कभी लोगों के घरों में झाडू-पोछा लगाती थीं 7 हजार पेंटिंग्स बनाने वालीं पद्मश्री दुलारी

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हेलो दोस्तों ! हमेशा की तरह आज भी हम आपके लिए इंडिया के स्टार की लिस्ट में के नया नाम लेकर आपके सामने आए हैं. हम आज जिनके बारे में आपको बताने वाले हैं उनका नाम दुलारी है और उनका काम ही आज उनकी पहचान बन चुका है. हालाँकि दुलारी के लिए यह पहचान बनाना बिलकुल भी आसान नहीं था. आपके काम के लिए ही उन्हें पद्मश्री भी मिल चुका है. तो चलिए जानते हैं दुलारी के बारे में विस्तार से :

दुलारी का जन्म बिहार के मधुबनी जिले के रांटी गांव में हुआ था. दुलारी का जन्म एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था. जन्म से ही दुलारी को कई अभावों और गरीबी के बीच रहना पड़ा. उनका जन्म एक मल्लाह परिवार में हुआ था. दुलारी का बचपन भी अभी बीत ही रहा था कि उनकी शादी केवल 12 साल की छोटी उम्र में ही उनके माता-पिता ने करवा दी. दुलारी ने अपने ससुराल में ज्यादा समय नहीं बिताया.

जी हाँ, दुलारी शादी के महज सात सालों के बाद ही अपने ससुराल से मायके वापस लौट आईं. इस समय तक दुलारी की एक 6 महीने की बेटी की मौत भी हो चुकी थी जिसने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया था. अपने गम के बोझ के साथ वे मायके लौट आईं. उन्होंने पढ़ाई भी नहीं की थी. पढ़ी-लिखीं ना होने के कारण उन्हें लोगों के घरों में काम करना पड़ता था.

दरअसल मायके में आने के बाद भी उनकी स्थिति अच्छी नहीं थी जिसके कारण उन्होंने कई लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने का काम शुरू किया. इस काम से उन्हें कुछ पैसा मिल जाता था और उनका जीवन यापन होने लगा. लेकिन शायद दुलारी के नसीब में कुछ और ही लिखा था. जी हाँ, दुलारी ने अपने संघर्ष को जारी रखा और उन्हें पोछे की जगा कूची को थाम लिया.

इसके बाद दुलारी ने पेंटिंग बनाना शुरू किया और अच्छी पेंटिंग्स बनाने लगीं. उनकी पेंटिंग्स लोगों को भी पसंद आने लगीं. यही नहीं एक बार तो उनकी बनाई पेंटिंग्स की तारीफ दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी की थी.

source – दिव्य सन्देश

कैसे आई दुलारी के हाथों में पोछे की जगह कूची ?

दरअसल यह बात तक कि है जब दुलारी को अपने ही गाँव में एक मिथिला पेंटिंग आर्टिस्ट के घर पर काम करने का मौका मिला. इनका नाम कर्पूरी देवी था और ये मिथिला पेंटिंग के सेक्टर में एक जाना-माना नाम थीं. इनके घर पर झाड़ू-पोछे का काम मिलना दुलारी के लिए काफी अच्छा साबित हुआ. दुलारी जब यहाँ काम कर रही थीं तब वे अपने खाली समय में घर के आंगन को माती से पोत देती थीं और साथ ही लकड़ी का ब्रश बनाकर उन पर मधुबनी पेंटिंग करती थीं. उनके इस काम को देखकर कर्पूरी देवी ने उनका साथ दिया और उन्हें इस काम को सिखने में मदद की.

दुलारी को मिले सम्मान :

आपको बता दें कि दुलारी का नाम गीता वुल्फ की पुस्तक ‘फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश’ और मार्टिन लि कॉज की फ्रेंच बुक मिथिला में लिया गया था. इसमें उनकी लाइफ के साथ उनकी कलाकृतियो को भी स्थान दिया गया है. इसके साथ ही उनकी पेंटिंग ने सतरंगी नामक पुस्तक में भी जगह बनाई है. इसके अलावा मैथिलि भाषा में इग्नू के लिए बने पाठ्यक्रम के मैंन पेज के लिए भी उनकी पेंटिंग का चयन हुआ है.

साथ ही यह भी बता दें कि पटना में बिहार संग्रहालय के उद्घाटन पर भी वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा दुलारी को खास तौर से बुलाया गया था. यहाँ हुई कमला नदी की पूजा के दौरान भी दुलारी की एक पेंटिंग का उपयोग किया गया था. दुलारी को साल 2012-13 में राज्य पुरस्कार ने सम्मानित किया था.

दुलारी के बारे में कुछ और खास :

दुलारी देवी अब तक करीब सात हजार मिथिला पेंटिंग बना चुकी हैं. दुलारी को पद्मश्री भी मिल चुका है जिसके लिए उन्होंने काफी संघर्ष भी किया है.

दुलारी देवी की यह कहानी आपको कैसी लगी ? हमें कमेंट्स के माध्यम से जरुर बताएं. 

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