कौन थे बिरसा मुंडा? आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा के नाम से कांपते थे अंग्रेज

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Birsa Munda Biography – भारतीय स्‍वतंत्रता सेनानी के रूप में जाने जाने वाले बिरसा मुंडा (Birsa Munda) का अंग्रेजों के खिलाफ चली लड़ाई में अहम योगदान रहा. बिरसा मुंडा (Birsa Munda) को आदिवासियों का भगवान भी कहा जाता है. आदिवासी उन्हें अपने भगवान की तरह पूजते हैं. अपने कामों के चलते बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने लोगों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ी है.

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 नवंबर 2021 को बिरसा मुंडा की याद में रांची स्थित एक संग्रहालय का उद्घाटन किया और साथ ही यह एलान भी किया कि अब हर साल 15 नवंबर को बिरसा मुंडा के जन्मदिवस के साथ ही जनजातीय गौरव दिवस के रूप में भी मनाया जाएगा.

बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने अंग्रेजों के खिलाफ काफी लड़ाई लड़ी और उनकी नाम में दम कर दिया था. उनकी उम्र चाहे छोटी थी लेकिन वे अपनी उम्र से काफी आगे निकल गए थे. बिरसा मुंडा (Birsa Munda) के जीवन से जुडी कई बातें हैं. लेकिन इससे पहले क्या आप जानते हैं बिरसा मुंडा (Birsa Munda) के बारे में ? बिरसा मुंडा (Birsa Munda) कौन थे ? बिरसा मुंडा (Birsa Munda) को भगवान क्यों माना जाता है ? बिरसा मुंडा का जीवन परिचय ? (Birsa Munda Biography) बिरसा मुंडा (Birsa Munda) के बारे में सभी बातें चलिए जानते हैं :

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बिरसा मुंडा (Birsa Munda) का जन्म 15 नवम्बर 1875 को रांची जिले के उलिहतु गाँव में हुआ था. उनका जन्म एक छोटे किसान के गरीब परिवार में हुआ था. बिरसा मुंडा (Birsa Munda) एक ऐसी जनजाति से बिलोंग करते थे, वह जनजातीय समूह छोटा नागपुर पठार (झारखण्ड) से था.

उनकी उम्र के उल्ट उनका काम बहुत अच्छा था. उन्होंने साल 1895 में अंगेजों के खिलाफ आवाज़ उठाना शुरू कर दिया था. बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने अंग्रेजो के द्वारा शुरू की गई जमींदारी और राजस्व-व्यवस्था को लेकर आवाज़ उठाई थी. इसके साथ ही बिरसा ने सूदखोर महाजनों के सामने ही खुद को बुलंद किया और बगावत शुरू कर दी.

महाजनों के द्वारा आदिवासियों की जमीन पर कब्ज़ा कर लिया जाता था जिसके बदले वे किसान को कर्ज देते थे. बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने अपने निधन तक एक विद्रोह चलाया था, इस विद्रोह को ‘उलगुलान’ नाम दिया गया था.

यह बात तो हम सभी जानते हैं कि आदिवासी जंगल को ही अपना सबकुछ मानते हैं. और इस समय के दौरान औपनिवेशिक शक्तियों की नजर इन जंगलों पर ही थी. ऐसा इसलिए क्योंकि ये जंगल संसाधनों से भरपूर थे. आदिवासी जनजाति के लिए जंगल उनकी मां से कम नहीं होते हैं.

और जब अंग्रेजों के द्वारा जंगलो पर अपना कब्ज़ा जमाया जाने लगा तो आदिवासियों में असंतोष पैदा होने लगा और देखते ही देखते उन्होंने विद्रोह शुरू कर दिया. अंग्रेजों ने आदिवासी कबीलों के सरदारों को यहाँ का महाजन बना दिया था. इसके साथ ही लगान के नए नियम भी बनाए गए.

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इस कारण कुछ ही समय में आदिवासी कर्ज के चक्कर में डूबने लग गए. यही नहीं उनकी जमीन भी उनसे छिनने लगी. वहीँ दूसरी तरह अंग्रेजों के कब्जों में जंगलों की संख्या बढ़ने लगी और अंग्रेजों ने इंडियन फॉरेस्ट एक्ट पास कर जंगलों पर कब्जा कर लिया.

उन्होंने खेती के तरीकों को लेकर भी आवाज़ बुलंद करना शुरू की और खेती पर भी पाबंदियां लगाने लगे. आलम कुछ ऐसा हो गया कि आदिवासियों के सिर के ऊपर से पानी निकलने लग गया था. तब बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने अपने भाइयों को इकट्ठा किया और अपने शौर्य का परिचय दिया.

परिणाम यह हुआ कि बिरसा मुंडा (Birsa Munda) आदिवासियों के बीच साल 1895 तक एक लोकप्रिय और बड़ा नाम बन चुके थे. लोगों के इसके फलस्वरूप बिरसा मुंडा (Birsa Munda) को ‘धरती बाबा’ कहना शुरू कर दिया. बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने अपने आदिवासी भाइयों को इन ओगों के खिलाफ इकट्ठा करना शुरू किया और इसके बाद अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच अकसर ही लड़ाई देख्नने को मिलने लगी.

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बिरसा मुंडा (Birsa Munda) ने साल 1897 के दौरान तो अपने करीब चार सौ साथियों के साथ मिलकर एक थाने पर हमला भी कर दिया था. अंग्रेजों में भी बिरसा मुंडा (Birsa Munda) के खिलाफ लगातार रोष बढ़ता ही जा रहा था. 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं. साल 1900 के जनवरी महीने के वह समय भी आया जब बिरसा मुंडा (Birsa Munda) और अंग्रेजों के बीच एक आखिरी लड़ाई लड़ी गई.

यह लड़ाई रांची के पास दूम्बरी पहाड़ी पर हुई थी, यहाँ अंग्रेजों के साथ लड़ाई में हजारों अदिवासियों ने साथ में मिलकर लड़ाई की. लेकिन अंग्रेजों के पास हथियार मजबूत थे और इस कारण आदिवासियों को जान और माल का काफी नुकसान हुआ. कई लोगों को अंग्रेजों ने मारा तो कईयों को अरेस्ट भी किया.

अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा (Birsa Munda) पर उस समय 500 रुपए का इनाम रखा था. सुनने में यह आता है कि कुछ लोगों ने पैसों के लालच में बिरसा मुंडा (Birsa Munda) के छुपने की जगह का पता बता दिया था. उस समय यह रकम काफी अधिक थी. आखिरकार अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा (Birsa Munda)  को गिरफ्तार किया और उन्हें रांची की जेल में कैद किया. यहाँ बिरसा मुंडा (Birsa Munda) को धीमा जहर दिया गया और 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा (Birsa Munda) का निधन हो गया.

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