भारतीय फिल्मों के मशहूर निर्देशक रहे रामानन्द सागर आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है. कई सारे लोकप्रिय धारावाहिक बनाने के लिए रामानन्द सागर को आज घर-घर में पहचाना जाता है. हालांकि रामानन्द सागर को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली लोकप्रिय धारावाहिक “रामायण” से. इस धारावाहिक से रामानन्द सागर को जो प्रसिद्धि मिली, वैसी प्रसिद्धि भारत में किसी और निर्देशक को आज तक नही मिली. तो चलिए आज हम बात करते है रामानन्द सागर के जीवन के बारे में :-
रामानन्द सागर की जीवनी Biography of Ramanand Sagar
रामानन्द सागर का जन्म 29 दिसंबर 1917 को लाहौर जिले के असलगुरु नामक स्थान पर हुआ था. रामानन्द सागर को उनके जन्म के बाद ही उनकी नानी ने गोद ले लिया था, क्यों कि उनकी नानी का कोई बेटा नहीं था. रामानन्द सागर के बचपन का नाम चंद्रमौली चोपड़ा था लेकिन बाद में उनकी नानी ने उनका नाम बदलकर रामानन्द सागर कर दिया.
रामानन्द सागर का बचपन बहुत ही गरीबी में गुजरा है. उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए चपरासी, ट्रक साफ करने वाला, साबुन विक्रेता जैसे कई तरह के काम किए. साल 1942 में रामानन्द सागर को पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत व पारसी भाषा के लिए स्वर्ण पदक भी मिला.
साल 1947 में देश की आजादी के साथ ही देश का बटवारा हो गया. इस बंटवारे में लाखों लोगों का जीवन पूरी बदल दिया. लाखों लोग एक दिन में बेघर हो गए. बंटवारे के समय रामानन्द सागर भी अपना सबकुछ छोड़कर मुंबई आ गए. मुंबई आने के बाद रामानन्द सागर ने बंटवारे के ऊपर “और इंसान मर गया” लिखी. इसमें रामानन्द सागर ने बंटवारे की क्रूरतम और भयावह घटनाओं के बारे में लिखा.
रामानन्द सागर ने साल 1949 में मुंबई में निर्देशक, लेखक व प्रोड्यूसर के रूप में काम शुरू किया. साल 1950 में रामानन्द सागर ने ‘सागर आर्ट कॉरपोरेशन’ नाम से एक प्रोडक्शन कंपनी की शुरुआत की. अपने प्रोडक्शन हाउस के तहत उनकी पहली फिल्म थी मेहमान. इसके बाद रामानन्द सागर ने इंसानियत, कोहिनूर, पैगाम, आँखें, ललकार, चरस, आरज़ू, गीत और बग़ावत जैसी कई हिट फ़िल्में बनाई. साल 1969 में फिल्म आँखें के लिए रामानन्द सागर को बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड भी दिया गया.
एक बार की बात है कि रामानन्द सागर अपने बेटों के साथ फिल्म चरस की शूटिंग के लिए स्विट्ज़रलैंड गए हुए थे. यहां के एक कैफे में रामानन्द सागर ने पहली बार रंगीन टीवी देखी. बस उसी दौरान रामानन्द सागर ने निर्णय लिया कि वह फिल्मों को छोड़कर अब टीवी इंडस्ट्री में काम करेंगे. उन्होंने तय किया कि वह मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, सोलह गुणों वाले श्री कृष्ण और आखिर में मां दुर्गा की कहानी टीवी के जरिए लोगों के सामने लेकर आएंगे.
रामानन्द सागर ने जब पहली बार रामायण बनाने की घोषणा की तो कई लोक चौंक गए. अच्छा-ख़ासा प्रोडक्शन हाउस था, हिट फ़िल्में बना रहे थे, ऐसे में टीवी पर काम करने का रामानन्द सागर निर्णय किसी को समझ नहीं आया. रामायण को लेकर लोग सोचते थे कि भला ‘मुकुट-मूछ’ वाला सीरियल कौन देखेगा? लेकिन रामानन्द सागर तय कर चुके थे कि वह रामायण का निर्माण करके ही रहेंगे.
रामायण बनाने के लिए रामानन्द सागर के सामने पहली बड़ी चुनौती थी पैसों की. ऐसे में पैसों की व्यवस्था करने के लिए रामानन्द सागर ने अपने बेटे प्रेम सागर को दुनिया के अलग-अलग देशों में अपने विदेशी मित्रों से पैसा इकट्ठा करने के लिए भेजा, लेकिन किसी भी ‘रामायण’ पर पैसा लगाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.
किसी भी तरफ से कोई मदद न मिलते देख रामानन्द सागर ने साल 1986 में टीवी धारावाहिक ‘विक्रम और वेताल’ बनाया. यह शो बच्चों और बड़ों सभी को पसंद आया. इस धारावाहिक का फायदा यह हुआ कि रामानन्द सागर के पास ‘रामायण’ बनाने के लिए पैसे इकट्ठे हो गए.
इसके बाद रामानन्द सागर ने ‘विक्रम और वेताल’ की स्टार कास्ट को ही रामायण के लिए फाइनल कर लिया. जैसे ‘विक्रम और बेताल’ के ‘राजा’ अरुण गोविल को रामायण में राम का किरदार दिया गया जबकि रानी के किरदार में नजर आई दीपिका चिखालिया को सीता का किरदार दिया गया. इसके अलावा सुनील लाहरी को ‘लक्ष्मण’ और दारा सिंह को ‘हनुमान’ के रोल में कास्ट किया गया.
आख़िरकार रामानन्द सागर की मेहनत की वजह से 25 जनवरी 1987 को दूरदर्शन पर रामायण का पहला एपिसोड प्रसारित किया गया. इस धारावाहिक को जनता से भरपूर प्यार मिला. उस समय जब रामायण टीवी पर प्रसारित होता था, तब देश के लोग टीवी के सामने बैठ जाते थे. गलियां सुनी हो जाती थी, सडकों पर कम लोग दिखाई देते थे, जिसके घर पर टीवी नहीं होता था वह दूसरों के घर जाकर टीवी देखता था, लोग टीवी के सामने हाथ जोड़कर बैठ जाया करते थे. रामानन्द सागर के धारावाहिक रामायण को लोगों से इतना प्यार मिला, जितना आज तक किसी धारावाहिक को नहीं मिला.
इतने लोकप्रिय धारावाहिक को टीवी पर जारी रखने के लिए भी रामानन्द सागर को खासी मशक्कत करना पड़ी. प्रेम सागर के जीवन पर आधारित पुस्तक के अनुसार उस समय रामायण को बंद करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ओर से रामानंद सागर पर दबाव बनाया गया था. सूचना प्रसारण मंत्री व दूरदर्शन के अध्यक्ष ने इसे हिंदू धर्म का महिमामंडन करने वाला धारावाहिक बताया. हालांकि रामानन्द सागर ने हार नहीं मानी और उन्होंने दिल्ली में दूरदर्शन कार्यालय व भारत सरकार के मंत्रियों के कई चक्कर लगाए. आख़िरकार रामानन्द सागर की कोशिशों और दर्शकों के प्यार के चलते रामायण बंद नहीं हुआ और भारतीय इतिहास का सबसे लोकप्रिय धारावाहिक बना.
रामायण से रामानन्द सागर को इतनी शोहरत मिली कि उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. रामायण के बाद रामानन्द सागर ने लव कुश (Luv Kush), श्रीकृष्ण (Shri Krishna), आरिफ लैला (Arif Laila), साईं बाबा (Sai Baba), पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan), हातिम (Hatim), चन्द्रगुप्त मौर्य (Chandragupt Maurya), नयी वाली रामायण, धर्म वीर (Dharamveer) जैसी कई लोकप्रिय धारावाहिक का निर्माण किया.
टीवी इंडस्ट्री में रामानन्द सागर के योगदान को देखते हुए साल 2000 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री सम्मान से सम्मानित किया. हालांकि समय के साथ रामानन्द सागर का स्वास्थ्य बिगड़ता गया और 12 दिसंबर 2005 को 88 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. रामानन्द सागर भले ही आज इस दुनिया में नहीं है, लेकिन लोग आज भी उनके धारावाहिक के लिए उन्हें याद करते हैं.