जानिए कौन है संजीव मेहता, जिसने महज 20 मिनट में खरीद ली थी ईस्ट इंडिया कंपनी

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ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम तो हम सभी ने सुना ही है। यह एक ऐसी कंपनी है जिसकी स्थापना भारत से व्यापार के लिए की गई थी, लेकिन बाद में कंपनी की साम्राज्यवादी आकांक्षाएं जाग गई और भारत की रियासतों में फूट डालकर राज करो की नीति अपनाई। ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ जाकर ही भारत के क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई लड़ी है। भारतीय इतिहास के पन्नों में ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम काले अक्षरों में लिखा है।

हालांकि आज हम भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि किसी समय भारतीयों पर राज करने वाली कंपनी आज एक भारतीय के हाथ में है। जी हां हम बात कर रहे हैं भारतीय बिजनेसमैन संजीव मेहता के बारे में। संजीव मेहता भारतीय बिजनेसमैन है जिसमें महज 20 मिनट में ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीद लिया था। चलिए आज के इस आर्टिकल में हम बात करते हैं ईस्ट इंडिया कंपनी के बनने, इसके भारतीयों पर राज करने और संजीव मेहता द्वारा इसे खरीदने के बारे में।

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना

ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत 31 दिसंबर 1600 को हुई थी। जब ईस्ट इंडिया कंपनी की शुरुआत हुई थी तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन यह कंपनी दुनिया के कोने कोने में पहुंचकर बिजनेस करेगी। ईस्ट इंडिया कंपनी समुद्र के जरिए ब्रिटेन तक माल लाने का काम कर करती थी। स्थापना के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगातार अपना प्रसार किया और धीरे-धीरे दुनिया के कई देशों में व्यापार करने लगी. ईस्ट इंडिया कंपनी ने समुद्री रास्ते से भारत में अपनी दस्तक दी. ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से चाय, मसाले सहित दूसरी ऐसी चीजों का व्यापार किया, जो यूरोपीय देशों में मौजूद नहीं थे.

अलग-अलग तरह के व्यापार और अपनी विस्तारवादी नीति के कारण जल्द ही ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार पूरी दुनिया में फ़ैल गया. ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि एक समय दुनिया भर के लगभग 50 प्रतिशत ट्रेड पर ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो गया था. अपनी इसी दौलत के दम पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने कई देशों पर कब्ज़ा करना शुरू कर दिया. कंपनी ने भारत पर भी लगभग 200 सालों तक अपना अधिकार जमाया.

साल 1857 की क्रांति

साल 1857 में भारत में मेरठ से आजादी के लिए पहला विद्रोह हुआ. भारतीय क्रांतिकारियों के विद्रोह का ऐसा असर हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी का कारोबार रातों-रात आसमान से जमीन पर आ गिरा. विद्रोह के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी का अब भारत में काम करना मुश्किल हो रहा था. वह भारतीय मसालों को यूरोपीय देशों तक नहीं भेज पा रही थी. ऐसे में धीरे-धीरे करके ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत से सूपड़ा साफ़ हो गया. भारत से जाने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का मुनाफा लगातार कम होता गया और कंपनी डूबने की कगार पर आ गई. यहां तक कि ब्रिटिश सरकार ने भी ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद करने से साफ इंकार कर दिया. हालांकि कंपनी का नाम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था. यहीं कारण है कि कंपनी के मालिक इसे घाटे में भी चलाते रहे.

दूसरी तरफ ईस्ट इंडिया कंपनी भले ही भारत से जा चुकी थी, लेकिन भारतीय लोगों के मन में ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए हमेशा रंज और बदले की भावना रही. कुछ ऐसी ही भावना भारतीय बिजनेसमैन संजीव मेहता के मन में भी थी. साल 2003 में जब संजीव मेहता को पता चला कि ईस्ट इंडिया कंपनी अब कभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती वह एक दिन कंपनी के ऑफिस में पहुंचे. संजीव मेहता महज 20 मिनट के लिए कंपनी के ऑफिस में रुके और एक नेपकिन पर दाम लिखकर कंपनी के मालिकों को दे दिया. कंपनी को बचाने के लिए उसके मालिकों ने वह दाम देखकर कंपनी के 21 प्रतिशत शेयर संजीव मेहता को बेच दिए.

संजीव मेहता यहीं नहीं रुके, उन्होंने महज एक साल के अंदर ईस्ट इंडिया कंपनी के बाकी के 38 स्टेक होल्डर से उनके शेयर खरीद लिए. भारतीय कारोबारी आनंद महिंद्रा ने भी संजीव की ईस्ट इंडिया कंपनी में इन्वेस्टमेंट की है. इस तरह किसी दिन भारतीयों पर राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी पर एक भारतीय का मालिकाना हक हो गया.

कौन है संजीव मेहता

ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीदकर करोड़ो भारतीयों को गर्व का अहसास कराने वाले संजीव मेहता मुंबई एक गुजराती परिवार में जन्मे थे. संजीव मेहता के दादा गफूरचंद मेहता 1920 के दशक से ही यूरोप में हीरे का कारोबार शुरू कर चुके थे. बाद में संजीव मेहता के पिता ने इसे आगे बढ़ाया. गफूरचंद 1938 में भारत लौट आए थे.

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