Veer Savarkar Biography – पहले पढ़िए फिर तय कीजिए वीर सावरकर हीरो थे या विलेन

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Veer Savarkar Biography – दोस्तों आज के आर्टिकल में हम बात करेंगे वीर सावरकर की जीवनी के बारे में. दोस्तों वीर सावरकर का नाम तो हम सभी ने सुना ही है. वीर सावरकर एक भारतीय राष्ट्रवादी थे. वह राष्ट्रवादी संगठन हिंदू महासभा के प्रमुख सदस्य थे. वीर सावरकर पेशे से वकील और लेखक थे. वीर सावरकर वह शख्स थे, जिसे अंग्रेजों ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ले जाकर कालापानी की सजा दी.

आजादी के इतने साल बाद आज भी वीर सावरकर भारत में एक विवादित शख्सियत है. इसका कारण यह है कि जहां एक ओर उनके समर्थक वीर सावरकर को आजादी की लड़ाई का महान सेनानी और प्रखर राष्ट्रभक्त मानते हैं जबकि दूसरी तरफ कुछ और लोग ऐसे भी हैं, जो कहते है कि सावरकर कायर और अंग्रेजों के एजेंट थे. यह बात कहने के पीछे उनकी एक अलग दलील हैं.

तो चलिए दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि वीर सावरकर की माफी का सच क्या है?, वीर सावरकर की मृत्यु कैसे हुई? साथ ही जानेंगे वीर सावरकर का जीवन परिचय.

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वीर सावरकर की जीवनी (veer savarkar biography in hindi)

वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को ब्रिटिश भारत के नासिक जिले के भागुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वीर सावरकर का असली नाम विनायक सावरकर है. वीर सावरकर के भाई-बहनों का नाम गणेश, मैनाबाई और नारायण था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जब वीर सावरकर महज 12 वर्ष के थे तब उनके गाँव में हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच दंगा भड़क गया था. इस दंगे में वीर सावरकर ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर उत्पादी तत्वों का सामना किया और उन्हें भगा दिया. इसको लेकर कुछ लोगों का कहना है कि इस घटना से वीर सावरकर की मुस्लिम लोगों के प्रति वैमनस्य का पता चलता है. इसके उलट उनके समर्थकों का कहना है कि मुस्लिम लड़कों द्वारा किये गए उत्पात के कारण वीर सावरकर को ऐसा करना पड़ा. बरहाल मामला जो भी हो, लेकिन इस घटना के बाद वीर सावरकर की वीरता की बहुत प्रशंसा हुई.

वीर सावरकर जब बड़े हुए तो वह अपने बड़े भाई गणेश से प्रेरणा लेकर क्रांतिकारी बन गए. इसके लिए वीर सावरकर ने मित्र मेले की शुरुआत की. इसके तहत युवाओं का समूह बनाकर खेलों का आयोजन किया जाता था. इस फायदा यह हुआ कि बहुत से युवा वीर सावरकर के साथ जुड़ गए. इन समूहों के इस्तेमाल वीर सावरकर ने क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए किया.

इस बीच वीर सावरकर ने पुणे के ‘फर्ग्यूसन कॉलेज’ से अपनी डिग्री पूरी की. इसके बाद वीर सावरकर कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए. हालांकि वीर सावरकर ने इंग्लैंड में भी पढ़ाई के साथ-साथ वहां के भारतीय छात्रों को भारत की आजादी के लिए प्रेरित किया. उन्होंने इंग्लैंड में फ्री इंडिया सोसाइटी का गठन किया.

साल 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम का वीर सावरकर के जीवन पर गहरा प्रभाव था. वीर सावरकर ने इस संग्राम के गुरिल्ला युद्ध के बारे में ‘द हिस्ट्री ऑफ द वॉर ऑफ द इंडियन इंडिपेंडेंस’ नाम की एक किताब लिखी. इस पुस्तक के जरिए वीर सावरकर ने लोगों को आजादी के लिए प्रेरित किया. हालांकि अंग्रेजी सरकार को जब किताब के बारे में पता चला तो उनके भीतर खलबली मच गई और आनन-फानन में वीर सावरकर की किताब को प्रतिबंधित कर दिया. हालांकि इसके बावजूद वीर सावरकर ने वह किताब अपने दोस्तों के बीच बाँट दी.

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इसके बाद वीर सावरकर वापस भारत आ गए और अपने भाई गणेश के साथ मिलकर इंडियन काउंसिल्स एक्ट 1909 (मिंटो-मॉर्ली रिफॉर्म्स) का विरोध करना शुरू कर दिया. हालांकि इस विरोध प्रदर्शन को देखते हुए ब्रिटिश पुलिस ने वीर सावरकर के खिलाफ अपराधिक साजिश रचने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. इस बीच वीर सावरकर गिरफ्तारी से बचने के लिए पेरिस चले गए. हालांकि 13 मार्च 1910 को पुलिस ने वीर सावरकर को गिरफ्तार कर लिया.

साल 1911 में फ़्रांसिसी अदालत ने वीर सावरकर को वापस बॉम्बे भेज दिया और भारत लाए जाने के बाद कोर्ट ने वीर सावरकर को 50 साल की सजा सुनाई. इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने वीर सावरकर को 4 जुलाई 1911 को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की कुख्यात सेलुलर जेल (काला पानी) में बंद कर दिया. सेलुलर जेल में वीर सावरकर तरह तरह की यातनाएं दी गई. हालांकि वीर सावरकर ने हार नहीं मानी और जेल में रहकर अपने साथी कैदियों को पढ़ाना शुरू कर दिया. यहीं नहीं वीर सावरकर ने सरकारी अनुमति से जेल में ही पुस्तकालय भी शुरू कर दिया.

इसके अलावा वीर सावरकर ने जेल में रहकर ‘हिंदुत्व:एक हिंदू कौन है’ नामक वैचारिक पर्चे लिखे और इन पर्चों को अपने समर्थकों की मदद से चुपचाप जेल के बाहर भेजते रहे. धीरे-धीरे यह पर्चे पूरे भारत में प्रकाशित हुए और लोगों के बीच फेल गए. वीर सावरकर एक नास्तिक व्यक्ति थे, लेकिन उन्हें खुद के हिन्दू करने पर गर्व होता था. वीर सावरकर ने अपने पर्चों में हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म को एक समान बताया और अखंड भारत (संयुक्त भारत या ग्रेटर इंडिया) के निर्माण का समर्थन किया. हालांकि वीर सावरकर ने मुसलमानों और ईसाईयो के अस्तित्व का समर्थन नहीं किया और उन्हें भारत में मिसफिट बताया.

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6 जनवरी 1924 को वीर सावरकर की कालापानी की सजा खत्म हो गई और वह जेल से बाहर आ गए. जेल से बाहर आने के बाद वीर सावरकर ने रत्नागिरी हिंदू सभा के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आगे चलकर साल 1937 में वीर सावरकर हिंदू सभा के अध्यक्ष भी बने. इस बीच मोहम्मद अली जिन्ना ने देश में हिन्दू और मुस्लिम के बीच तनाव बढ़ाना शुरू कर दिया. इस तनाव को देखते हुए वीर सावरकर ने हिंदू राष्ट्र बनाने के प्रस्ताव दिया. इससे वीर सावरकर की लोकप्रियता बढ़ती गई और धीरे-धीरे कई लोग उनसे जुड़ते गए.

वीर सावरकर के बारे में कहा जाता है कि वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) और महात्मा गांधी के घोर आलोचक थे. वीर सावरकर ने महात्मा गाँधी के भारत छोड़ों आंदोलन का भी विरोध किया था. यही नहीं वीर सावरकर कभी भी भारत के विभाजन के पक्षधर नहीं थे. इसकी जगह वीर सावरकर चाहते थे कि एक राष्ट्र के अंदर ही दो राज्य बना दिए जाए. इसके अलावा वीर सावरकर ने महात्मा गाँधी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति की आलोचना की और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के खिलाफ हिंसा का समर्थन करने के लिए महात्मा गांधी को ‘पाखंडी’ तक कह दिया था.

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वीर सावरकर की माफी का सच

दरअसल साल 1911 में जब वीर सावरकर को ‘काला-पानी’ भेज दिया तो जेल में उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी गई. वहां वीर सावरकर को घनी अंधेरी कोठरी में रखा गया था. वहां वीर सावरकर और अन्य कैदी सरकारी अफसरों के बग्गी खींचते थे. इस दौरान कैदियों को मारा भी जाता था. इसके अलावा टॉयलेट कम होने के कारण कई बार कैदियों को अपनी बैरक में ही मल त्याग करना पड़ता था. कई बार कैदियों को खड़े-खड़े ही मल त्याग करना पड़ता था. जेल में काफी यातनाएं झेलने के बाद वीर सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगने का मन बनाया. वीर सावरकर ने जेल से 6 बार अंग्रेज हुकूमत को चिट्ठी लिखी.

वीर सावरकर ने अपने माफ़ीनामे में लिखा था कि, ‘अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं यक़ीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेज़ी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा.’ ऐसे में अंग्रेजी हुकूमत ने वीर सावरकर के अच्छे व्यवहार को देखते हुए उन्हें साल 1924 में रिहा कर दिया. हालांकि वीर सावरकर पर दो शर्ते भी लगाई गई कि वह किसी राजनीतिक क्रियकलाप में शामिल नहीं होंगे और रत्नागिरि के जिला कलेक्टर की अनुमति लिए बिना जिले से बाहर नहीं जाएंगे.

वीर सावरकर के इसी माफीनामे को लेकर अक्सर विवाद होता है. हालांकि महात्मा गाँधी ने वीर सावरकर के माफिनामे को वीर सावरकर की चतुराई बताया था. महात्मा गाँधी का कहना था कि सावरकर अंग्रेजों के सामने झुके नहीं थे, बल्कि आगे की लड़ाई के लिए चतुराई दिखाई थी. सावरकर जेल के बाहर रहकर देश की आजादी के लिए जो कर सकते थे वो जेल के अंदर रहकर नहीं कर पाते.

हालांकि देश की आजादी के बाद वीर सावरकर की छवि को उस समय काफी गहरा धक्का लगा जब महात्मा गाँधी की हत्या के आरोप में पुलिस ने वीर सावरकर को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि बाद में सबूतों के अभाव में वीर सावरकर को रिहा कर दिया गया, लेकिन गाँधी की हत्या का दाग धोने में उन्हें काफी समय लगा. देश की आजादी के बाद वीर सावरकर 1966 तक ज़िदा रहे लेकिन उन्हें उसके बाद स्वीकार्यता नहीं मिली.

अंग्रेजों से पेंशन

इसके अलावा एक चीज और है, जिसको लेकर सावरकर के विरोधी उनकी आलोचना करते है और वह चीज है अंग्रेजों से पेंशन लेना. कहा जाता है कि अंग्रेज़ों से उनको साठ रूपये प्रतिमाह पेंशन भी मिलती थी. इसको लेकर सावरकर के विरोधी अक्सर सवाल उठाते है कि, ‘अंग्रेज़ उनको पेंशन दिया करते थे, साठ रुपये महीना. वो अंग्रेज़ों की कौन सी ऐसी सेवा करते थे, जिसके लिए उनको पेंशन मिलती थी?’ हालांकि उनके पौत्र रणजीत सावरकर की मानें तो यह पेंशन नहीं बल्कि नज़रबन्दी भत्ता था जो सभी दलों के राजनीतिक बंदियों को दिया जाता था. उनके मुताबिक सावरकर को यह भत्ता डेढ़ साल बाद मिला और बाकी बंदियों को जो मिल रहा था उसका आधा ही मिला. सावरकर की करोड़ों की संपत्ति जब्त कर ली गई. क्या वह 60 रुपये की पेंशन के लिए समझौता करेंगे? यह हास्यास्पद है. अगर उन्होंने अंग्रेज़ों से समझौता किया होता तो वो अपनी संपत्ति वापस मांग लेते.

गाय पूजनीय नहीं सिर्फ एक पशु

वीर सावरकर के बारे में कहा जाता है कि वह नास्तिक थे. वीर सावरकर को कोई लोग ‘हिंदू हृदय सम्राट’ भी कहते हैं, लेकिन यह भी सच है कि वे एक ऐसे हिंदुत्‍व राष्‍ट्रवादी नेता थे, जो कई मुद्दों पर आरएसएस से सहमत नहीं थे? जैसे आज के समय में कई हिंदूवादी नेता गाय को आस्था का विषय मानते हुए उसे दैवीय रूप बताते है जबकि वीर सावरकर की राय इससे बिल्कुल अलग थी. इसको लेकर वीर सावरकर कहते थे कि, ‘किसी जानवर के प्रति धन्‍यवाद की भावना का होना हमारे लिए बहुत उपयोगी है. क्यों कि वह मनुष्‍य के लिए उपयोगी हैं. इसलिए हम उन्हें पूजा के योग्य मान सकते है. लेकिन उन्हें धर्म के आधार पर भगवान माना जाता है. ऐसा अंधविश्‍वास राष्‍ट्र के बौद्धिक विकास को तबाह कर देगा. वीर सावरकर ने कहा था कि, ‘गाय की देखभाल करें, पूजा नहीं.’

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वीर सावरकर की मृत्यु (Veer Savarkar Death)

वीर सावरकर ने अपने जीवन में इच्छा मृत्यु का प्रण ले लिया था. 1 फरवरी 1966 को वीर सावरकर ने घोषणा की थी कि वह मृत्यु तक उपवास रखेंगे और भोजन नहीं करेंगे. 26 फरवरी 1966 को उन्होंने अपने बॉम्बे निवास पर अंतिम सांस ली. उनका घर और अन्य सामान अब सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए संरक्षित हैं.

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इंदिरा गाँधी ने बताया था महान सपूत

साल 1980 में इंदिरा गांधी ने पंडित बाखले को लिखे पत्र में सावरकर के बारे में कहा था कि, ‘वीर सावरकर का अंग्रेजी हुक्मरानों का खुलेआम विरोध करना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक अलग और अहम स्थान रखता है. मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें और भारत माता के इस महान सपूत की 100वीं जयंती के उत्सव को योजनानुसार पूरी भव्यता के साथ मनाएं.’ इसके अलावा इंदिरा गाँधी ने वीर सावरकर के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था और सावरकर ट्रस्ट को अपने कोष से 11 हजार रुपए का दान भी दिया था. यही नहीं इंदिरा गाँधी ने साल 1983 में सावरकर को ‘महान क्रांतिकारी’ बताते हुए फिल्म डिवीजन को उन पर डॉक्यूमेंट्री बनाने का आदेश भी दिया था ताकि देश की आने वाली पीढियां उनके बारे में जान सके.

वर्तमान राजनीति में वीर सावरकर की भूमिका

आज भी राजनीति में वीर सावरकर की भूमिका महत्वपूर्ण है. उनके नाम को लेकर अक्सर नेताओं के बीच विवाद होता रहा है. जहाँ एक तरह भाजपा और शिवसेना के नेता वीर सावरकर को महान देशभक्त बताते हैं, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और अन्य दल उन्हें डरपोक और अंग्रेजों से माफ़ी मांगने वाले शख्स के रूप में याद करते है. यहीं नहीं कांग्रेस नेताओं का तो यह भी आरोप है कि सावरकर अंग्रेजों से 60 रुपए महीने पेंशन लेते थे.

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