34.5 लाख विद्यार्थी, 1.46 लाख शिक्षक, जानिए कितना विशाल है RSS का स्कूल संगठन

Saraswati Shishu Mandir History - Who, What, When Where, and Why

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Saraswati Shishu Mandir History – दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर (Saraswati Shishu Mandir) के बारे में बात करेंगे. दोस्तों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ‘विद्या भारती संस्था’ (Vidya Bharati Sanstha) के द्वारा ही सरस्वती शिशु मंदिर का संचालन किया जाता है. इसे सरस्वती विद्या मंदिर (Saraswati Vidya Mandir) भी कहा जाता है. सरस्वती शिशु मंदिर के अलावा ‘विद्या भारती संस्था’ के अंतर्गत अन्य स्कूल भी संचालित किए जाते है.

दोस्तों सरस्वती शिशु मंदिर वैसे तो एक शिक्षा का मंदिर है, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा संचालित होने के कारण इनको लेकर देश में अक्सर राजनीति होती रहती है. RSS के विरोधी अक्सर सरस्वती शिशु मंदिर को लेकर सवाल खड़े करते रहते है. साल 2018 में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने RSS से जुड़े सवा सौ स्कूलों को बंद करने का फरमान जारी किया था, जिसको लेकर काफी विवाद हुआ था.

इसके अलावा सितंबर 2021 में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा था कि सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ने वाले बच्चों के मन में बचपन से ही नफरत का बीज बो दिया जाता है जो आगे चलकर संप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ता है. दिग्विजय के बयान को लेकर भी काफी विवाद उठा था.

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बरहाल दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि सरस्वती शिशु मंदिर क्या है? (What is Saraswati Shishu Mandir), संघ के स्कूलों का कितना बड़ा नेटवर्क है?, आरएसएस के कितने स्कूल है? (How many schools does RSS have) तो चलिए शुरू करते है और जानते है सरस्वती शिशु मंदिर का इतिहास. (Saraswati Shishu Mandir History)

सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना (Establishment of Saraswati Shishu Mandir)

दोस्तों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख एमएस गोलवलकर के संरक्षण में सबसे पहले साल 1946 में कुरुक्षेत्र में गीता स्कूल की स्थापना की गई थी. हालांकि साल 1948 में जब महात्मा गाँधी की हत्या हुई और आरएसएस पर प्रतिबंध लगा तो गीता स्कूल मॉडल के प्रसार को रोक दिया.

इसके बाद आरएसएस पर से प्रतिबंध हटने के बाद साल 1952 में आरएसएस नेता कृष्ण चंद्र गांधी, भाउराव देवरस और नाना जी देशमुख ने मिलकर गोरखपुर में देश के पहले ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ की आधारशिला रखी थी. उस समय पांच रूपए के मासिक किराए वाले भवन में ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ शुरू किया गया था.

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शिशु शिक्षा प्रबंध समिति का गठन

गोरखपुर के बाद उत्तरप्रदेश में अन्य जगहों पर भी ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ शुरू किए जाने लगे. उत्तरप्रदेश में इन स्कूलों का तेजी से विकास हुआ. पूरे प्रदेश के कई स्कूल खोले गए. इसके बाद इन स्कूलों को चलाने के लिए साल 1958 में शिशु शिक्षा प्रबंध समिति का गठन किया गया.

विद्या भारती संस्था का गठन (Vidya Bharati Institution Formation)

उत्तरप्रदेश के बाद देश के अन्य हिस्सों में भी ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ की स्थापना होने लगी. जिन प्रदेशों में स्कूल खुलते गए वहां उन स्कूलों को चलाने के लिए उस राज्य में समिति का गठन किया गया. साल 1977 में इसे राष्ट्रीय स्वरूप देने और देशभर के स्कूलों का व्यवस्थित संचालन के लिए विद्या भारती संस्था का गठन किया गया. आज विद्या भारती संस्था के द्वारा ही ‘सरस्वती शिशु मंदिर’ का संचालन किया जाता है. सभी प्रदेशों की समितियां विद्या भारती संस्था के तहत ही काम करती है.

सरस्वती शिशु मंदिर का उद्देश्य (Purpose of Saraswati Shishu Mandir)

विद्या भारती के अनुसार सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना का उद्देश्य शिक्षा की एक राष्ट्रीय प्रणाली विकसित करना है. बच्चों में बचपन से ही देशभक्ति की भावना विकसित करना है. बच्चों का शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक विकास करना है. गाँव, जंगल और मलिन वासियों को अन्याय के बंधनों से मुक्त करना है. साथ ही एक समृद्ध और संस्कृतिक राष्ट्र का निर्माण करना है.

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सरस्वती शिशु मंदिर का विस्तार (Extension of Saraswati Shishu Mandir)

सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना के बाद से ही इसका तेजी से विस्तार हुआ. भारत में शिक्षा की बढ़ती मांग और राज्य स्कूल प्रणाली के प्रति असंतोष इसका मुख्य कारण था. 1990 के दशक तक पूरे देश में सरस्वती शिशु मंदिर के 5000 स्कूल थे, जिनकी संख्या साल 2003 तक 14,000 को पार कर चुकी थी. साल 2003 में करीब 17 लाख विद्यार्थी सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाई करते थे.

2018 में पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार लक्षद्वीप और मिजोरम को छोड़कर आरएसएस द्वारा पूरे देश में शिशु वाटिकाएं, सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या मंदिर, सरस्वती विद्यालय, उच्चतर शिक्षा संस्थान, शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र और शोध संस्थान संचालित किए जाते है. इन संस्थानों में 34.5 लाख से अधिक विद्यार्थी पढ़ते है. इन्हें पढ़ाने के लिए 1.46 लाख शिक्षकों का नेटवर्क है.

इन स्कूलों में सभी धार्मिक समूहों से छात्र आते है. उदाहरण के लिए आरएसएस द्वारा संचालित उत्तर प्रदेश के स्कूलों में 12,000 से अधिक मुस्लिम और ईसाई छात्र पढ़ते हैं. इसके अलावा केरल और तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में, जहां आरएसएस के प्रभाव नहीं है. वहां भी बड़ी संख्या में छात्र आरएसएस द्वारा संचालित स्कूलों में ही पढ़ाई करते है.

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