डायन बताकर जिन्हें गांव वालों ने निकाला, आज वे छुटनी देवी ही अपने कामों से पा चुकी हैं पद्मश्री

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हेलो दोस्तों ! हम आपको अब तक इंडिया के कई स्टार्स के बारे में बता चुके हैं. इसी लिस्ट को आगे बढाते हुए आज भी हम आपके सामने एक स्टार लेकर आए हैं. जी हाँ, हम आपको आज मिलवाने वाले हैं झारखंड की सरायकेला-खरसावां डिस्ट्रिक्ट के बीरबांस गांव की एक महिला के बारे में. इनका नाम छुटनी देवी है और ये समाज सेवा यानि सोशल वर्क का काम करती हैं. छुटनी देवी को आपके इस काम के लिए भारत सरकार की ओर से पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है. चलिए जानते हैं छुटनी देवी के बारे में विस्तार से :

छुटनी देवी के बारे में बात को आगे बढ़ाते हुए यह बता दें कि उन्हें करीब 25 साल पहले उनके ही गांव वालों ने डायन बताते हुए गांव से बाहर निकाल दिया था. अपने ही गांव और घर से बेदखल किए जाने के बाद भी छुटनी ने निराशा को अपने पर हावी नहीं होने दिया. वे अपने मायके में रहने लगीं और यहाँ रहते हुए उन्होंने कई कुरितियों के खिलाफ आवाज़ उठाई. उनकी इस मुहीम में अंधविश्वास और कुप्रथा के खिलाफ लड़ना शुरू हुआ और लगातार यह अभियान जारी रहा. छुटनी देवी प्रतिदिन डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं की मदद करती हैं और उनके अपने घर पर खाना भी खिलाती हैं.

दरअसल हुआ कुछ यूं कि साल 1999 के दौरान खुद छुटनी को अपने ससुराल में डायन प्रथा से पीड़ित होना पड़ा. वे तब से लेकर अब तक अपने मायके यानि सरायकेला के बीरबांस गांव में रहती हैं और यहीं से अंधविश्वास और रूढ़ीवादी प्रथा के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं. पहले उन्होंने केवल झारखंड में ही महिलाओं को इस कुप्रथा से बाहर निकलने में मदद की. तो वहीँ आज छुटनी देवी देश के कई हिस्सों से डायन प्रथा की शिकार महिलाओं की मदद करती हैं. उनकी समस्या को समझने के साथ ही वे महिलाओं को भोजन भी करवाती हैं और आश्वासन भी देती हैं.

छुटनी देवी अपने खुद के ही खर्च पर महिलाओं की मदद के लिए आगे आती हैं. साथ ही वे यह भी बताती हैं कि प्रशासन से कई बार अधिकारी उनसे मिलने आ चुके हैं लेकिन कहीं से भी उन्हें महिलाओं के लिए कोई खास मदद नहीं मिली है. अपने अच्छे कामों के चलते ही छुटनी देवी आज महिलाओं के लिए मसीहा से कम नहीं हैं. साथ ही जो संसथान इस तरह का काम करते हैं वे भी छुटनी देवी को अपना आदर्श मानते हैं.

क्या है छुटनी देवी की कहानी ?

1999 की बात है। जमशेदपुर स्थित गम्हरिया, के महताइनडीह वासियों ने उसे अनायास ही डायन की संज्ञा दे डाली। आस-पड़ोस में घटने वाली घटनाएं उसके सिर मढ़ी जाने लगी। लोगों ने उसे मल-मूत्र पिलाया। पेड़ से बाधकर पीटा और अ‌र्द्धनग्न कर गांव की गलियों में घसीटा। जमाने की ओर से दिया गया छुटनी महतो का यह दर्द आज समाज का मर्ज बन गया है। कोई और महिला उसकी तरह प्रताड़ित न की जाए, ऐसी घटना की सूचना मात्र पर वह अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ न सिर्फ गंतव्य तक पहुंच जाती है, बल्कि लोगों को पहले समझाती है, नहीं माने तो कानून की चौखट तक पहुंचाती है।

कुछ लोग जो इस बारे में बताते हैं उनका कहना है कि छुटनी देवी का विवाह महज 12 साल की उम्र में ही धनंजय महतो से हो गया था. विवाह के कुछ समय तक तो सबकुछ सामान्य रहा लेकिन इसके कुछ टाइम बाद ही सबकुछ बदलने लगा. दरअसल धनंजय के बड़े भाई भजोहरि को छुटनी पसंद नहीं थीं. क्योंकि वे अपने भाई धनंजय की शादी अपनी साली से करवाना चाहते थे. लेकिन छुटनी के आ जाने से यह संभव नहीं हो सका. इसके बाद भजोहरि ने कई बार छुटनी देवी के साथ गाली-गलौज की और उनके साथ मारपीट भी की. यही नहीं उन्होंने छुटनी के घर चोरी भी करवाई.

इतना ही नहीं समय के साथ स्थिति बिगडती चली गई और छुटनी को अपने परिवार के साथ अपने ही गाँव के बाहर झोपडी बनाकर रहना पड़ा. यह समस्या चल ही रही थी कि भजोहरि की बेटी की तबियत ख़राब होने लगी. भजोहरि ने उसे पास के ओझा को दिखाया तो उन्होंने छुटनी को डायन बता दिया. साथ ही गाँव वालों के सामने यह भी कह दिया कि छुटनी ही भजोहरि की बेटी को खा रही है और उसके सपने में उसे डरा भी रही है. बस इतना था की छुटनी देवी को गांव वाले डायन और गांव की आफत बताने लग गए. छुटनी को मारने के लिए उनपर हमला भी हुआ लेकिन वे किसी तरह बच निकलीं और अपने मायके पहुँच गईं. यहाँ पहुचने के बाद उन्होंने एक गैर सरकारी संस्था ‘आशा’ से संपर्क किया.

फ़िलहाल छुटनी देवी सरायकेला के बीरबास पंचायत के भोलाडीह में संचालित पुनर्वास केंद्र की संयोजिका के तौर पर काम करती हैं और इस कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं की मदद करती हैं. उनकी इस संस्था में आज उनके साथ करीब 62 महिलाएं भी शामिल हैं.

आपको छुटनी देवी का यह काम कैसा लगा? हमें कमेंट्स के माध्यम से जरुर बताएं. 

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