानी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था, लेकिन उनके घर वाले उन्हें प्यार से मनु कहकर बुलाते थे.

रानी लक्ष्मीबाई के पिता अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के सेवक थे. जब रानी लक्ष्मीबाई चार वर्ष की थी तभी उनकी माता भागीरथी का निधन हो गया था. ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई की देखभाल करने वाला घर पर कोई नहीं था. यह देखते हुए रानी लक्ष्मीबाई के पिता उन्हें अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाते थे. यहां रानी लक्ष्मीबाई की चंचलता ने सबका मन मोह लिया था. बाजीराव प्यार से रानी लक्ष्मीबाई को ‘छबीली’ बुलाते थे.

रानी लक्ष्मीबाई की शिक्षा (Rani Laxmibai Education)

पेशवा बाजीराव के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे. जब रानी लक्ष्मीबाई अपने पिता के साथ उनके दरबार में जाने लगी तो वह भी बाजीराव के बच्चों शिक्षा हासिल करने लगी. रानी लक्ष्मीबाई महज 7 साल की उम्र में घुड़सवारी, तलवारबाजी और धनुर्विद्या में निपूर्ण हो गई थी. रानी लक्ष्मीबाई को अस्त्र-शस्त्र चलाना बचपन से ही पसंद था.

राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है और मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आज़ाद है!

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह (Rani Laxmibai Marriage)

धीरे-धीरे समय बीतता गया और जब रानी लक्ष्मीबाई 13 वर्ष की हुई तो साल 1842 में उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ बड़े ही धूम-धाम से किया गया. विवाह करने के बाद ही मणिकर्णिका का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया. साल 1851 में रानी लक्ष्मीबाई को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और पूरा झाँसी ख़ुशी से झूम उठा. लेकिन जल्द ही इन खुशियों को किसी की नजर लग गई और महज 4 महीने की उम्र में बालक की मृत्यू हो गई.

इस घटना के 2 साल बाद ही राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य अचानक बिगड़ने लगा. ऐसे में दरबारियों ने रानी लक्ष्मीबाई को एक पुत्र गोद लेने की सलाह दी. जिसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने पांच वर्ष के बालक को गोद लिया और उसका नाम रखा दामोदर राव. हालाँकि पुत्र गोद लेने के अगले ही दिन 21 नवंबर 1853 को राजा गंगाधर राव का निधन हो गया.

रानी लक्ष्मीबाई की अंग्रेजों से लड़ाई

राजा गंगाधर राव के निधन के बाद झाँसी पर ब्रिटिश हुकूमत की नजर पड़ी. ब्रिटिश इंडिया के गवर्नर जनरल डलहौजी ने दामोदर राव को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और झाँसी का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में करने का फैसला किया. रानी लक्ष्मीबाई ने इसके खिलाफ लंदन की अदालत में मुकदमा भी दर्ज किया, लेकिन उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया.

दूसरी तरफ अंग्रेजो ने झाँसी के खजाने पर कब्जा कर लिया और रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी का किला छोड़ने के लिए कहा. आखिर रानी लक्ष्मीबाई इसे कैसे सहन करती. उस समय तो रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी का किला छोड़ रानीमहल में चली गई, लेकिन उन्होंने अंग्रेजो से लड़ाई लड़ने का फैसला किया.

ब्रिटिश हुकूमत से लड़ाई लड़ने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने एक स्वयंसेवक सेना का गठन किया. अपनी सेना में रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं को भी शामिल किया और उन्हें लड़ाई लड़ने के लिए प्रशिक्षण भी दिया. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में बेगम हजरत महल, अंतिम मुगल सम्राट की बेगम जीनत महल, स्वयं मुगल सम्राट बहादुर शाह, नाना साहब के वकील अजीमुल्ला शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दनसिंह और तात्या टोपे जैसे लोगों ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया.

मार्च 1958 में ब्रिटिश सेना ने झाँसी को चारो तरफ से घेर लिया. ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी छोटी सेना के साथ अंग्रेजो का मुकाबला किया. रानी लक्ष्मीबाई अपने बेटे को पीठ पर बांधकर अंग्रेजो से लड़ी. हालाँकि जब अंग्रेजो की विशाल सेना ने किले को पूरी तरह से घेर लिया तो रानी लक्ष्मीबाई कालपी चली गई.

जानिए कौन थी गंगूबाई काठियावाड़ी, जिसने नेहरु के सामने रखा था शादी का प्रस्ताव

कालपी में रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे से मिली. रानी लक्ष्मीबाई के पीछे-पीछे अंग्रेज भी कालपी पहुँच गए. कालपी में भी रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ. हालाँकि यहाँ रानी लक्ष्मीबाई की सेना को खासा नुकसान हुआ. लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने हार नहीं मानी और तात्या टोपे के साथ मिलकर रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और नाना साहेब को पेशवा बनाने की घोषणा की.

इस बीच अंग्रेज रानी लक्ष्मीबाई के पीछे-पीछे ग्वालियर तक भी पहुँच गए. 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा में एक बार फिर से रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजो के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई अपने दोनों हाथों में तलवार लेकर अंग्रेजी सेना से खूब लड़ी. इस बीच अंग्रेजो ने रानी लक्ष्मीबाई को बरछी मार दी, जिससे उनके शरीर से खूब बहने लगा. इसके बावजूद रानी लक्ष्मीबाई युद्ध लड़ती रही, लेकिन जब ज्यादा खून बहने के कारण वह थोड़ी कमजोर हुई तो एक अंग्रेज ने रानी लक्ष्मीबाई के सर पर तलवार से जोरदार प्रहार किया. इससे रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह घायल हो गई और घोड़े से नीचे गिर पड़ी.

Vijay Diwas – 93000 पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण और बांग्लादेश का जन्म, पढ़िए पूरी कहानी

इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक उन्हें पास के एक मंदिर में ले गए, जहाँ रानी लक्ष्मीबाई का निधन हो गया. रानी लक्ष्मीबाई की अंतिम इच्छा थी कि उनका शव अंग्रेजों के हाथ ना लग पाए. यहीं कारण है कि सैनिकों ने मंदिर के पास ही रानी लक्ष्मीबाई के शव का अंतिम संस्कार कर दिया. इस तरह 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई इस दुनिया को छोड़कर चली गई.

Leave A Reply

Your email address will not be published.