KGF Real Story – जानिए असली KGF की सच्ची कहानी, फिल्म की तरह खतरनाक है

KGF Real Story - History in Hindi, Explained in Hindi, Full Story in Hindi

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KGF Real Story – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम केजीएफ (KGF) यानी कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स के बारे में बात करेंगे. बता दे कि केजीएफ (KGF) कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाके में स्थित एक जगह है. इसका इतिहास बहुत पुराना और दिलचस्प रहा है. केजीएफ (KGF) पर एक फिल्म का निर्माण भी हो चुका है, जिसमें कन्नड़ सुपरस्टार यश, संजय दत्त, रवीना टंडन और प्रकाश राज सहित कई बड़े कलाकारों ने अभिनय किया है.

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि रियल लाइफ में केजीएफ क्या है? (What is KGF?), केजीएफ का इतिहास क्या है? (What is history of KGF?) साथ ही हम जानेंगे केजीएफ की पूरी कहानी (KGF full story). तो चलिए शुरू करते है और जानते है केजीएफ की रियल स्टोरी (KGF Real Story).

दोस्तों सबसे पहले हम जानेंगे कि केजीएफ कहाँ पर स्थित है? (Where is KGF located?) दरअसल दक्षिण कोलार ज़िले के मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर रोबर्ट्सनपेट एक तहसील है, जहां ये खदान मौजूद है. बेंगलुरू-चेन्नई एक्सप्रेसवे से 100 किलोमीटर दूर केजीएफफ टाउनशिप है.

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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार साल 1804 में एशियाटिक जर्नल में कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स यानि केजीएफ के बारे में चार पन्नों का एक आर्टिकल छपा था. इस आर्टिकल में कोलार में पाए जाने वाले सोने के बारे में बताया गया था. साल 1871 में ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने जब यह आर्टिकल पड़ा तो उनकी इसमें दिलचस्पी जगी. इसके बाद लेवेली ने केजीएफ के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की तो उनके साथ ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन की एक रिपोर्ट लगी.

वॉरेन की रिपोर्ट में बताया गया था कि साल 1799 में टीपू सुल्तान को मारने के बाद अंग्रेजों ने यह इलाका मैसूर राज्य को दे दिया था, लेकिन कोलार की जमीन सर्वे के लिए अपने पास रख ली थी. वॉरेन को जब पता चला कि चोल साम्राज्य में लोग यहां जमीन को हाथ से खोदकर सोना निकालते थे तो उन्होंने सोने के बारे में जानकारी देने वाले को इनाम देने की घोषणा की. इस घोषणा के बाद कोलार गाँव के लोग बैलगाड़ी से वॉरेन के पास पहुंचे. उन्होंने बैलगाड़ी में लगी मिट्टी को धोया तो उसमें से सोने के अंश निकले.

इसके बाद वॉरेन ने जाँच-पड़ताल की तो पता चला कि हाथ से खोदकर सोना निकालने पर बहुत कम सोना निकल पाता है. ऐसे में उन्होंने तकनीक की मदद से ज्यादा सोना निकालने की बात सोची. इसके बाद इस इलाके में साल 1804 से साल 1860 के बीच काफी सर्वे हुए, लेकिन अंग्रेजी सरकार को उससे कुछ नहीं मिला. इस दौरान कई लोगों की जान भी चली है. इसके बाद यहां सर्वे को रोक दिया गया.

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वॉरेन की रिपोर्ट पढ़ने के बाद लेवेली ने साल 1873 में मैसूर के महाराज से उस जगह पर खुदाई करने की इजाजत मांगी. इस तरह लेवेली को कोलार में 20 साल के लिए खुदाई करने का लाइसेंस मिल गया. शुरूआती साल में लेवाली ने पैसा जुटाया और लोगों को वहां काम करने के लिए मनाया. इस तरह साल 1875 में कोलार गोल्ड फील्ड यानी केजीएफ से सोना निकालने का काम शुरू हुआ. शुरुआत में केजीएफ की खदानों में रोशनी के लिए मशालों और मिट्टी के तेल से जलने वाली लालटेन का इस्तेमाल होता था, लेकिन यह बहुत कम था. ऐसे में केजीएफ में रोशनी करने के लिए वहां से 130 किलोमीटर दूर कावेरी बिजली केंद्र बनाया गया. इस तरह केजीएफ़ बिजली पाने वाला भारत का पहला शहर बना.

बिजली मिलने के बाद केजीएफ़ में सोना निकालने के काम में और भी तेजी आई. यहां बड़ी-बड़ी मशीनें सोना निकालने के लिए लाई गई. यहां से कितना सोना निकलता था, इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि साल 1902 में भारत का 95 फीसदी सोना अकेले केजीएफ़ से निकलता था. केजीएफ़ के चलते साल 1905 में भारत सोने की खुदाई के मामले में दुनिया का छठा सबसे बड़ा देश बन गया था.

केजीएफ़ से इतना सोना निकलने के कारण इसे बेंगलुरू और मैसूर से ज्यादा प्राथमिकता मिलने लगी. ब्रिटिश सरकार के अधिकारी और इंजीनियर वहां अपने घर बनाने लगे. ठंडी जगह होने के कारण ब्रिटिश अधिकारियों को यह जगह काफी रास आने लगी. यहीं कारण है कि किसी समय इस जगह को छोटा इंग्लैंड भी कहा जाता था. इसके अलावा सोने की खान के चलते आस-पास के राज्यों से वहां मज़दूरों की संख्या बढ़ने लगी. साल 1930 में यहाँ करीब 30,000 मज़दूर काम करते थे. उन मज़दूरों के परिवार आस-पास ही रहते थे.

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भारत की आजादी के बाद केजीएफ़ को भारत सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया. साल 1956 में इस जगह का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. साल 1970 में भारत सरकार की भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने केजीएफ़ से सोना निकालने का काम शुरू किया. शुरुआत में कंपनी को काफी सफलता मिली, लेकिन बाद में कंपनी का फ़ायदा दिनोंदिन कम होता गया. साल 1979 तक ऐसे हालत हो गए कि कंपनी के पास मजदूरों को देने के लिए पैसे भी नहीं बचे. एक समय ऐसा भी आया कि सोना निकालने में जितना पैसा लग रहा था, वो हासिल सोने की क़ीमत से भी ज़्यादा हो गई थी. इसी को देखते हुए साल 2001 में भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने यहां काम बंद कर दिया. उसके बाद केजीएफ़ खंडहर बन गया.

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