आपातकाल क्या होता है – आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का काला दौर माना जाता है. भारत में आपातकाल साल 1975 में तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाया था. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल लगाने के कारण चुनाव स्थगित हो गए. आम नागरिकों से उनके अधिकार छीन लिए गए. साथ ही विपक्ष के कई नेताओं को जेल में डाल दिया गया.
21 मार्च 1977 को देश में आपातकाल खत्म हुआ. तब जयप्रकाश नारायण ने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा था। इंदिरा गांधी की उस गलती के लिए आज भी कांग्रेस पार्टी के नेताओं से सवाल पूछे जाते हैं. हालांकि कांग्रेस के नेता भी आपातकाल को एक गलती बताते हैं.
आज की नई पीढ़ी ने आपातकाल के बारे में जरूर सुना होगा, लेकिन साथ ही उनके मन में कई तरह के सवाल भी होंगे. जैसे – आपातकाल क्या होता है? आपातकाल कब लगा था? आपातकाल क्यों जरुरी हैं? तो चलिए आज हम ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानते हैं. साथ ही इस बारे में भी जानेंगे कि आखिर इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल क्यों लगाया था?
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आपातकाल क्या होता है? What is an emergency?
भारत का संविधान बनाते वक़्त हमारे संविधान निर्माताओं ने इसमें देश में आपातकाल लगाने का प्रावधान बनाया. इस प्रावधान का इस्तेमाल ऐसे समय में किया जाना चाहिए जब देश को किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से खतरे की आशंका हो.
आपातकाल क्यों जरुरी हैं? Why are emergencies necessary?
यहां कई लोगों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि आखिर संविधान में आपातकाल जैसा प्रावधान लाने की जरुरत क्यों पड़ी. तो इसके पीछे वजह यह है कि हमारे देश में संसदीय लोकतंत्र है. यानी सरकार को कोई फैसला लेने के लिए संसद से मंजूरी लेनी पड़ती है. ऐसे यदि देश पर अचानक कोई ऐसा संकट आ जाए जिससे देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा खतरे में हो, तो ऐसे समय में सरकार के पास आपातकाल लागू करने का विकल्प होता है. इसके तहत केंद्र सरकार के पास ज्यादा शक्तियां आ जाती हैं और केंद्र सरकार अपने हिसाब से फैसले लेने में समर्थ हो जाती है.
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आपातकाल कितने प्रकार के होते हैं? What are the types of Emergency?
भारत के संविधान में तीन तरह के आपातकाल का जिक्र किया गया है:- राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी), राष्ट्रपति शासन (स्टेट इमरजेंसी), आर्थिक आपातकाल (इकनॉमिक इमरजेंसी).
राष्ट्रीय आपातकाल :- इस आपातकाल का इस्तेमाल तब किसी जाता है जब देश के अंदर या बाहर युद्ध छिड़ जाए और देश की सुरक्षा खतरे में हो. यह आपातकाल मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है. इससे केंद्र सरकार के पास असीमित शक्तियाँ आ जाती है.
राष्ट्रपति शासन :- जब किसी राज्य की राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्था फेल हो जाती है या फिर राज्य संसद के निर्देशों का पालन करने में असमर्थ हो जाता है तो ऐसे में केंद्र की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है. इसमें न्यायिक कार्यों को छोड़कर केंद्र सरकार सारे राज्य प्रशासन अधिकार अपने हाथों में ले लेता है.
आर्थिक आपातकाल :- आज तक देश में कभी भी आर्थिक आपातकाल लागू नहीं किया गया है लेकिन संविधान में यह प्रावधान दिया गया है. इसके अंतर्गत अगर देश गंभीर आर्थिक संकट दे घिरा हो, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर आ जाए. ऐसे में देश में आर्थिक आपात लगाया जा सकता है. इस आपातकाल के तहत देश के सभी नागरिकों के पैसों और सम्पत्ति पर देश का अधिकार हो जाएगा.
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इंडिया ने क्यों लगाया आपातकाल
आपातकाल क्या होता है और यह कितने प्रकार का होता है, इस बारे में तो हम सभी जान चुके हैं. अब हम बात करते हैं कि तत्कालीन प्रधानंमत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने साल 1975 में देश में आपातकाल क्यों लगाया था? तो दरअसल इसके पीछे वजह बना इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सुनाया गया एक फैसला. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को चुनावों में धांधली का दोषी पाया और उनके रायबरेली से सांसद के रूप में चुनाव को अवैध करार दे दिया. इसके साथ ही उन्होंने अगले छह सालों तक इंदिरा गाँधी के चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी. इस कारण इंदिरा गाँधी के सामने लोकसभा छोड़कर राज्यसभा जाने का रास्ता भी खत्म हो गया. ऐसी स्थिति में इंदिरा के सामने प्रधानमंत्री पद छोड़ने के सिवा सिर्फ एक ही रास्ता बचा था और वह था आपातकाल लगाने का. जानकारों के अनुसार इसी कारण इंदिरा गाँधी ने 25 जून, 1975 को आधी रात से आपातकाल लागू कर दिया.
इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण
राजनारायण उस समय के प्रखर समाजवादी नेता थे. साल 1971 में उन्होंने इंदिरा गाँधी के खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ा और हार का मुंह देखना पड़ा. हार के बाद राजनारायण ने अपनी हार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. उनका आरोप था कि इंदिरा गाँधी ने उनके खिलाफ चुनाव जितने के लिए भ्रष्टाचार, सरकारी मशीनरी, संसाधनों और सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल किया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजनारायण के आरोपों को सही पाया और उनके खिलाफ फैसला सुनाया.