मिसाल : नेत्रहीन होकर भी श्रीकांत बोला ने बनाया अरबों का कारोबार, दे रहे लोगों को रोजगार

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srikanth bolla success story in Hindi –

श्रीकांत बोला (Srikanth Bolla) आज सफलता की कहानियों का एक बड़ा नाम बन चुके हैं. जो लोग यह सोचते हैं कि शारीरिक असक्षमता व्यक्ति की सफलता की राह में रोड़ा बन सकती हैं उनके लिए श्रीकांत बोला एक परफेक्ट उदाहरण साबित होते हैं. श्रीकांत बोला नेत्रहीन होने के बावजूद आज करोड़ों नहीं बल्कि अरबों के मालिक बन चुके हैं. यही नहीं साल 2021 के दौरान फोर्ब्स के द्वारा उन्हें ऐसा की 30 अंडर 30 लिस्ट में भी जगह दी गई थी.

आज हम श्रीकांत बोला की बायोग्राफी (srikanth bolla biography), श्रीकांत बोला की लाइफ जर्नी (srikanth bolla life story), श्रीकांत बोला कौन हैं ? (who is srikanth bolla?) आदि के बारे में खुलकर बात करने वाले हैं. हम आज के इस आर्टिकल में जानेंगे कि कैसे जन्म से नेत्रहीन एक बालक आज अरबों की संपत्ति का मालिक ही नहीं बन गया बल्कि कैसे लाखों लोगों की प्रेरणा (srikanth bolla success story) बनकर उभरा है.

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श्रीकांत बोला का जन्म (srikanth bolla date of birth) 7 जुलाई 1992 को हुआ था. आंध्र प्रदेश के सीतारामपुरम के एक शहर मछलीपट्टनम में जन्मे श्रीकांत अपने जीवन की शुरुआत से ही नेत्रहीन हैं. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं रही है. जिस कारण उन्हें बचपन से ही गरीबी का सामना करना पड़ा है.

उनके परिवार (srikanth bolla family) की आय उस समय करीब 1600 रुपए महीने थी और इस स्थिति में श्रीकांत का नेत्रहीन होना परिवार के लिए बहुत अच्छा नहीं था. घरवालो को उनके होने का दुःख तो था ही लेकिन उनके साथ ही उनके आसपास के लोग और रिश्तेदार भी उनका नेत्रहीन होना स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. यहाँ तक कि सबने मिलकर श्रीकांत के परिवार को यह सलाह भी दे दी थी कि वे बच्चे को मार दें. क्योंकि यदि बच्चा नेत्रहीन रहता है तो वह बड़ा होकर भी परिवार के किसी काम का नहीं रहेगा.

लेकिन उनके माँ-बाप (srikanth bolla parents) ने यह नहीं माना क्योंकि वे किसी भी सूरत में अपने बच्चे को बचाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने किसी की भी बात नहीं सुनी और यह बात ठान ली कि वे अपने बच्चे का पालन-पोषण हर हाल में करेंगे और उसे बड़ा करेंगे. श्रीकांत के पेरेंट्स ने उन्हें एक नार्मल बच्चे की तरह ही पाला और उन्हें पढाया भी.

श्रीकांत के माता-पिता ने उनका साथ ही किसी भी सूरत में नहीं छोड़ा. जिसके बाद में उनके परिवार के लोगों ने श्रीकांत (srikanth bolla in school) का एडमिशन भी गाँव के ही एक स्कूल में करवा दिया. लेकिन इस समय तक किसी भी भी श्रीकांत से कोई उम्मीद नहीं थी. क्योंकि हर किसी का यही मानना था कि एक नेत्रहीन बच्चा कैसे पढ़ाई करेगा या कैसे आगे बढेगा. हालाँकि कोई भी इस बात से परिचित नहीं था कि एक नेत्रहीन बच्चे में कितनी प्रतिभा छिपी हुई है.

स्कूल में भी श्रीकांत के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था और उन्हें क्लास में भी सबके पीछे आखिरी बेंच पर बैठाया जाता था. लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी श्रीकांत ने किसी की बात नहीं सुनी और बिना किसी झिझक के पढ़ाई करते रहे. क्लास के बच्चे भी उनका मजाक उड़ाते थे लेकिन वे उनकी तरफ भी अधिक ध्यान नहीं देते थे. उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि वे हर साल क्लास में अच्छे नंबर्स से पास होने लगे. कमाल की बात तो यह थी कि उन्होंने 10वीं क्लास को 90 प्रतिशत अंकों के साथ पास किया.

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उन्होंने 10वीं क्लास तो पास कर ली थी लेकिन वे आगे साइंस पढना चाहते थे और स्कूल ने उन्होंने इस सब्जेक्ट के साथ आगे बढ़ने से मना कर दिया. स्कूल का यह मानना था कि दृष्टिबाधित बच्चों के लिए साइंस जैसा सब्जेक्ट नहीं है और यह नियम है. लेकिन श्रीकांत (srikanth bolla) ने भी इस नियम के खिलाफ आवाज़ उठाने का मन बनाया और स्कूल पर केस कर दिया. स्कूल के खिलाफ उनकी यह लड़ाई करीब 6 महीने तक चली और आखिरकार उनको स्कूल से साइंस पढने की परमिशन भी मिल गई.

स्कूल में परमिशन देने के साथ ही यह शर्त भी रखी कि श्रीकांत को अपनी यह पढ़ाई खुद की रिस्क पर ही करनी होगी. और यदि किसी प्रयोग के दौरान श्रीकांत के साथ ही कोई अनहोनी भी होती है तो इसकी जवाबदारी श्रीकांत की ही रहेगी. इसके बाद वे पढ़ाई में जुट गए और दो साल में ही उन्होंने अपने प्रदर्शन को इतना अच्छा बना दिया कि 12वीं में 98 प्रतिशत अंक हासिल किए और स्कूल को गलत साबित कर दिया.

12वीं में अपने अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें अमेरिका के MIT यानि Massachusetts Institute of Technology में पढाई करने के लिए भी मौका दिया गया जोकि उनके लिए किसी बड़ी उपलब्द्धि से कम नहीं था. यह इसलिए क्योंकि MIT में एडमिशन पाने वाले वे पहले नेत्रहीन स्टूडेंट बन गए थे. यहाँ से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें अमेरिका में कई कम्पनीज से नौकरी के लिए ऑफर मिलना शुरू हो गए थे. लेकिन श्रीकांत ने अमेरिका (srikanth bolla america jobs) में भी नौकरी करने के लिए मना कर दिया. क्योंकि उन्हें अपने देश और अपने देश के लोगों के लिए कुछ करना था.

वे देश में गरीब और कमजोर लोगों के लिए कुछ ना कुछ अच्छा करना चाहते थे और इस कारण ही वे देश वापस आकर अपने काम में जुट गए. और यहाँ से शुरू हुआ श्रीकांत का अपने काम का सफ़र.

श्रीकांत बोला ने साल 2012 में देश में ही बौलैंट इंडस्ट्री (srikanth bolla bollant industries) नामक कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी (bollant industries consumer food packaging company) का निर्माण किया. यहाँ पत्तियों और कागज (यूज़ किया गया) के द्वारा इको-फ्रेंडली पैकेजिंग का निर्माण किया जाता है. एक जगह से शुरू हुई इस कम्पनी की आज 7 यूनिट बन चुकी हैं. कंपनी साल 2012  से ही 20 फीसदी की मासिक दर से ही तरक्की कर रही है. कंपनी का टर्नओवर भी सालाना 200 करोड़ (bollant industries turnover) से ऊपर पहुँच चुका है. और इसकी वैल्यू (bollant industries net worth/srikanth bolla net worth ) भी 400 करोड़ से अधिक आंकी गई है.

श्रीकांत की कंपनी ने इतनी तरक्की कर ली है कि साल 2021 के दौरान ही फोर्ब्स (srikanth bolla in forbes 30 under 30 asia) ने श्रीकांत को 30 अंडर 30 एशिया लिस्ट में स्थान दिया है. यह स्थान देश के उन बिजनेसमैन को दिया जाता है जिनकी उम्र 30 साल से कम है और अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं.

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हालाँकि एक समय श्रीकांत की लाइफ में ऐसा भी आया था जब अपने बिज़नस के लिए उन्हें कहीं से भी फंडिंग नहीं मिल रही थी. तब उनकी मदद भारत के बड़े बिजनेसमैन रतन टाटा (ratan tata investment in bollant industries) ने की थी और श्रीकांत की कंपनी में 1.3 मिलियन का इन्वेस्टमेंट किया था. जिसके बाद श्रीकांत का बिज़नस भी बढ़ने लगा. वहीँ अब की बात करें तो टाटा के साथ ही सतीश रेड्डी, एस पी रेड्डी,  श्रीनि राजू, चलामला सेट्टी, रवि मांथ भी श्रीकांत की कंपनी में इन्वेस्ट कर चुके हैं.

आज श्रीकांत बोला की कंपनी में करीब 1500 से भी अधिक लोग काम करते हैं. इसमें खास बात यह है कि यहाँ काम करने वाले अधिकतर एम्प्लोयी दिव्यांग ही हैं. इस कंपनी की शुरुआत श्रीकांत ने 8 लोगों के साथ मिलकर की थी. जिसमें उनके साथ आसपास के कुछ बेरोजगार और नेत्रहीन लोगों को ही काम दिया गया था. बाद में काम बढ़ने के साथ ही अन्य लोगों को भी रोजगार दिया जाने लगा. उनके सर्ज इम्पैक्ट फाउंडेशन का यह मानना है कि वे साल 2030 तक भारत को शिक्षा में आगे बढ़ाने के साथ ही देश से बेरोजगारी को भी कम करेंगे.

श्रीकांत बोला (srikanth bolla) को अपनी इस सक्सेस के लिए कई अवार्ड्स भी मिल चुके हैं. इनमें प्रतिष्ठित युवा सेवा पुरस्कार, तेलुगु फाइन आर्ट्स सोसायटी का यूथ एक्सीलेंस अवार्ड,  इंटरप्रेन्योर ऑफ़ द ईयर अवार्ड 2015, बिजनेस लाइन यंग चेंज मेकर अवॉर्ड  2018 आदि भी दिए जा चुके हैं. इसके अलावा श्रीकांत इंडिया की नेत्रहीन क्रिकेट टीम में भी खेल चुके हैं.

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