पति की मौत के बाद, भट्टे में तपकर बेटों को बनाया कुंदन

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‘चलती फिरती आंखों से अजा देखी, मैंने जन्नत तो नहीं देखी मां देखी है.’ मशहूर शायर मुनव्वर राणा का ये शेर यूपी के चौबेपुर में ईंट भट्टे पर मजदूरी कर अपने बच्चों का सुनहरा भविष्यगण रही इस 58वर्ष की मुन्नीदेवी पर सटीक बैठता है. शादी के कुछ वर्षों बाद ही पति की असमय मौत के बाद जब चुनौतियां पहाड़ हो गयी तब इस मां का हौसला भी चट्टान हो गया, जिससे विपरीत हालात टकरा कर पस्त होते गए. आज एक बेटा अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी बैंगलोर में एमए एजुकेशन की पढ़ाई कर रहा है.

भट्टे में तपकर बच्चों को बनाया कुंदन

मूलरूप से रांची झारखंड निवासी मुन्नीदेवी के पति राजा राम की जब बीमारी से मौत हो गयी तो परिवार को कहीं आश्रय नहीं मिला.छोटे-छोटे बच्चों के भविष्य के फिक्र के चलते मुन्नीदेवी ने घर छोड़ने का फैसला किया. करीब 15 वर्ष पहले कानपुर पहुंची तो ठीक ठाक काम नहीं मिला. किसी तरह चौबेपुर पहुंची मुन्नीदेवी ने अपने बच्चों की खातिर एक भट्टे पर ईंट ढोने का काम शुरू किया. हिम्मत और हौसले के चलते संतानों के भविष्य संवारने के लिये आखिर एक नई राह खोज निकाली. भोर पहर उठकर ईंट ढोहना और दिन में पास के इंजीनियरिंग कॉलेज में सफाई का काम. जीतोड़ मेहनत कर उन्होने बच्चों की पढ़ाई शुरू कराई.

बड़ा बेटा रवि शिक्षित होकर ईंट भट्टे में ही ठेकेदारी करने लगा है. उससे छोटा मुकेश कानपुर में पढ़ाई पूरीकर बैंगलोर में पढ़ाई कर रहा है. उसकी पढ़ाई का खर्च मुन्नीदेवी उठा रही है. दो छोटे बेटे अजय और विजय 10वीं और 12वीं मे पढ़ाई कर रहे हैं. अजय सुबह मां का हाथ बंटाता है. मुन्नीदेवी कहती है कि उन्होने मां का धर्म निभाते हुए. बच्चों को शिक्षित करने का सपना पूरा किया है.

निर्धन बच्चों के लिये बनाएंगी संस्था

मुन्नीदेवी ईंट भट्टे में काम करने वाली अन्य महिलाओं के लिये मिसाल बन चुकी हैं. वह बताती हैं कि गरीबी में जहां पर बच्चों को दो समय का खाना खिलाना मुश्किल लगता था अब मेहनत मजदूरी से मिले पैसे से उच्चशिक्षा दिला रही हैं. अब साथ काम करने वाली महिलाएं भी अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर गरीबी से निकलने का प्रयास कर रही है. बच्चों को रोजगार मिलने के बाद वह गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिये संस्था बना काम करती रहेंगी.

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