मां के हाथ से बनी रोटी हुई गुम तो बेटे ने मांगी मदद, DCP ने भोजन का बैग ढूंढ़कर बेटे तक पहुंचाया

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चाहे कोई महंगा रेस्टोरेंट हो या फिर सड़क किनारे कोई ढाबा, वहां हम पैसे देकर खाना तो खा सकते है, लेकिन उसमें वह स्वाद कभी नहीं मिल सकता जो मां के हाथ से बने खाने में होता है. मां के हाथ से बने खाने में जो स्वाद होता है वह आखिर किसी को कहाँ मिलेगा. हाल ही में बिहार के रहने वाले एक बेटे ने अपनी मां के हाथ के बने खाने के लिए जो किया उसने लोगों को मां के हाथ से बने खाने का महत्व समझा दिया. यही नहीं दिल्ली पुलिस के डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी और दिल्ली मेट्रो पुलिस के अधिकारियों ने जिस तरह से उस बेटे की भावनाओं को समझा और उस तक उसकी मां के हाथ से बना खाना पहुँचाया, वह काबिले तारीफ़ है. लोग सोशल मीडिया पर दिल्ली पुलिस के डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी और दिल्ली मेट्रो पुलिस के अधिकारियों की खूब तारीफ़ कर रहे हैं. तो चलिए जानते हैं कि आखिर पूरा मामला क्या है.

दरअसल यह कहानी है बिहार के छपरा में रहने वाली मां और उसके बेटे रिषभ की. रिषभ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक कर दिल्ली के साकेत में परीक्षा की तैयारी करता है. रिषभ पिछले 10 महीने से घर नहीं गया है. कई महीनों से अपने घर नहीं जा पाने के कारण रिषभ अपनी मां के हाथ से बने खाने को काफी मिस कर रहा था. बीते दिनों रिषभ का एक दोस्त बिहार से दिल्ली आ रहा था. ऐसे में रिषभ की मां ने अपने बेटे के लिए सत्तू भरी रोटी, गुजिया और कुछ पकवान बनाकर उसके दोस्त के साथ भेजा.

अब हुआ यह कि रिषभ का दोस्त वह थैला लेकर बिहार से दिल्ली तो आ गया लेकिन दिल्ली में वह थैला मेट्रो ट्रेन में भूल गया. अपनी मां के हाथ से बना खाने को बैचैन रिषभ को जब उसके दोस्त ने बताया कि खाने का थैला तो वह मेट्रो ट्रेन में भूल गया है तो उसे बड़ा दुःख हुआ. रिषभ किसी भी कीमत पर वह थैला वापस पाना चाहता था. ऐसे में कोई रास्ता ना देख रिषभ ने सीधा दिल्ली पुलिस के डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी को मेसेज किया. रिषभ ने डीसीपी को बैग मेट्रो में भूलने की सूचना दी और लिखा कि, ‘बैग में कोई कीमती सामान नहीं है. उसमें मेरी मां के हाथ से बनी रोटियां है. मुझे 7-8 महीने बाद अपनी मां के हाथ का बना खाना खाने का मौका मिला था, लेकिन वह बैग घूम गया है.’

डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी ने रिषभ की भावनाओं को समझा और तुरंत अपने स्पेशल स्टाफ, कंट्रोल रूम और तमाम एसएचओ सदस्य वाले मेट्रो यूनिट ग्रुप में रिषभ के मेसेज को फॉरवर्ड किया और उन्हें बैग ढूंढ़ने के लिए कहा. कुछ समय बाद उन्हें कंट्रोल रूम से फ़ोन आया कि हमारी शिकायतकर्ता से बात हुई है. उस बैग में घर की बनी हुई रोटियां है. इस पर डीसीपी ने अधिकारियों से कहा कि उस व्यक्ति के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है. कोशिश करों कि बैग मिल जाए और उस व्यक्ति तक वह पहुँच जाए.

आख़िरकार अधिकारियों की कोशिश रंग लाई और उन्हें वह बैग 2 घंटे बाद द्वारका में मिल गया. जब दिल्ली पुलिस ने वह बैग रिषभ तक पहुँचाया तो उसकी आँखों में भी आंसू आ गए. रिषभ को देख पुलिस अधिकारी भी इमोशनल हो गए. रिषभ ने डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी और अन्य सभी अधिकारियों का धन्यवाद अदा किया. रिषभ ने डीसीपी को मेसेज कर कहा कि, ‘मैं 7-8 महीने बाद अपनी मां के हाथ से बना खाना खाऊंगा. मैं इससे बहुत इमोशनली जुड़ा हूं. मैं आपको और दिल्ली मेट्रो पुलिस को धन्यवाद कहता हूं.’

इस पूरी घटना को डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी ने सोशल मीडिया के जरिए साझा किया. उन्हें लिखा कि, ‘मुझे इस कार्य में अत्यंत संतुष्ट की प्राप्त हुई. मां के हाथों बनी रोटियां उसके बच्चे तक पहुंचा दिया. इससे जो सुख मिला उसका वर्णन मैं नहीं कर सकता. यदि कोई व्यक्ति अपनी मां के हाथ से बनी रोटियों को वापस पाने के लिए सीधे डीसीपी स्तर के अधिकारी से मदद मांग रहा है तो पक्का है कि वह उसे वापस पाना चाहता होगा. अपनी मां के हाथ से बने खाने का थैला वापस पाते समय रिषभ की आँखों में आंसू थे. वह मेरे लिए बड़े से बड़े पुरस्कार से भी बड़ी बात है.

डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी के द्वारा की गई कोशिशों की सोशल मीडिया पर लोग जमकर तारीफ़ कर रहे हैं. वैसे डीसीपी जितेंद्र मणि त्रिपाठी के बारे में कहा जाता है कि वह काफी जिंदादिल इंसान हैं और अक्सर लोगों की मदद करने के लिए आगे आते है. कैंसर की बीमारी से अपनी पत्नी को खोने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी की याद में ‘कहीं तो हंसी होगी’ नाम की किताब भी लिखी है और उसकी बिक्री से मिले पैसों का हिस्सा एम्स में कैंसर का इलाज कराने आए दूर-दराज के मरीजों पर खर्च करते हैं.

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