मेजर संदीप उन्नीकृष्णन जीवनी :- गोली खाने के बाद भी नहीं टूटा जज़्बा, ढूंढ़-ढूंढ़कर आतंकियों का किया सफाया

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इन दिनों फिल्म ‘मेजर’ (Film Major) सुर्ख़ियों में है. इस फिल्म में सुपरस्टार अदिवी शेष ने मुख्य भूमिका निभाई है. लोगों में इस फिल्म को लेकर काफी उत्सुकता भी है. दरअसल यह फिल्म देश के बहादुर जवान मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के जीवन पर आधारित है. इस फिल्म में मेजर संदीप की भूमिका अभिनेता अदिवी शेष निभा रहे हैं। फिल्म में मेजर संदीप के व्यक्तिगत जीवन से लेकर मेजर बनने और उनकी शहादत को दिखाया जाएगा. तो चलिए आज हम जानते है 26/11 मुंबई आतंकी हमले (26/11 mumbai terror attack) में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन (Major Sandeep Unnikrishnan) की जीवनी:-

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शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का जन्म केरल के कोजिकोडे जिले के चेरुवनूर में 15 मार्च 1977 को हुआ था. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता का नाम (major sandeep unnikrishnan father name) श्री के. उन्नीकृष्णन है. वह इसरो के अधिकारी थे. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की माता का नाम (major sandeep unnikrishnan mother name) धनलक्ष्मी उन्नीकृष्णन है। मेजर संदीप अपने माता-पिता की एकलौती संतान थे. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की पत्नी का नाम (major sandeep unnikrishnan wife name) नेहा उन्नीकृष्णन (Neha Unnikrishnan) है.

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मेजर संदीप ने अपनी स्कूली शिक्षा बेंगलुरु के फ्रैंक एंथनी पब्लिक स्कूल से पूरी की है. स्कूली पढाई पूरी करने के बाद उन्होने साइंस स्ट्रीम से आईएससी की. इसके बाद मेजर संदीप ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) में प्रवेश लिया.

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मेजर संदीप को 12 जुलाई 1999 को बिहार रेजिमेंट (इन्फेंट्री) की सातवीं बटालियन का लेफ्टिनेंट आयुक्त किया गया था. वह जम्मू-कश्मीर, राजस्थान में कई स्थानों पर तैनात रहे. इसके बाद उनका चयन राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड्स (NSG) के लिए हुआ. साल 2007 में उन्हें एनएसजी का विशेष कार्य समूह (एसएजी) सौंपा गया. इसके बाद मेजर संदीप ने एनएसजी के कई ऑपरेशन में भाग लिया.

26/11 mumbai terror attack

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले से पूरा देश सन्न रह गया. आतंकियों ने देश की आर्थिक राजधानी में हमला करते हुए ताज होटल में लोगों को बंधक बना लिया. ऐसे में आतंकियों का सफाया करने और लोगों को बचाने के लिए मेजर संदीप सहित 10 कमांडो की टीम ने मोर्चा संभाला. इसी दौरान मेजर संदीप को पता चला कि होटल की तीसरी मंजिल पर कुछ आतंकी है. उन आतंकियों ने एक कमरे में लोगों को बंधक बनाकर रखा हुआ था. ऐसे में संदीप अपनी टीम के साथ होटल की तीसरी मंजिल पर पहुंचे और कमरे का दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही आतंकियों ने अंदर से फायरिंग शुरू कर दी. जिसके जवाब में मेजर संदीप और उनकी टीम ने भी जवाबी फायरिंग की. हालांकि उनके सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि जवाबी हमले में किसी बंधक को गोली ना लग जाए. आतंकियों की फायरिंग में मेजर संदीप का साथी घायल हो गया. जिसके बाद मेजर संदीप ने अपने साथी को सुरक्षित जगह पहुँचाया. इसी दौरान उनके हाथ में भी गोली लग गई. बावजूद इसके मेजर संदीप वहां डटे रहे और आतंकियों को ढूंढ़कर मारते रहे. मेजर संदीप ने अपनी बहादूरी से 14 लोगों को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला. इसी दौरान आतंकियों ने पीछे से मेजर संदीप पर फायरिंग की. इससे वह बुरी तरह जख्मी हो गए. हालांकि इसके बाद भी मेजर संदीप आतंकियों से लड़ते रहे. गोली लगने के बाद भी मेजर संदीप ने अपने साथियों से कहा, ‘ऊपर मत आना मैं उन्‍हें संभाल लूंगा.’ यह उनके आखिरी शब्द थे. आखिरी सांस तक उन्होंने आतंकियों से डटकर मुकाबला किया.

देश की सेवा करना चाहते थे मेजर संदीप

मेजर संदीप के पिता के. उन्नीकृष्णन ने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था कि मेजर संदीप बचपन से ही सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते थे. हालांकि वह नहीं चाहते थे कि उनका बेटा भारतीय सेना में जाए, लेकिन मेजर संदीप के आगे उनकी ना चली और मेजर संदीप भारतीय सेना में शामिल हो गए.

तो उनके घर कुत्ता भी नहीं जाता

वैसे तो यह देश आज भी मेजर संदीप की शहादत पर गर्व करता है, लेकिन जब वह शहीद हुए तो उनके अंतिम संस्कार में केरल सरकार का कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ. उस समय इस बात की काफी आलोचना हुई. आखिर सरकार की नींद खुली और केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन और गृह मंत्री कोडियेरी बालाकृष्णन मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के परिवार से मिलने के लिए पहुंचे. हालांकि मेजर संदीप के पिता ने उनसे मिलने से इंकार कर दिया. इसके बावजूद मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन अपने लाव-लश्कर के साथ मेजर संदीप के घर में घुस गए. इससे गुस्साए मेजर संदीप के पिता ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया. अपने अपमान से दुखी मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन ने घर से बाहर निकलकर कर कहा कि, ‘मेजर संदीप अगर शहीद नहीं हुए होते तो उनके घर कुत्ता भी नहीं झांकने जाता.’ मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन के इस बयान से पूरे देश के लोग आहत हो गए. मीडिया से लेकर आम जनता ने उनके फैसले की आलोचना की. इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने मेजर संदीप के परिवार से माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया. हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान पर खेद जाताया था. राजनीति से अलग देश की आम जनता आज भी मेजर संदीप की शहादत पर गर्व करती है और उन्हें सलाम कर रही है. मेजर संदीप को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत शांतिकाल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था.

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